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1968 में आरा शहर से सासाराम के लिए जाती पैसेंजर ट्रेन ( लोकोमोटिव - Hunslet 2-4-2T 5F - Photo credit - www.internationalsteam.co.uk ) |
लंदन में
बसे अर्थशास्त्री जगन्नाथ गिरी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं किस तरह वे आरा सासाराम
लाइट रेलवे में सफर करके संझौली स्टेशन पर उतरते थे और अपने बटाई पर दिए गए खेतों
से अनाज वसूलने जाते थे। (An Autobiography of Lessons Learned - By Jagannath Giri )

भोजपुर जिले के पीरो प्रखंड के
कुसुम्ही गांव के लोगों को ये छोटी रेल इतनी भा गई थी कि गांव के लोगों इस रेल के
सफर पर एक भोजपुरी गीत तैयार कर लिया था और शाम को सांस्कृतिक मंडली में लोग इस
गीत को इस साज बाज के साथ गाते थे।
शाहाबाद जिले
में लाइट रेलवे का निर्माण
बिहार के
पुराने शाहाबाद जिले का भौगोलिक आकार काफी बड़ा था। अब शाहाबाद जिले के विभाजन
होकर चार जिले बन चुके हैं। भोजपुर, रोहतास
बक्सर और कैमूर। बीसवीं सदी के आरंभ में जिले में पक्की सड़कों का जाल बहुत कम था।
इसलिए इस बड़े जिले में परिवहन के लिए रेलमार्ग की जरूरत महसूस की गई। बीसवीं सदी
के शुरूआत के साथ ही ग्रैंड कोर्ड (हावड़ा दिल्ली मुख्य लाइन) और मुगलसराय पटना
रेल मार्ग को जोड़ने के लिए लाइट रेलवे चलाने की योजना बनी। मार्टिन एंड बर्न की
ओर से आरा सासाराम लाइट रेलवे कंपनी का गठन 19 अक्तूबर 1909 को एक प्राइवेट
लिमिटेड कंपनी के तौर पर हुआ। इससे पहले 15 अक्तूबर 1909 को मार्टिन कंपनी लिमिटेड
और शाहाबाद जिला परिषद के बीच लाइट रेलवे निर्माण के लिए 99 साल के लीज पर जमीन
देने का समझौता हुआ।
इस मार्ग पर
रेल लाइन का निर्माण 1909 में जाकर शुरू हुआ। इस रेल मार्ग के लिए युद्धस्तर पर
निर्माण कार्य चला। लगभग 100 किलोमीटर की इस परियोजना पर पांच साल में काम पूरा कर
लिया गया। साल 1914 में आरा सासाराम लाइट रेलवे पर भाप इंजन से चलने वाली
रेलगाड़ियां दौड़ने लगीं। इस रेल मार्ग में 100 किलोमीटर के बीच 15 रेलवे स्टेशन
थे। यह एक सिंगल ट्रैक रेलमार्ग था जिसमें नदी और नहरों पर कई पुल भी बनाए गए थे।
इसमें बिक्रमगंज में काव नदी पर पुल बनाया गया था तो कुछ नहरों पर भी पुल बनाने की
जरूरत पड़ी थी। यह एक नैरो गेज रेल परियोजना थी जिसकी पटरियों की चौड़ाई 2 फीट 6
ईंच यानी 76 सेंटीमीटर होती है। आरा सासाराम के बीच पैसेंजर ट्रेनों के अलावा
मालगाड़ियों का भी संचालन किया जाता था।
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पीरो रेलवे स्टेशन पर खड़ी पैसेंजर ट्रेन 5एफ (1968 ) - Photo credit - www.internationalsteam.co.uk ) |
शाहाबाद जिला धान उत्पादन के लिहाज से बिहार का प्रमुख जिला था लिहाजा ये लाइट रेलवे जिले के गांवों के लिए व्यापारिक महत्व भी रखती थी। 1947 में देश आजाद होने के बाद भी इस लाइट रेलवे का सफर बदस्तूर जारी रहा। ज्यादातर निजी कंपनियों और राजे रजवाड़ों द्वारा चलाई जाने वाली रेल परियोजनाओं का राष्ट्रीयकरण हो गया।
पर इस
रेलमार्ग पर रेलगाड़ियों का संचालन मार्टिन एंड बर्न कंपनी के हाथ में ही रहा। हालांकि 4 अप्रैल 1951 को जिला परिषद शाहाबाद
ने एक पत्र लिखकर मार्टिन कंपनी के समाने आरा सासाराम लाइट रेलवे के समस्त
इन्फ्रास्ट्रक्चर को खरीदने का विकल्प पेश किया। हालांकि ऐसा हो नहीं सका। आरा
सासाराम लाइट रेल 1978 तक यानी 64 साल क्षेत्र के लोगों को सेवाएं देती रही।
- विद्युत
प्रकाश मौर्य ( ASLR 3)
( ARA SASARAM LIGHT RAILWAY, MARTIN AND BURN, BIHAR )
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