उत्तर
प्रदेश में गंगा के तट पर बसी काशी को तीनो लोकों से न्यारी कहा गया है। यहां
दशाश्वमेध घाट के पास है काशी विश्वनाथ का मंदिर। काशी विश्वनाथ
का स्थान बारह ज्योतिर्लिंग में सातवें स्थान पर आता है। कहा जाता है इस नगरी का
प्रलयकाल में भी लोप नहीं होता। उस समय भगवान शिव इस नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण
कर लेते हैं।
इस नगरी को
आदि सृष्टि स्थली कहा गया है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने आशुतोष (शिव) को
प्रसन्न कर सृष्टि के सृजन के लिए यज्ञ किया था। फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि
कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए जिन्होंने सारे संसार की रचना की। इसी वजह से काशी शिव
की प्रिय नगरी है।
इस जगह शिव
ने अपने मुक्तिदायक ज्योतिर्लिंग को खुद स्थापित किया है। इसे विश्वेश्वर कहते
हैं। यानी सारी दुनिया के ईश्वर। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की आराधना की थी। कहा जाता है
काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने अपने कर कमलों से की थी। लेकिन
इस मंदिर को औरंगंजेब ने तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवा दी। ये अब ज्ञानवापी मस्जिद के
नाम से जानी जाती है। इसकी नीचे की संरचना अभी भी स्पष्ट तौर पर मंदिर की है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का दसाश्वमेध रोड का प्रवेश द्वार। |
साल 1785
में तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के आदेश से
नवाब अली इब्राहीम खां ने मन्दिर के सिंहद्वार के सामने नौबतखाना
(स्थानक) बनवाया। यहां समय-समय पर विभिन्न वाद्यों का वादन श्री विश्वनाथ जी के
पूजन के अवसर पर किया जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर
एक बीघा, 9 बिस्वा, 6 धुर जमीन पर विस्तारित है। इस परिसर में
विश्वेश्वरनाथ मंदिर, गंगेश्वर, गंगादेवी, हनुमान जी, नन्दी जी, गौरी शंकर, गणेश, महाकालेश्वर, महेश्वर, श्रृंगार गौरी के मंदिर हैं। मंदिर परिसर में ज्ञानवापी कूप भी है।
1558 में राजा टोडरमल ने
मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था ।
1669 में औरंगजेब ने
आक्रमण कर इस मंदिर को क्षति पहुंचाई थी।
1780 में इंदौर की
महारानी अहिल्या बाई द्वारा इस मंदिर पुनर्निर्माण कराया गया।
1835 में 22 टन सोने से पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखरों को स्वर्णमंडित करवाया था।
वर्ष 1983
में मंदिर में हुई बड़ी चोरी के बाद मंदिर में महंती परंपरा खत्म कर
दी गई। इस चोरी के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983
के तहत मंदिर का अधिग्रहण कर निगरानी के लिए न्यास का गठन कर दिया
गया। साथ ही व्यवस्था देखने के लिए कार्यपालक समिति बना दी गई।
कैसे पहुंचे - वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 7 किलोमीटर है। काशी
विश्वनाथ का मंदिर वाराणसी में गोदौलिया चौराहा के पास है। मंदिर में प्रवेश के दो
मार्ग हैं। एक बांस फाटक रोड की तरफ से तो दूसरा दसाश्वमेध रोड की तरफ से। पतली
गलियों से होकर मंदिर पहुंचने का मार्ग है। इस गली को विश्वनाथ गली कहते हैं। गली
में सुंदर बाजार भी है। विश्वनाथ मंदिर के पास ही मां अन्नपूर्णा का मंदिर है।
यहां अखंड अन्न क्षेत्र भी चलता है। कहा जाता है मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से
काशी में कोई भूखा नहीं सोता। श्री काशी विश्वनाथ की वेबसाइट पर जाएं- http://www.shrikashivishwanath.org/en/online/live.aspx
खुलने का समय - काशी विश्वनाथ मंदिर सुबह 3 बजे मंगला आरती केसाथ खुलता है। रात्रि 11.00 बजे मंदिर शयन आरती के साथ बंद होता है। काशी विश्वनाथ मंदिर आप जब दशाश्वमेध रोड से प्रवेश करेंगे तो आधा किलोमीटर लबी विश्वनाथ गली में रंग बिरंगा बाजार है। इन बाजारों में दुनिया भर के सैलानी आपको खरीददारी करते हुए नजर आ जाएंगे।
-- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com
-- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com
देश में कहां कहां हैं 12 ज्योतिर्लिंग
1. सोमनाथ ( गुजरात)
2. श्री मल्लिकार्जुन स्वामी ( करनूल, आंध्र प्रदेश)
3. महाकालेश्वर ( उज्जैन, मध्य प्रदेश )
4. ओंकारेश्वर (खंडवा, मध्य प्रदेश )
5. केदारनाथ (रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड )
6. भीमाशंकर (मंचर, पुणे, महाराष्ट्र)
7. काशी विश्वनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
8. त्र्यंबकेश्वर (नासिक, महाराष्ट्र)
9. वैद्यनाथ (देवघर, झारखंड)
10. नागेश्वर (द्वारका, गुजरात)
11. रामेश्वरम (रामनाथपुरम, तमिलनाडु)
12. घृष्णेश्वर मंदिर (औरंगाबाद, महाराष्ट्र)
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