भले ही पटियाला स्टेट मोनो रेल इतिहास बन चुकी हो पर धुआं उड़ाती
सिटी बजाती मोनो रेल के रोमांच को दिल्ली के नेशनल रेल म्युजियम में महसूस किया जा
सकता है। रेल म्यूजियम में हर बुधवार और रविवार को यह रेल चलाई जाती है। आप इस पर
सवारी का भी आनंद उठा सकते हैं। टिकट थोडा महंगा जरूर है। एक आदमी के लिए 200
रुपये। पर आप सवारी नहीं करना चाहते तो भी इसे चलते हुए देख सकते हैं। इसके लिए
कोई दाम नहीं देना पड़ता।
रेल म्यूजिम में पटियाला मोनो रेल
यह संयोग है कि पटियाला मोनो रेल का एक इंजन और एक कोच आज भी चालू
हालत में नई दिल्ली के चाणक्यापुरी स्थित नेशनल रेल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे
हैं। इसके सवारी डिब्बे पूरी तरह लकड़ी के बने हुए थे। जो किसी बग्घी के जैसे लगते
हैं।
पटियाला में मोनो रेल का सफर बंद होने के बाद कई दशक तक इसकी सुध नहीं ली गई। कई कोच तो यूं ही पड़े पड़े कबाड़ में तब्दील हो गए। रेलों के इतिहास में रूचि
रखने वाले लेख मि. माइक स्टा ने 1962 में इन्हें ढूंढ निकाला। बाद में उनके प्रयास से
पटियाला मोनो रेल के कुछ कोच और लोकोमोटिव को अमृतसर में रेल यार्ड में संरक्षित किया गया।
दिल्ली में रेल म्यूजियम बनाए जाने के बाद इसे दिल्ली लाया गया। इसका एक इंजन
पीएसएमटी 4 रेल म्यूजियम में आराम फरमा रहा है।
चलते हुए देखना रोमांचक अनुभव - लंबे समय तक रेल संग्रहालय में इसे हर रविवार को छोटे से मार्ग पर चलाया जाता था। रेल संग्रहालय में इसे दुबारा संचालित करने के लिए यहां मोनो रेल का छोटा सा ट्रैक बनाया गया। सिंगल लाइन के ट्रैक के साथ सड़क पर चलने वाले बड़े पहिए के लिए भी पतली सी सड़क बनाई गई। अब रेल संग्रहालय में मोनो रेल इसी ट्रैक पर एक चक्कर लगा लेती है। कभी आगे से तो कभी रिवर्स में भी इसे संचालित किया जाता है। पुराने लोकोमोटिव का रखरखाव बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। कुछ बिगड़ जाने पर इसके पुर्जे मिलते नहीं हैं। लिहाजा इसे जुगाड़ से संचालित करना पड़ता है। इसी दौरान कुछ समय तक इसका संचालन बंद रहा है। पर 2013 में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनय मित्तल के कार्यकाल में रेलवे ने एक बार फिर इसका संचालन शुरू कराया। दो फरवरी 2013 में इसको रिस्टोर करके संचालित किया गया। तब इसे हर रविवार को चलाया जाता था।
साल 2019 में इसे हर रविवार और बुधवार को चलाया जा रहा था। रेल म्युजियम का प्रवेश टिकट लेने के बाद अगर आप मोनो रेल की सवारी करना चाहते हैं तो इसके लिए अलग से टिकट लेना पड़ता है। इसकी राइड का टिकट 200 रुपये रखा गया है। भले ही थोड़ा ज्यादा लगता हो पर धुआं उड़ाती रेल पर चढ़ने अतीत की यादों में खो जाने जैसा है। इसके नन्हें से इंजन को चालू करने के लिए पहले कोयला और पानी भरना पड़ता है। कोयला चलाने के बाद स्टीम तैयार होता है तब यह धुआं उड़ाती हुई अपने सफर के लिए तैयार हो जाती है।
-- विद्युत
प्रकाश मौर्य ( Email - vidyutp@gmail.com)
( PATIALA STATE MONO RAIL TRAMWAY , NATIONAL RAIL MUSEUM, DELHI, PSMT )