कुरूक्षेत्र में
थानेसर से ज्योतिसर के रास्ते में पांच किलोमीटर की दूरी पर नरकातारी तीर्थ क्षेत्र स्थित है। महाभारत के युद्ध में इस स्थल काफी महत्व है। इस संबंध महाभारत के सबसे बलशाली और विद्वान पात्र भीष्म पितामह से है। यहां तीर्थ क्षेत्र परिसर में कई मंदिर बने हुए हैं। वर्तमान में नरकातारी तीर्थ में आप
वाणगंगा देख सकते हैं जो एक कुएं के समान है। यहां भीष्म पितामह की माता गंगाजी की मूर्ति, बाण
शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह की विशाल मूर्ति, पांचों
पांडव और द्रौपदी की मूर्तियां स्थापित है। परिसर में 26 फीट ऊंची हनुमान जी की भी
विशाल मूर्ति है। यह मूर्ति काफी दूर से ही दिखाई देती है।
अर्जुन के तीर फूट पड़ी गंगा - कहा जाता है महाभारत के युद्ध में घायल भीष्म पितामह बाण शैय्या पर लेटे थे तब उन्होंने अर्जुन से पानी मांगा। अर्जुन ने यहीं भूमि में शक्तिशाली बाण मारा तो भूमि से गंगा का एक स्रोत फूट पड़ा।इसे ही बाण गंगा कहते हैं।
भीष्म पितामह ने शांतिपर्व और विष्णु सहस्त्रनाम सुनाया - पुराणों के अनुसार महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पांडव हस्तिनापुर चले गए। इसके कुल एक माह 26 दिन बाद नरकातारी तीर्थ पर पांच पांडव द्रौपदी व नारद जी कई ऋषियों समेत भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे। यहीं पर भीष्म पितामह ने महाभारत का शांति पर्व और विष्णु सहस्त्रनाम सुनाया था। भीष्म पुराणों और नीति शास्त्र के बहुत बड़े ज्ञाता थे।
महाभारत का युद्ध कुल 18 दिनों तक चला था। इस दौरान भीष्म जब युद्ध 10वें दिन घायल होकर गिर पड़े तो उस समय सूर्य दक्षिणायन था इसलिए वे परलोक
नहीं जाना चाहते थे। उन्हें पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था।
लिहाजा वे अर्जुन द्वारा बनाई गई बाणों की शैय्या पर ही लेटे रहे।
नरकातारी में किया था भीष्म पितामह ने देहत्याग - महाभारत का युद्ध समाप्त
होने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गए, तब माघ मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को नरकातारी
में ही भीष्म ने अपनी इच्छानुसार अपने प्राण त्यागे। महाभारत के मैदान में भीष्म सबसे बलशाली पुरूष थे। वे चाहते तो एक पल में इस युद्ध को खत्म कर सकते थे, लेकिन उन्होंने शस्त्र नहीं उठाने का प्रण ले
रखा था। उनके प्राण त्यागने से पूर्व पांचो पांडव द्रौपदी के संग उनसे मिलने पहुंचे तो उन्होंने पांडवों को शांति का संदेश दिया था।
कहा जाता है भीष्म ने लगातार गायत्री मंत्र के उपासना से कई तरह की शक्तियां अर्जित की थीं। भीष्म ने अर्जुन को वरदान दिया था कि यदि कोई व्यक्ति पाप का अन्न खा ले, उसका मन मलिन हो जाए तो मेरे दर्शन मात्र से ही वह निर्मल हो जाएगा। वैसे तो महाभारत के युद्ध का दायरा कई किलोमीटर में फैला हुआ था। पर नरकातारी के बारे में कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध की शुरुआत भी यहीं हुई थी और अंत भी आकर यहीं पर हुआ।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( NARKATARI TIRTH, BANGANGA, KURUKSHETRA, HANUMAN, ARJUNA, BHISHMA PITAMAH )
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