संयुक्त बिहार में के
जमाने में रांची बिहार के गर्मियों की राजधानी हुआ करता था। लेकिन सन 2000 में झारखंड बनने के बाद
ये खूबसूरत शहर नए राज्य की राजधानी बन गया। पर पटना से रांची का रिश्ता आज भी खूशबूदार बना हुआ है।
रोज रात्रि सेवा की दर्जनों लग्जरी
बसें रांची के लिए प्रस्थान करती हैं तो कई रेलगाड़ियां भी हैं। पर मेरा सफर शुरू हुआ रांची
जनशताब्दी एक्सप्रेस से। ट्रेन पटना जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 8 से ठीक सुबह 6.00 बजे खुल गई। पटना से आगे चलने पर छोटा सा स्टेशन तारेगना दिखाई दिया। इस छोटे से गांव तारेगना का अंतरिक्ष विज्ञान में बड़ा महत्व है। ये तारेगना तारों की गणना से बना है।
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रेल गाड़ी से झारखंड के जंगल। |

गोमो बनाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन - हजारीबाग रोड, पारसनाथ के बाद रेलगाड़ी पहुंच गई है गोमो जंक्शन। गोमो का नया नाम अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन हैं। इसी रेलवे स्टेशन से 1941 में नेताजी वेश बदलकर ब्रिटिश हुकुमत को चकमा देकर पलायन कर गए थे। उनकी याद में स्टेशन पर स्मृति पट्टिका लगी है।
दामोदर नदी का पुल - चंद्रपुरा जंक्शन से पहले दामोदर नदी नजर आई। दामोदर यानी झारखंड की जीवन रेखा। इस नदी के नाम पर दामोदर वैली कारपोरेशन का गठन हुआ है।दामोदर नदी पेयजल के साथ विद्युत उत्पादन का बड़ा स्रोत है। तुपकाडीह से पहले दामोदर पर रेल पुल आता है। इसके बाद बोकारो स्टील सिटी। कई साल पहले में एक परीक्षा देने आया था इस शहर में।
ट्रेन सरपट आगे भागती जा रही है। एक बार फिर मोबाइल नेटवर्क खत्म हो जाता है। मूरी जंक्शन से पहले स्वर्णरेखा नदी दिखाई देती है। मूरी जंक्शन के बाद हरे-भरे अलमस्त जंगलों के बीच गौतमधारा, गंगाघाट जैसे स्टेशन आते हैं। टाटी सिलवे और नामकुम जैसे स्टेशन भी गुजर गए हैं। अब हम रांची की सीमा में पहुंच रहे हैं।
अब रांची शहर का विस्तार टाटी तक होने लगा है। तकरीबन आठ घंटे के सफर के बाद जन शताब्दी ने हमें रांची पहुंचा दिया है। दोपहर के दो बजे हैं। मैं प्लेटफार्म से बाहर निकल रहा हूं। रांची रेलवे स्टेशन की सफेद इमारत
कुछ कुछ अगरतला स्टेशन की याद दिलाती है। स्टेशन के बाहर शहर में चलने वाले रिक्शा
दिखाई देते हैं जिनकी ऊंचाई पटना के रिक्शा की तुलना में काफी कम है। पटना के
रिक्शा से गिरने का डर बना रहता है। पर रांची का रिक्शा अपनेपन का एहसास करता है।
तो अब चलते हैं शहर में।
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