सिलचर से चलने के बाद हमारी रेलगाड़ी बदरपुर जंक्शन नामक बड़े स्टेशन पर रूकी। बराक वैली
का सफर पूरा करने के साथ आ जाता है बदरपुर रेलवे स्टेशन। असम का एक छोटा औद्योगिक
शहर। यहां पेपर मिल और कुछ और उद्योग हैं। शहर में चहल पहल दिखाई देती है। रेलवे
स्टेशन के प्लेटफार्म पर खाने पीने का अच्छा इंतजाम है। बदरपुर जंक्शन से लमडिंग
और अगरतला जाने के लिए रास्ता बदलता है। मीटर गेज लाइन सिलचर से बदरपुर आती है।
इसके बाद एक रास्ता करीमगंज होते हुए अगरतला जला जाता है तो दूसरा हाफलौंग होते
हुए लमडिंग।

शंकर राज
घोष बताते हैं कि ये कैंटीन उनके दादा जी ने 1958 में शुरू की। दादा जी थल सेना में अधिकारी थे। लेकिन एक
दिन उनके इटली जाने का आदेश आया। उनको लगा सात समंदर पार जाने से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा
सो जनाब ने फौज की नौकरी छोड दी और लगे रेलवे की कैंटीन चलाने। आज का दौर होता तो
कोई भी विदेश में पोस्टिंग के नाम पर बल्लियों उछलने लगता। दादा जी के बाद पिता जी
एमके घोष ने कैंटीन चलाई। अब पोता का शंकर राज घोष का जमाना आ गया है।
यूपी से
गया परिवार - अब घोष बाबू के बारे में एक और मजेदार बात। घोष बाबू का परिवार
वाराणसी का रहने वाला है। उनके टाइटिल घोष पर बिल्कुल मत जाइए। वे लोग मूल रूप से
यादव हैं। बंगालियों की टाइटिल तो जैसा देश वैसा वेश के कारण धारण किया है। आगे और
भी राजफाश करते हैं, वे भले ही असम के बदरपुर में जम गए हैं पर शादी विवाह अपने
यूपी के यादवों में ही करते हैं। असम के इस रेलवे स्टेशन पर एक बनारसी भाई को देखकर
मन खुश हो जाता है। हमारी उनके मुलाकात साल 2013 में हो रही है। अब साल 2016 में उन्हें एक बार फिर याद करता हूं। सिलचर अगरतला रेलवे लाइन अब ब्राड गेज में बदल चुका है। यहां अब बड़ी लाइन की गाड़ियां दौड़ रही हैं। आमान परिवर्तन के दौरान ये स्टेशन कुछ महीने पूरी तरह बंद रहा था। पर उम्मीद है घोष बाबू का कैंटीन अभी भी गुलजार होगा। आप कभी उधर से गुजरें तो घोष बाबू से जरूर मुलाकात करें।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( बराक वैली एक्सप्रेस, BADARPUR JN, ASSAM, GOOD FOOD, Barak
Valley Express-4)
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