सन 1943 में 3 फरवरी को डेहरी रोहतास लाइट रेलवे को एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के तौर पर पंजीकृत कराया गया। इसका पंजीकृत कार्यालय डालमियानगर में ही था। तब इसकी प्राधिकृत पूंजी 60 लाख रुपये दर्शाई गई थी।
देश की आजादी के बाद 1950 से 1960 के दशक में जब डेहरी रोहतास रेल मार्ग के बेहतर दिन चल रहे थे तब दो पैसेंजर ट्रेनें रोज डेहरी आन सोन और तिउरा पीपराडीह के बीच चलाई जाती थीं। ये सफर कुल 67 किलोमीटर का हुआ करता था।
इसके अलावा इस मार्ग पर मार्बल और पत्थरों की ढुलाई होती थी। जिन्हें डेहरी में ब्राडगेज लाइन तक पहुंचाया जाता था। इस रेलवे ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे रेल कंपनियों से सेकेंड हैंड यानी पुराने इंजनों को भी खरीदा। 1959 में सेंट्रल रेलवे से हडसवेल क्लार्क का लोको तो के क्लास 2-6-2 लोको को कालका शिमला रेल से खरीदा गया। वहीं केर स्टूअर्ट 2-6-4 इंजन को मार्टिन एंड कंपनी के शाहदरा सहारनपुर रेल मार्ग से खऱीदकर मंगाया गया।
रेल मार्ग के संचालन के लिए कंपनी ने तकरीबन 413 एकड़ जमीन लीज पर प्राप्त की थी। इस लीज पर प्राप्त जमीन के एवज में कंपनी शाहाबाद डिस्ट्रिक्ट बोर्ड को सालाना 10 हजार रुपये की राशि दिया करती थी।
सन 1950 से 1970 का समय डेहरी रोहतास लाइट रेलवे के लिए सबसे बेहतरीन काल खंड तब इस मार्ग पर यात्री भी खूब थे और सामानों ढुलाई का काम भी चल रहा था।
देश की आजादी के बाद 1950 से 1960 के दशक में जब डेहरी रोहतास रेल मार्ग के बेहतर दिन चल रहे थे तब दो पैसेंजर ट्रेनें रोज डेहरी आन सोन और तिउरा पीपराडीह के बीच चलाई जाती थीं। ये सफर कुल 67 किलोमीटर का हुआ करता था।
इसके अलावा इस मार्ग पर मार्बल और पत्थरों की ढुलाई होती थी। जिन्हें डेहरी में ब्राडगेज लाइन तक पहुंचाया जाता था। इस रेलवे ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे रेल कंपनियों से सेकेंड हैंड यानी पुराने इंजनों को भी खरीदा। 1959 में सेंट्रल रेलवे से हडसवेल क्लार्क का लोको तो के क्लास 2-6-2 लोको को कालका शिमला रेल से खरीदा गया। वहीं केर स्टूअर्ट 2-6-4 इंजन को मार्टिन एंड कंपनी के शाहदरा सहारनपुर रेल मार्ग से खऱीदकर मंगाया गया।
रेल मार्ग के संचालन के लिए कंपनी ने तकरीबन 413 एकड़ जमीन लीज पर प्राप्त की थी। इस लीज पर प्राप्त जमीन के एवज में कंपनी शाहाबाद डिस्ट्रिक्ट बोर्ड को सालाना 10 हजार रुपये की राशि दिया करती थी।
सन 1950 से 1970 का समय डेहरी रोहतास लाइट रेलवे के लिए सबसे बेहतरीन काल खंड तब इस मार्ग पर यात्री भी खूब थे और सामानों ढुलाई का काम भी चल रहा था।
डेहरी
रोहतास रेल बंद होने के समय
1970
के बाद डेहरी रोहतास मार्ग पर अच्छी सड़क बन जाने के बाद छोटी लाइन की इस रेल में
यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी। वहीं 1980 के दशक आते आते रोहतास इंडस्ट्रीज
और इसके मार्ग पर अमझोर और बंजारी में चलने वाले उद्योग भी एक एक कर बंद होने लगे।
इन उद्योगों की बंदी और पैसेंजर ट्रेन में यात्रियों कमी के कारण रेल मार्ग घाटे
में चलने लगा।
देश में ज्यादातर रेल मार्ग ब्राडगेज ( 167 सेंटीमीटर) की पटरियों पर हैं, उनकी गति काफी अच्छी है। पर अब धीमी गति के कारण नैरो गेज रेलवे लाइनों का संचालन घाटे का सौदा साबित होने लगा था। इन सब कारणों से डेहरी रोहतास रेल मार्ग को बंद करने का फैसला लिया गया।
अंततोगत्वा 16 जुलाई 1984 को डेहरी रोहतास रेल मार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया गया। पूरी दुनिया ब्राडगेज पर चल रही थी तब 1970 के दशक में डेहरी रोहतास रेलमार्ग फर्राटे भर रहा था इसलिए 1970 के दशक तक ये रेल मार्ग यूरोप में भी चर्चा का विषय था। पर सन 1984 में इस रेलमार्ग का बंद होना भारतीय मीडिया में कोई बड़ी खबर नहीं बनी।
देश में ज्यादातर रेल मार्ग ब्राडगेज ( 167 सेंटीमीटर) की पटरियों पर हैं, उनकी गति काफी अच्छी है। पर अब धीमी गति के कारण नैरो गेज रेलवे लाइनों का संचालन घाटे का सौदा साबित होने लगा था। इन सब कारणों से डेहरी रोहतास रेल मार्ग को बंद करने का फैसला लिया गया।
अंततोगत्वा 16 जुलाई 1984 को डेहरी रोहतास रेल मार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया गया। पूरी दुनिया ब्राडगेज पर चल रही थी तब 1970 के दशक में डेहरी रोहतास रेलमार्ग फर्राटे भर रहा था इसलिए 1970 के दशक तक ये रेल मार्ग यूरोप में भी चर्चा का विषय था। पर सन 1984 में इस रेलमार्ग का बंद होना भारतीय मीडिया में कोई बड़ी खबर नहीं बनी।

रोहतास इंडस्ट्रीज के तीन अलग अलग साइट पर डेहरी रोहतास रेलवे की पटरियों पर दौड़ने वाले सात लोको (इंजन) चुपचाप आराम फरमा रहे थे। रिपोर्ट के मुताबिक वे अच्छी हालात में थे। उन्हें देखकर लगता था कि अगर कोशिश की जाए तो वे एक बार फिर पटरी पर दौड़ने के लिए तैयार हो जाएंगे।
दो पुराने ईस्ट इंडियन रेलवे के 0-6-4 टैंक लोको बिल्कुल अच्छे हाल में सुस्ता रहे थे। वहीं चार लोको इस हाल में थे कि उन्हें मरम्मत की जरूरत लग रही थी। वहीं केर स्टूअर्ट इंजन भी 1980 के दशक में अपनी सेवाएं बंद करने के बाद खड़ा था। इन इंजनों को देखकर ऐसा लगता था कि वे सफर पर चलने के लिए अभी भी तैयार हैं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य ( DRLR2)
( DEHRI ROHTAS LIGHT RAILWAY COMPANY LIMITED, DALMIANAGAR )
( DEHRI ROHTAS LIGHT RAILWAY COMPANY LIMITED, DALMIANAGAR )
No comments:
Post a Comment