सिद्धार्थ के विवाह में बाराती बनकर वाराणसी से जौनपुर जाना हुआ तो
जौनपुर शहर को रात में देखने का थोड़ा सा मौका मिला। बारात के बीच से समय निकालकर
जायसवाल जी के संग हमलोग शहर में गया। शहर की पुरानी मसजिद वाले इलाके पार करते
हुए गोमती नदी के तट पर पहुंच गए। हमें वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर ने शाही पुल के
बारे में पहली बार बताया था।
जौनपुर का अनूठा शाही पुल - पुल पर लगने वाले बाजार के बारे में सुना है। यह भारत में अपने ढंग
का अनूठा पुल है जौनपुर में गोमती नदी पर बना
शाही पुल। जहां पुल पर बाजार लगाने के लिए कलात्मक गुमटियां बनाई गई हैं। शाही पुल जौनपुर शहर के बीचों बीच
बना हुआ है।
शहर को दो भागों में बांटने वाला पुल आज भी गुलजार है। शाही पुल को
पैदल पार किजिए और अपनी जरूरत की चीजें भी खरीदते हुए चले जाइए। दोपहर की
चिलचिलाती गरमी में शाही पुल की गुमटी में धूप से बचते हुए युवा धड़कते हुए
दिल भी मिल सकते हैं।
तारीख मुइमी के अनुसार जौनपुर के इस विख्यात शाही पुल का र्निमाण
अकबर के शासनकाल में उनके आदेशानुसार सन् 1564 ई 1569 ई के बीच में
मुनइन खानखाना ने करवाया था। यह भारत में अपने ढंग का अनूठा नदी पुल है। गोमती नदी पर बनाए गए इस पुल की डिजाइन अफगानी वास्तुकार अफजल अली ने तैयार
की थी। यह पुल मुगल वास्तुशिल्प शैली
में बने जौनपुर के उन कुछ महत्वपूर्ण स्थलों में से है, जिनका अस्तित्व आज भी बचा हुआ है।
इस शाही पुल की चौड़ाई 26 फीट है जिसके दोनो तरफ 2 फीट 3 इंच चौड़ी मुंडेर बनी है। दो ताखों के संधि स्थल
पर गुमटियां र्निमित है। पहले इन गुमटियों में दुकाने लगा करती थी। पुल के मध्य में चतुर्भुजाकार चबूतरे पर एक विशाल सिंह की
मूति है जो अपने अगले दोनो पंजों पर हाथी के पीठ पर सवार है। पुल के द्वारों के
मेहराब में मछलियों के ऐसे चित्र उत्कीर्ण किए गए हैं।
इस पुल
का निर्माण विशाल खंभों पर किया गया है और पानी के बहने के लिए 10 द्वार बनाए गए हैं। पुल से इतर इस पर खंभों पर टिकी
अष्ठभुजीय आकार की गुंबजदार छतरी भी बनी हुई है। इस छतरी में लोग खुद को पुल पर
दौड़ती वाहनों से सुरक्षित रखते हुए नदी की बहती धाराओं का विहंगम नजारा देखते हैं।
हालांकि गोमती नदी का पानी यहां भी गंदला रुप ले चुका है।सन 1971 में गोमती नदी में आई बाढ़ ने शहर में भारी तबाही
मचाई। तब ये ऐतिहासिक पुल काफी हद तक डूब गया था। आज शहर के शान जौनपुर के इस ऐतिहासिक पुल और
गोमती नदी के जल दोनों को संरक्षण की जरूरत है।
लौटते हैं फिर से सिद्धार्थ की शादी में। शादी की सारी रीति रिवाज बौद्ध रीति से संपन्न हुए। इस शादी के पुरोहित थे अशोक आनंद। उन्होंने बेहतरीन हिंदी में पहले वधू और फिर वर का परिचय कराया। दोनों की शिक्षा दीक्षा और परिवार के बारे में बताया गया। वर वधु और पुरोहित मंच पर थे। उसके बाद बौद्ध रीति से ही संकल्प पत्र पढ़ा गया और शादी संपन्न हो गई। बुद्धम शरण गच्छामि, धम्म शरण गच्छामि, संघम शरण गच्छामि। मैंने बौद्ध रीति से विवाह पहली बार देखा था। यह यादगार अनुभूति बन गई।
- --विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com
( SHAHI PUL, BRIDGE, JAUNPUR, UP, BUDDHA, SHADI )
( SHAHI PUL, BRIDGE, JAUNPUR, UP, BUDDHA, SHADI )
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