वह मई 1998 के आखिरी दिन थे। तब
दिल्ली में गर्मी चरम पर होती है। अक्सर ऐसे मौसम में लोग पहाड़ों पर घूमने जाते
हैं। अचानक हमारे पास राष्ट्रीय युवा योजना से संदेश आया कि इसके देश भर के वरिष्ठ
कार्यकर्ताओं की चार दिन की एक बैठक जौरा आश्रम (जिला मुरैना,मध्य प्रदेश) में रखी
गई है। हालांकि जौरा आश्रम तो मैं कई बार जा चुका था। पर देश भर के कुछ पुराने
साथियों संग चर्चा के इरादे से हमलोग जौरा के लिए चल पड़े। मैं और साथ में अनुज
तड़ित प्रकाश। सुबह सुबह दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन से ताज एक्सप्रेस में सवार
हुए और मुरैना स्टेशन पर उतरे। वहां से बस से जौरा के महात्मा गांधी सेवा आश्रम
पहुंचे।
जौरा में भी गर्मी का वही आलम
था जो दिल्ली में था। पर वहां कुछ नए और पुराने दोस्तों से मुलाकात के बीच में
गर्मी का एहसास कम रहा। पूरे देश से कोई सौ लोग आए थे। आश्रम में हमारी बैठक विशाल
बरगद के पेड़ की छांव में हुआ करती थी।
सुबह स्नान करने के बजाए दोपहर
मे देर तक नहाना अच्छा लगता है। मई जून के महीने में खाने पीने में भी थोड़ी
सावधानी बरतनी पड़ती है। कुछ भी खाकर आप पचा नहीं सकते। छाछ और दही का इस्तेमाल
ज्यादा। खैर हमारी बैठकों में चर्चा इस बात पर हो रही थी कि कौन अपने इलाके में सामाजिक
कार्यों में कैसी भागीदारी निभा रहा है। कुछ लोग नए आइडिया लेकर भी आए थे।
राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक एसएन सुब्बराव जी और सचिव रणसिंह परमार जी हम सबकी
बातें सुन रहे थे।
जौरा मुरैना जिले में चंबल घाटी
का वह इलाका है जहां सुब्बराव जी पहली बार 1954 में आए थे। बाद में उन्होंने डाकू
के आतंक वाले इस इलाके में कई शिविर लगाए थे। इन शिविरों में देश भर से आए युवा
श्रमदान से गांव की तस्वीर बदल रहे थे। 1960 से 1970 के बीच ऐसे श्रम शिविरों का
गवाह बना मुरैना जिले का बागचीनी गांव। यहां कई दर्जन शिविरों का आयोजन हुआ था।
अपने इस शिविर के दौरान हमें बागचीनी जाने का भी मौका मिला। पर इस यात्रा के दौरान
हम एक अनूठे कार्यक्रम के गवाह बने।
बागचीनी गांव के बगल से क्वारी
नदी बहती है। बागचीनी और देवगढ़ के बीच लोग बहुत दिनों से क्वारी नदी पर पुल बनाने
की मांग कर रहे थे। पर प्रशासन लोगों की सुन नहीं रहा था। सुब्बराव जी की सलाह पर
गांव के लोगों ने आपस में चंदा जुटाकर खुद पुल बनाने का काम शुरू कर दिया। बाद में
प्रशासन ने भी सुध ली और अपनी तरफ से इस पुल के निर्माण में सहयोग किया। तो आज उस
पुल का उदघाटन समारोह था। कई गांव के लिए खुशियों का मौका था। खुशियां कई गुना
ज्यादा थीं क्योंकि इस पुल के निर्माण में सबका खून पसीना लगा था। सुब्बराव
जी के हाथों इस पुल का उदघाटन हुआ। इस
मौके पर सुब्बराव जी ने श्रम की महत्ता को इंगित करता हुआ गीत गाया....
मेहनत पूजा राम की...मेहनत सेवा राम की... मेहनत भक्ति राम की... अब न घड़ी आराम की....
हम सबने इस गीत को दुहराया।
उसके बाद हमलोग इस नवनिर्मित पुल पर चलकर भी गए। बाद में हमें पता चला कि अतीत
में सुब्बराव जी ने बागचीनी और आसपास के गांव में पेयजल और सिंचाई की समस्या से
निजात के लिए श्रमदान से 23 कुएं खुदवाए थे। तो बागचीनी और आसपास के लोग सुब्बराव
जी को तो भगवान की तरह सम्मान देते हैं। यह हमें उस दौरे में देखने को मिला।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - Email- vidyutp@gmail.com
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