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मां कामाख्या मंदिर का प्रवेश द्वार |
बचपन में कोर्स की
किताबों में कंवरू कामख्या के बारे में पढ़ा था। खासकर भोजपुरी इलाके में कामाख्या
मंदिर में की जाने वाले तंत्र मंत्र साधना के बारे में खूब कहानियां सुनी थी। इस
मंदिर को लेकर भोजपुरी समाज में कई तरह के मिथक और गल्प प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यहां खास तौर पर नवरात्र में लोग तंत्र सिद्धी के लिए जाते हैं। यहां से सिद्ध होकर लोग तरह तरह के चमत्कार करते हैं। जितने मुंह उतनी बातें। पर हिंदी पट्टी के गांव-गांव में कंवरू कामाख्या का बड़ा नाम है। इसलिए
गुवाहाटी पहुंचने के साथ ही मां कामाख्या के दरबार में हाजिरी लगानी जरूरी थी।
तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी - काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के
बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। मंदिर के गर्भगृह में
कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। इसकी जगह एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन
देवी की योनि को दर्शाता है।
एक प्रकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीला रहता है।
इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भक्तजन भगवान शिव के नववधू के रूप में भी करते हैं।
माना जाता है कि देवी मुक्ति को स्वीकार करती हैं और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। यह पीठ माता के सभी शक्तिपीठों के बीच माहापीठ के तौर पर माना जाता है।
गुवाहाटी से ठीक पहले ब्रह्मपुत्र नद पर रेल पुल आता है। इसे सरायघाट का पुल कहते हैं। इस रेल पुल के साथ ही सड़क पुल भी है। नीचे नीचे रेल तो ऊपर से सड़क। ये पुल नेशनल हाईवे नंबर 31 पर है। न्यू जलपाईगुड़ी की ओर आ रही ये सड़क गुवाहाटी को शेष भारत से जोड़ती है। ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल से पहले चांगसारी नामक रेलवे स्टेशन आता है। कई बार रेलगाड़ियां देर तक इस स्टेशन पर रूक जाती हैं क्योंकि पुल पर सिंगल रेल लाइन है, आगे जाने का सिग्नल नहीं मिलता।
ये कामरूप जिले में
पड़ता है। मां कामाख्या के नाम पर बने इस रेलवे स्टेशन से अब कई ट्रेनें बनकर चलती
हैं। कामाख्या को गुवाहाटी के बाद एक रेल टर्मिनल के तौर पर विकसित किया जा रहा
है। पूर्वोत्तर में कहीं जाने से पहले मैं मां कामाख्या के आशीर्वाद लेना चाहता था
इसलिए मैं ब्रह्मपुत्र मेल से कामाख्या में ही उतर गया। कामाख्या रेलवे स्टेशन का
नूतन भवन भी मंदिर की शक्ल में बनाया गया है।

कैसे पहुंचे - मां कामाख्या के मंदिर के लिए आप गुवाहाटी रेलवे स्टेशन या फिर कामाख्या रेलवे स्टेशन कहीं से भी उतर कर जा सकते है। यह मंदिर दोनों स्टेशनों के बीच में स्थित है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के पलटन बाजार से आप बस या आटो से जुलाकबाड़ी की तरफ जाते हैं कामाख्या मंदिर के प्रवेश द्वार के पास उतरें। यहां से मंदिर 3 किलोमीटर दूर पहाडी पर स्थित है।
असम में महिलाएं करती थीं
काला जादू
कामाख्या देवी मंदिर परिसर में नवरात्रा में तंत्र साधना में जुटे लोग। |
असम को ही पुराने समय में
कामरूप प्रदेश के रूप में जाना जाता था। कामरुप प्रदेश को तन्त्र साधना के गढ़ के
रुप में दुनिया भर में बहुत नाम रहा है। पुराने समय में इस प्रदेश में मातृ
सत्तात्मक समाज व्यवस्था प्रचलित थी, यानि कि यंहा बसने वाले परिवारों में महिला ही घर की मुखिया होती थी।
कामरुप की स्त्रियां भी तंत्र साधना में बड़ी ही प्रवीण होती थीं।
भेड़ बकरा बना कर रख लेती थीं
महिलाएं - कामरुप में श्मशान साधना
व्यापक रुप से प्रचलित रहा है। इस प्रदेश के विषय में तमाम आश्चर्यजनक कथाएं कही
सुनी जाती हैं। पुरानी किताबों में यहां के काले जादू के विषय में बड़ी अद्भुत
बातें पढने को मिलती हैं। कहा जाता है कि बाहर से आए लोगों को यहां की महिलाओं
द्वारा भेड़, बकरी बनाकर रख लिया करती थीं। इसलिए लोग असम
जाने से डरते थे। खास तौर पर महिलाएं नहीं चाहती थीं कि उनका पति असम की ओर जाए।
असम यानी कामरूप प्रदेश की तरह बंगाल को भी तांत्रिक साधनाओं और चमत्कारों का गढ़
माना जाता रहा है।

कैसे पहुंचे - मां कामाख्या के मंदिर के लिए आप गुवाहाटी रेलवे स्टेशन या फिर कामाख्या रेलवे स्टेशन कहीं से भी उतर कर जा सकते है। यह मंदिर दोनों स्टेशनों के बीच में स्थित है। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के पलटन बाजार से आप बस या आटो से जुलाकबाड़ी की तरफ जाते हैं कामाख्या मंदिर के प्रवेश द्वार के पास उतरें। यहां से मंदिर 3 किलोमीटर दूर पहाडी पर स्थित है।
प्रवेश द्वार से मंदिर तक जाने के लिए बसें और शेयरिंग टैक्सियां चलती हैं। बस में 10 रुपये तो टैक्सी वाले चढ़ाई के समय 20 रुपये किराया लेते हैं। वहीं उतरते समय 10 रुपये में भी लेकर आते हैं। आप पदयात्रा करके भी मां के मंदिर तक पहुंच सकते हैं। अगर आप अपने वाहन से पहुंचे हैं तो मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले विशाल पार्किंग का भी इंतजाम है।
--- विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( MAA KAMAKHYA TEMPLE, SHAKTIPEETH, GUWAHATI, ASSAM )
असम और पूर्वोत्तर की यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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