मैं कोहिमा के बस स्टैंड पर
जैसे ही पहुंचा तो सुनता हूं, अखबार
बेचने वाला हॉकर मोबाइल पर भोजपुरी में बातें कर रहा था। बड़े प्रेम से घर का कुशल
क्षेम पूछ रहा था। पूछने पर पता चला भाई मोतिहारी का रहने वाले हैं। यहां कई सालों
से अखबार का काम कर रहे हैं। आगे बढ़ने पर जूता बनाने वाले मोची बाबू बलिया निवासी
मिले।वहीं स्टेशनरी दुकान वाले बिहारी बाबू। तो यहां के एकमात्र शाकाहारी व्यंजन परोसने वाले यूपी राइस होटल वाले भी यूपी के बलिया जिले के निवासी हैं।
पूरे कोहिमा शहर में हार्डवेयर,
कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन, राशन की दुकान से लेकर सब्जी बेचने वाले ज्यादातर दुकानदार लोग भोजपुरी इलाके के हैं। पूरे
कोहिमा शहर की बात करें तो 70 फीसदी दुकानदार बिहार यूपी के हैं। वे कई दशकों से
कोहिमा में पहुंच गए हैं और यहां कारोबार कर रहे हैं। यहां लोग परिवार के साथ रहते
हैं। साल में एक या दो बार अपने गांव का भी चक्कर लगा आते हैं। लेकिन तमाम मुश्किलात
के बीच नागालैंड के न होकर भी नागालैंड के हो ही गए हैं। नागालैंड के नहीं हुए हैं
क्योंकि यहां वे जमीन खरीद कर स्थायी तौर पर बस नहीं सकते। यहां की
मतदाता सूची में
नाम नहीं जुड़
सकता। अपने पूजा स्थल मंदिर आदि नहीं बना सकते। अगर पूजा पाठ करना है तो घर
के अंदर ही करना पड़ता है।
कोहिमा शहर में घूमते हुए लगता
है कि पूरा यूपी बिहार यहां बसता है। सड़कों पर बेधड़क भोजपुरी जुबान बोलते हुए लोग मिल जाते हैं। अगर कोई बिहार यूपी से
घूमने यहां पहुंच गया तो अपने जवार के लोगों के साथ बड़े प्रेम से पेश आते हैं।
सिर्फ कोहिमा ही नहीं नागालैंड के कई छोटे कस्बों और शहरों तक भी भाई लोग पहुंच गए
हैं तिजारत करने। अब यहां की ठंडी आबोहवा में सालों से जम गए हैं तो फिर रम भी गए
हैं।
भले यूपी बिहार से आए लोगों ने कोहिमा
को इन्होंने अपना लिया है
पर कोहिमा ने इन्हें
पूरी तरह नहीं अपनाया। एक तरह से
दोयम दर्जे का जीवन है यहां पर। कोहिमा में रहने वाले बिहार यूपी के लोगों अपना
व्यापारिक इनर लाइन परमिट साथ रखना पड़ता है। इस परमिट को ही वे लोग समय सीमा खत्म
होने पर नवीकृत कराते रहते हैं। कभी यहां की स्थायी नागरिक नहीं हो सकते।
अंडर ग्राउंड टैक्स जैसी कई और परेशानियां हैं। पर यूपी बिहार के लोग कारोबार करना जानते हैं। वहीं दुकानदारी करना नागा लोगों के खून में नहीं है। वे अपने स्वभाव के कारण बिजनेस मे ज्यादा सफल नहीं हो पाते, वहीं बिहार यूपी के लोग अपने श्रम के साथ अपनी व्यवहार कुशलता के कारण हर जगह सफल हो जाते हैं। इसलिए बिहार यूपी के लोग यहां भी कारोबार में सफल हैं। पर बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनका मानाना है कि नागरिकता नहीं मिली तो क्या हुआ, अब इनका यहां से जाने का भी दिल भी नहीं करता। भला जो बात कोहिमा में है वह बलिया गाजीपुर में कहां।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
( UP AND BIHAR PEOPLE, NO TEMPLE IN KOHIMA )
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