त्रिपुरा
राज्य का नाम माता त्रिपुर सुंदरी के नाम पर पड़ा है। अगरतला शहर से 55 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे नंबर 44 पर उदयपुर नामक एक कस्बा है जहां त्रिपुर सुंदरी का मंदिर स्थित है। गोमती नदी के तट पर स्थित उदयपुर कभी त्रिपुरा के राजतंत्र की राजधानी हुआ करता
था।
कूर्म पीठ है माताबाड़ी - उदयपुर से पांच किलोमीटर आगे है माताबाड़ी। त्रिपुरा के लोग इस मंदिर को
माताबाड़ी कहते हैं। माताबाड़ी यानी मां का घर। यह देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस कूर्म पीठ
कहा गया है। मंदिर का वास्तु भी कछुए की पीठ की तरह का है। यहां सती के बाएं पांव
का अंगूठा गिरा था। ये मंदिर 11वीं सदी का बना हुआ
बताया जाता है।
सोलहवीं सदी
का मंदिर - वर्तमान में यहां जो मंदिर की संरचना दिखाई देती है उसका गर्भ गृह 1501 में महाराजा ध्यान माणिक्य ने बनवाया था। मंदिर का परिसर बड़ा ही साफ
सुथरा, मनोरम और सुंदर है। यहां सालों भर हर रोज बड़ी संख्या
में श्रद्धालु आते हैं। वहीं मंदिर परिसर में दीवाली पर बहुत बड़ा मेला लगता है।
अभी भी जारी है बलि की प्रथा - माताबाड़ी के इस मंदिर में वैसे सालों भर रोज यहां बकरा और भैंसे आदि की बलि चढ़ाई जाती है। यह देश के उन कुछ दर्जन मंदिरों में शामिल है जहां अभी बलि की प्रथा बंद नहीं कराई जा सकी है।
माता का निरामिष दिन - पर हर पक्ष की दसमी की तारीख माता के निरामिष भोग का दिन होता है। मैं जिस दिन पहुंचा हूं संयोग से यह निरामिष भोज का दिन है। इस दिन कोई बलि नहीं चढ़ती। पुजारी जी मुझे ये जानकारी देते हैं तो बड़ा संतोष होता है कि आज बलि का दिन नही है।
हर रोज सुबह
आठ बजे मंदिर के पट खुलते हैं और माता का पहला दर्शन होता है। मंदिर के गर्भ गृह
में श्रद्धालुओं के जाने की मनाही है। पुजारी आपका नाम और गोत्र पूछते हैं और आपका
प्रसाद माता के चरणों में अर्पित करते हैं। नवरात्र के समय और छुटटियों के दिन
मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर के पीछे कल्याण सागर सरोवर |
मंदिर के पीछे विशाल कल्याण सागर सरोवर - मंदिर के पीछे कल्याण सागर सरोवर है जो साढ़े छह एकड़ में फैला हुआ है। इस सरोवर का निर्माण महाराजा कल्याण मल माणिक देव वर्मा ने 1501 में करवाया था। सरोवर में स्नान करने के लिए सुंदर घाट बने हुए हैं। सरोवर में मछलियां पाली गई हैं। श्रद्धालु इन्हें दाना भी देते हैं।
त्रिपुर
सुंदरी मंदिर परिसर और सरोवर मिलकर अदभुत आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करते हैं।
परिसर में आगे और पीछे कई दर्जन पूजा और प्रसाद की दुकाने हैं। खाने पीने के लिए
भी कई शाकाहारी होटल हैं। मंदिर के आसपास अब ठहरने के लिए कुछ सस्ते होटल भी
उपलब्ध हो गए हैं। पास में बाजार और बैंक की शाखा भी है।
सरकार देती है मंदिर को दान - अब त्रिपुर सुंदरी मंदिर की पूरी व्यवस्था सरकार देखती है। हमें यह पता चला कि वामपंथी सरकार इस मंदिर के लिए हर महीने एक निश्चित राशि साफ सफाई और व्यवस्था के लिए जारी करती है। दरअसल इस मंदिर को राज्य सरकार अपने राज्य का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण मंदिर मानती है। इसलिए इसके सौंदर्यीकरण और इंतजामात पर सरकार की खास नजर रहती है। हमें मंदिर परिसर की सफाई व्यवस्था उत्तम कोटि की नजर आती है।
यूपी के
कन्नौज से आए थे पंडित - जब त्रिपुर सुंदरी का मंदिर बनकर तैयार हो गया तब उसमें पूजा के लिए
योग्य पुजारी का संकट आया। तब त्रिपुरा के राजा ने उत्तर भारत से पंडित बुलाने का
फैसला लिया। अपने विद्वान मंत्रियों की सलाह पर त्रिपुर सुंदरी मंदिर में पूजा के
लिए महाराज ने तब उत्तर प्रदेशके कन्नौज से दो पंडित परिवारों को बुलाया। इन
पुजारियों को सपरिवार उदयपुर में बसाया गया।
तब कन्नौज से लक्ष्मी नारायण पांडे और गदाधर पांडे नामक दो पुजारी परिवार के साथ यहां पहुंचे थे। अब उन दो परिवारों का कुनबा काफी बढ़ चुका है। इन्ही पुजारियों का परिवार माता त्रिपुर सुंदरी के मंदिर में पूजा पाठ करता है। ये था उत्तर और पूरब का सुंदर संगम।
कैसे पहुंचे
- त्रिपुर
सुंदरी का मंदिर उदयपुर शहर से पांच किलोमीटर आगे है। उदयपुर के बस स्टैंड से माताबाड़ी के
लिए शेयरिंग आटो रिक्शा भी मिल जाते हैं। अगरतला से उदयपुर के लिए हमेशा बस और टैक्सी
सेवा उपलब्ध है। अब उदयपुर अगरतला से रेल सेवा से भी जुड चुका है। माताबाड़ी के
लिए निकटतम रेलवे स्टेशन उदयपुर त्रिपुरा (UDPU)
है। दूसरा निकटम रेलवे स्टेशन सबरूम लाइन पर गरजी (GARJI) है।
कहां ठहरें - उदयपुर शहर में मंदिर के पास ठहरने के लिए
त्रिपुरा सरकार ने गुनाबती यात्री निवास भी बनवाया है। वैसे उदयपुर शहर में कई और रियायती होटल हैं जहां पर
ठहरा जा सकता है।
मंदिर परिसर में प्रसाद की कई दुकाने हैं। यहां प्रसाद में मुख्य रूप से पेड़ा चढ़ाया जाता है। इनमें से एक है छत्रास्वरि पेड़ा भंडार। मैं इस दुकान में अपने जूते बैग आदि जमा करके दर्शन के लिए जाता हूं। माता बाड़ी मंदिर परिसर में इस पेड़े वाले दुकानदार ने हमें उदयपुर और मंदिर के बारे में ढेर सारी रोचक जानकारियां दीं। हम उनका दिल से धन्यवाद देना चाहेंगे। दूर देस में बहुत कम लोग मिलते हैं जो आपके साथ दिल से बातें करें और अच्छी अच्छी जानकारियां दें।
उदयपुर में कई और मंदिर - माणिक्य राजाओं की राजधानी रहे उदयपुर में गुणावती समूह के मंदिर और भुवनेश्वरी मंदिर भी देखा जा सकता है। भुवनेश्वरी देवी के मंदिर का जिक्र कविगुरू रविंद्र नाथ टैगोर के दो नाटकों में राजर्षि और विसर्जन में भी आता है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
(TRIPURA, TRIPUR SUNDARI TEMPLE, UDAIPUR, SHAKTIPEETH )
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