अगरतला से मेरी वापसी की ट्रेन
अगरतला लमडिंग एक्सप्रेस है जो यहां से शाम को 4 बजे खुलती है। हालांकि इतनी जल्दी त्रिपुरा को अलविदा कहने की इच्छा नहीं हो रही है। पर मैं बट्टला चौराहे से शेयरिंग आटोरिक्शा लेकर समय से पहले रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया हूं। शाम को अगरतला रेलवे स्टेशन काफी सुंदर लग रहा है।
रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश करने पर देखता हूं कि बंगाल के स्टेशनों की तरह ही अगरतला रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर खूबसूरत बाजार सजा है। आप अपनी जरूरत की कोई चीज नहीं खरीद सके हैं तो यहां से खरीद सकते हैं। फिलहाल रोज शाम को यही एक रेल यहां से खुलती है। प्लेटफार्म पर बड़ी संख्या में यात्री ट्रेन के इंतजार में खड़े हैं।
रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश करने पर देखता हूं कि बंगाल के स्टेशनों की तरह ही अगरतला रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर खूबसूरत बाजार सजा है। आप अपनी जरूरत की कोई चीज नहीं खरीद सके हैं तो यहां से खरीद सकते हैं। फिलहाल रोज शाम को यही एक रेल यहां से खुलती है। प्लेटफार्म पर बड़ी संख्या में यात्री ट्रेन के इंतजार में खड़े हैं।
त्रिपुरा का स्वर्णकाल आया - रेलगाड़ी
अपने नीयत समय पर चल पड़ी है। इस रेलगाड़ी में स्लीपर क्लास में मेरा आरक्षण है। ट्रेन में त्रिपुरा
स्टेट राइफल्स के एक जवान मिले। उनसे बातचीत होने लगी। उन्हें पता चला कि मैं एक सैलानी के तौर पर त्रिपुरा घूमन आया था तो उन्होंने बताया कि अभी त्रिपुरा विकास के सोन काल ( स्वर्ण
काल) से गुजर रहा है।
वे कहते हैं 1993 से 2005 के बीच राज्य के हालत बहुत बुरे थे। उग्रवादी संगठनों का ऐसा आतंक था मैं भी अपने गांव में नहीं जा सकता था। आज आप एक सैलानी के तौर पर भी बेधड़क किसी भी गांव में जा सकते हैं। इस बदलाव का श्रेय वे मुख्यमंत्री माणिक सरकार की नीतियों को देते हैं। उनकी बातों का समर्थन साथ चल रहे नई गोपाल देवनाथ भी करते हैं।
संघर्ष करना जानते हैं राज्य के लोग- ट्रेन में हमारे साथ गुवाहाटी तक जा रहे नाई गोपाल देबनाथ कहते हैं कि त्रिपुरा के लोग अपने हक के लिए लड़ना जानते हैं। मीटर गेज को ब्राडगेज में बदलने का काम तेज करने के लिए लोगों ने संघर्ष किया। अब राज्य के आखिरी छोर सबरूम तक ब्राडगेज लाइन के निर्माण का काम जारी है। आप अगली बार त्रिपुरा आएंगे तो उदयपुर, गोमती जिले के पर्यटक स्थलों की सैर और सबरूम तक रेल से जा सकेंगें। बातों बातों में ट्रेन आगे बढ़ती जा रही थी। जिरानिया, कुमारघाट, अंबासा और फिर धर्मनगर आ गया।
अब रात हो चुकी है और हमारी
ट्रेन असम में प्रवेश कर चुकी है। करीमगंज, बदरपुर स्टेशनों को पीछे छोड़कर कार्बी आंगलांग का इलाका आ गया है। अचानक
सहयात्री कहते हैं कि ट्रेन की खिड़कियां बद कर दें। हालांकि मैं खिड़की से रात में भी
नजारे देखना चाहता था, पर लोगों ने समझाया, असम आ गया है...कई बार लोग बाहर से ढेले आदि मार कर ट्रेन पर हमला कर देते
हैं। बाद अखबारों में पढ़ा कि डिमा हसाओ जिले में पिछले साल ट्रेन पर हुए उग्रवादी
हमले के बाद रात में ट्रेनों का परिचालन बंद कर दिया गया था। हालांकि अब रात में
रेलगाड़ी चल रही है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( AGARTALA, RAIL JOURNEY, GOOD TIMES )
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