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आगरा मालवा रेलवे स्टेशन का टिकट घर ( सौ. पत्रिका ) |
मध्य
प्रदेश में एक लाइट रेलवे संचालन में हुआ करती थी उज्जैन और आगर मालवा के बीच। यह
मार्ग 68 किलोमीटर का था जो 1932 में आरंभ हुआ था। नैरो गेज के इतिहास में देखें
तो यह सबसे नया रेल मार्ग था। इसका निर्माण ग्वालियर के महाराजा द्वारा किया गया
था। 1942 में इस रेलवे लाइन के संचालन का स्वामित्व सिंधिया स्टेट रेलवे के
अंतर्गत किया गया। वहीं आजादी के बाद 1951 में इसका स्वामी भारतीय रेलवे के
सेंट्रल रेलवे जोन के अधीन आ गया। पर 1975 में इमरजेंसी के दौरान यह रेल मार्ग बंद
हो गया।
आगर मालवा
इंदौर कोटा राज मार्ग पर एक छोटा सा शहर है, जो अब जिला बन चुका है। नैरो गेज लाइन
खत्म होने के बाद अब आगर रेल नेटवर्क पर नहीं है। 2013 तक आगर मालवा शाजापुर जिले
का हिस्सा था। दसवीं सदी में आगर मालवा परमार राजाओं की राजधानी हुआ करता था। सिंधिया
राजघराने में आगर मालवा प्रमुख शहर था। 1956 तक मध्य भारत राज्य में भी आगर मालवा
जिला हुआ करता था। पर मध्य प्रदेश बनने पर यह शाजापुर का हिस्सा बन गया। आगर मालवा
अपने मनोरम वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर बैजनाथ मंदिर है जहां दर्शन करने
दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां मां तुलजा भवानी का भी मंदिर है।
रेलवे
लाइन का आरंभ –
ग्वालियर
स्टेट रेलवे का नैरो गेज रेलवे संचालन का पुराना अनुभव था। वे 1908 से ग्वालियर से
श्योपुर, ग्वालियर से भिंड और ग्वालियर से शिवपुरी के बीच नैरो गेज रेलवे लाइनें
चला रहे थे। इसी के आधार पर उनकी रियासत के प्रमुख शहर आगर को उज्जैन शहर से
जोड़ने का फैसला किया गया। 15 मार्च 1932 को ग्वालियर महाराजा द्वारा निर्मित
उज्जैन आगर लाइन पर रेलगाड़ियां दौड़ने लगी थीं। इस रेल लाइन पर पैसेंजर ट्रेन तीन
से चार घंटे में उज्जैन का सफर तय करती थी। यानी बहुत ही धीमी गति का सफर था।
लेकिन ये सफर बस से काफी सस्ता था। कुछ लोगों ने अभी भी इस रेलवे लाइन के टिकट
संभाल कर रखे हैं।
आगर से
उज्जैन जाने वाली पैसेंजर में कुल 9 डिब्बे हुआ करते थे। इसमें 2 डिब्बे मालगाड़ी
के थे और सात डिब्बे पैसेंजर सवारी के लिए। सुबह 7 बजे आगर से उज्जैन के लिए
पैसेंजर ट्रेन रवाना होती थी। बड़ी संख्या में लोग लाइन में लग कर टिकट खरीदते थे।
सात बजे सुबह
ही उज्जैन की तरफ से एक पैसेंजर ट्रेन चलती थी। इन दोनों ट्रेनों की क्रॉसिंग
घोंसला रेलवे स्टेशन पर होती थी। दोपहर बाद भी दोनों तरफ से एक-एक पैसेंजर ट्रेन
चलती थी। पर इस रेल मार्ग पर कुल 43 साल ही रेल सेवा बहाल रह सकी।
आपातकाल में अचानक हुई
बंदी -
1975-76
के दौरान रेलवे ने इस नैरो गेज मार्ग को घाटे की लाइन बताते हुए बंद करने का फैसला
लिया। जब इस लाइन को बंद किया गया तो इसके दो लोकोमोटिव जो चालू हालत में थे
उन्हें ग्वालियर भेज दिया गया। वहां इन लोकोमोटिव एनएम 608 और एनएम 609 को
ग्वालियर श्योपुर रेल मार्ग पर संचालन में लाया जाने लगा। पर 1975 के बाद रेलवे
लाइन बंद होने पर पटरियों को चोरी छिपे लोगों ने उखाड लिया। वहीं स्टेशन के भवनों
पर भू माफिया का कब्जा हो गया। पर आगर में रेलवे स्टेशन की इमारत के अवशेष आज भी
देखे जा सकते हैं।
क्षेत्र
को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए उज्जैन रामगंज मंडी वाया आगर नई रेल लाइन का सर्वे 1998
में किया जा चुका है, किंतु फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई। क्षेत्र आर्थिक रूप
से पिछड़ा और अनुसूचित जाति बाहुल्य है। ऐसे में औद्योगिक विकास के लिए रेल मार्ग जरूरी
है।
साल 1996 से 2009 के मध्य लगातार भाजपा से थावरचंद गहलोत
इलाके के सांसद रहे। उन्होंने उज्जैन-रामगंज मंडी वाया आगर नई रेल लाइन के लिए
सर्वे स्वीकृत कराया। साल 2009 में कांग्रेस के सज्जन सिंह
वर्मा क्षेत्र से सांसद चुने गए। उनके चुनाव प्रचार के दौरान भी आगर को रेल से
जोड़ने का वादा जोर-शोर से किया गया। वर्ष 2012-13 के रेल बजट
में दूसरी बार इस मार्ग पर सिरे से सर्वे की स्वीकृति प्रदान की गई।
वर्ष 2014
के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल देवास से सांसद चुने गए।
उन्होंने भी जोर-शोर से रेल से इस क्षेत्र को जोड़ने का वादा किया। एक बयान में
भाजपा सांसद उंटवाल ने कहा कि राज्य सरकार इस लाइन के निर्माण के लिए 25 फीसदी खर्च उठाने को तैयार है। बाकी का 75 फीसदी
रेलवे वहन करेगा। पर इस मार्ग की बात आगे नहीं बढ़ी है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
(AGAR MALWA UJJAIN NARROW GAUGE RAIL, )
REFRENCE
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3 BOOK
- Poverty Amidst Prosperity: Survey of Slums By Pushpa Agnihotri, Page -145
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