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पहलेजा घाट पर खड़ा स्टीमर पीएस गोमती ( फोटो सौ- राबर्ट वी स्मिथ) |
वहीं
पहलेजा घाट से पटना आने में स्टीमर को एक घंटे 10 मिनट का समय लगता था। पहलेजाघाट
से सुबह 5.30 में पहली स्टीमर सेवा खुलती थी। इसके बाद 8.50, 11.15, 14.00, 17.45,
21.35 और रात के 23.30 बजे आखिरी स्टीमर सेवा चलती थी। ये समय अक्तूबर 1977 में
प्रकाशित न्यूमैन इंडियन ब्राड शा के मुताबिक हैं। पटना जंक्शन से सोनपुर तक के
रेल टिकट पर दूरी 42 किलोमीटर अंकित रहती थी। हालांकि ये दूरी बिल्कुल सही नहीं
कही जा सकती थी। पहलेजा घाट से सोनपुर रेलवे स्टेसन की दूरी 11 किलोमीटर थी।
पटना
के महेंद्रू घाट की तरफ गंगा नदी की धारा होती थी। इसलिए स्टीमर से सड़क बिल्कुल
पास होता था। पर पहलेजा घाट से पहलेजा रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए गंगा की रेत पर
आधा किलोमीटर से कुछ अधिक चलना पड़ता था।
गंगा
में गोमती और यमुना – रेलवे की ओर संचालित दो स्टीमरों के नाम पीएस गोमती और पीएस यमुना
हुआ करता था। दोनों स्टीमर पहलेजा घाट और महेंद्रू घाट के बीच अनवरत सेवाएं दिया
करते थे। गोमती का निर्माण कलकत्ता की स्टीमर कंपनी डिस्टांट ने किया था। ( अ हिस्ट्री आफ इंडियन म्यूटिनी, जार्ज डब्लू
फारेस्ट )
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अपने सफर पर स्टिमर ( फोटो सौ- राबर्ट वी स्मिथ) |
रेल
न्यूज विक्टोरिया के संपादक राबर्ट बी स्मिथ ने अपने महेंद्रू से पहलेजा के एक
स्टीमर सफर के दौरान इन स्टीमर की तस्वीरें संग्रहित की। उन्होंने इस सफर को
शानदार बताया और स्टीमर सेवा की खूब तारीफ की थी।
इस
फेरी सेवा का स्टीमर इसलिए कहते थे क्योंकि ये भाप इंजन से संचालित किए जाते थे। स्टीमर
में कोयला जलाकर भाप तैयार किया जाता था जिसकी शक्ति से स्टीमर के पानी को काटने वाले
चप्पू तेज गति से चलते थे। कई कुली बहाल थे जो बायलर से कोयला जलने के बाद राख को
बाल्टी से निकाल कर तेजी से दूसरी तरफ रखते जाते थे।
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गंगा में सफर पर पीएस गोमती (फोटो सौ- राबर्ट वी स्मिथ) |
फर्स्ट
क्लास और सेकेंड क्लास – स्टीमर में दो क्लास थे। नीचे का सारा हिस्सा सेकेंड क्लास होता था। बैठने के लिए कोई
बेंच कुरसी नहीं चाहे जहां मर्जी बैठ जाओ। खड़े रहो या फिर जहाज में घूमते फिरते
रहो। सेकेंड क्लास में आमतौर पर काफी भीड़ रहती थी। बड़ी संख्या में सामान बेचने
वाले वेंडर भी होते थे। वहीं उपरी मंजिल पर फर्स्ट क्लास का केबिन था। इसमें बैठने
के लिए गद्देदार बेंच बने हुए होते थे। मुझे याद है कि हमलोग सेकेंड क्लास का टिकट
लेकर ही पटना से पहलेजा घाट जाते थे। पर मैं जहाज में जाने के बाद पूरे जहाज में
चहल कदमी करता था। पिताजी मुझे जहाज में कहीं भी घूमने की छूट दे दे देते थे। तो
मैं सीढ़ियां चढ़कर फर्स्ट क्लास में भी चला जाता था। उसके ऊपर जहाज के कप्तान का
केबिन होता था। मैं उसके करीब जाकर उन्हें जहाज को चलाते हुए देखकर आनंदित होता
था। जब बोर होने लगता तो जहाज के डेक पर चला जाता और पानी को पीछे की ओर भागते हुए
देखता था। इसमें काफी आनंद आता था। जब घाट नजदीक आने लगता तो फिर जहाज में पिताजी
को ढूंढ कर उनके पास पहुंच जाता था। रेलवे के स्टीमर में एक कैंटीन भी हुआ करती
थी। वहां चाय बिस्कुट और हल्का नास्ता मिल जाता था।
साल 1982
के बाद गंगा में पुल बन जाने पर रेलवे की ये स्टीमर सेवा बंद हो गई। उसके बाद इन जहाजों का क्या हुआ। लंबे समय
तक यू हीं खड़ी रहीं। बाद में उन्हें पर्यटन के लिए इस्तेमाल किए जाने की योजना बनी।
- ----- विद्युत प्रकाश मौर्य
(GANGA, BIHAR, PATNA, PAHLEJA GHAT, STEAMER)
(GANGA, BIHAR, PATNA, PAHLEJA GHAT, STEAMER)
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