अहमदाबाद को महान संत और कवि
दादू दयाल की धरती होने का गौरव प्राप्त है। शहर के कांकरिया झील के किनारे उनकी
स्मृति में मंदिर का निर्माण कराया गया है। दादू दयाल की शिक्षाएं संत कबीर से
मिलती जुलती हैं। दादू बहुत ही दयालु संत थे इसलिए उनके नाम के आगे दयाल लगा है।
उनके शिष्यों की भी लंबी फेहरिस्त है। खासतौर पर गुजरात,
राजस्थान और महाराष्ट्र में दादू के भक्तो की बड़ी संख्या है।
संत कवि दादू दयाल का मंदिर - कांकरिया झील के किनारे सोलहवीं सदी के संत कवि दादू दयाल का मंदिर स्थित है। संत दादू दयाल का जन्म फागुन संवत 1601 (सन 1544 ई.) को अहमदाबाद शहर में ही हुआ था। उनका परलोक गमन 1603 में राजस्थान में हुआ। हालांकि दादू के जन्म स्थान के बारे में विद्वानों के अलग विचार भी हैं। उनके भक्त लोग दादू पंथी कहे जाते हैं। दादू पंथी लोगों का विचार है कि वह एक छोटे से बालक के रूप में (अहमदाबाद के निकट) साबरमती नदी में बहते हुए पाए गए थे।
दादू का पालन पोषण लोदीराम नामक एक गरीब ब्राह्मण ने किया था। उन्हे वे एक संत के आशीर्वाद से साबरमती नदी में बहते हुए प्राप्त हुए थे। पर कहीं कहीं उन्हें धुनिया का पुत्र भी कहा जाता है। तो कुछ लोग उन्हें बंगाल का मुसलमान तक बता देते हैं पर दादू खुद अपने बारे में क्या कहते हैं सुनिए -
खूब घुमक्कड़ थे दादू - कहा जाता है कि 12 साल की उम्र में ज्ञान प्राप्ति के लिए वे घर छोड़कर साधना के लिए चले गए। संत दादू दयाल के जीवन का बड़ा भाग राजस्थान में बीता। पर बचपन अहमदाबाद में गुजरा , इसलिए यहां के लोग उन्हें नगर संत कहते हैं। दादू छह साल मध्य प्रदेश के शहरों में भी घूमते रहे। दादू ने राजस्थान के आबू, पुष्कर और करडला धाम में तपस्या की। वे राजस्थान के सांभर और आमेर (जयपुर) में भी रहे। कहते हैं कि अकबर ने भी दादू को बुलाकर उनसे आध्यात्म का ज्ञान प्राप्त किया था। दादू बिहार, बंगाल की ओर भी यात्राओं पर गए थे।
दादू कुल हमारे केसवा,
सगात सिरजनहार।
जाति हमारी जगतगुर, परमेश्वर परिवार।।
दादू एक सगा संसार में, जिन हम सिंरजे सोई।।
मनसा बाचा क्रमनां, और न दूजा कोई
जाति हमारी जगतगुर, परमेश्वर परिवार।।
दादू एक सगा संसार में, जिन हम सिंरजे सोई।।
मनसा बाचा क्रमनां, और न दूजा कोई

जात-पात, मूर्ति पूजा का विरोध - दादू एक प्रगतिशील विचारों वाले निर्गुण संत थे। उनके भक्तों की फेहरिस्त में हिंदू और मुसलमान दोनों ही लोग थे। उन्होंने अपनी बातें बड़ी ही सरल और सहज भाषा में कहीं। उन्होंने दकियानूस धार्मिक परंपराओं पर अपनी वाणी से खूब प्रहार किया। दादू के भक्त मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं। वे शाकाहार अपनाने और मद्य त्याग पर जोर देते हैं।
दादू दुनिया दीवानी, पूजे पाहन पानी।
गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।
चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।
छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।
धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।
ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।
बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।
नरेना में गुजरा आखिरी वक्त - दादू दयाल का आखिरी समय राजस्थान के जिला जयपुर के पास नरेना (NARAINA) में गुजरा। यहीं 1603 में उनका निधन हो गया। यहां उनका एक मंदिर है जिसे दादू द्वारा कहा जाता है। यहां उनका तूंबा, चोला, और खड़ाऊ को संरक्षित करके रखा गया है। यहीं उनकी पुण्य तिथि पर हर साल ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी पर यहां विशाल मेला लगता है। नरेना ( NRI) फुलेरा से 10 किलोमीटर आगे अजमेर मार्ग पर रेलवे स्टेशन है। जयपुर से रेल मार्ग से नरेना की दूरी 65 किलोमीटर है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(SANT DADUDAYAL, DADU PANTH, KANKARIA LAKE, RAJSTHAN )
Link - http://devasthan.rajasthan.gov.in/images/jaipur/dadudwara.htm
गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।
चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।
छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।
धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।
ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।
बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।
नरेना में गुजरा आखिरी वक्त - दादू दयाल का आखिरी समय राजस्थान के जिला जयपुर के पास नरेना (NARAINA) में गुजरा। यहीं 1603 में उनका निधन हो गया। यहां उनका एक मंदिर है जिसे दादू द्वारा कहा जाता है। यहां उनका तूंबा, चोला, और खड़ाऊ को संरक्षित करके रखा गया है। यहीं उनकी पुण्य तिथि पर हर साल ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी पर यहां विशाल मेला लगता है। नरेना ( NRI) फुलेरा से 10 किलोमीटर आगे अजमेर मार्ग पर रेलवे स्टेशन है। जयपुर से रेल मार्ग से नरेना की दूरी 65 किलोमीटर है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(SANT DADUDAYAL, DADU PANTH, KANKARIA LAKE, RAJSTHAN )
Link - http://devasthan.rajasthan.gov.in/images/jaipur/dadudwara.htm
No comments:
Post a Comment