समंदर के संग अटखेलियां और जूता
घर, हैंगिग गार्डन आदि देखने के बाद हमारा अगला पड़ाव था महालक्ष्मी मंदिर। यह
मुंबई के प्रमुख मंदिरों में से एक है। वैसे मुंबई का नाम मुंबा देवी के नाम पर
पड़ा है। गणेश जी का सिद्धिविनायक मंदिर और शिव जी का बबूलनाथ मंदिर शहर के
प्रसिद्ध मंदिरों में हैं।
महालक्ष्मी मंदिर में दर्शन के लिए बस वाले ने हमें
पर्याप्त समय दिया। पतली गली में चलकर जूता घर में चप्पल रख हमलोग दर्शन के लिए चल
पड़े।
मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर औद्योगिक
नगरी के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक है। अरब सागर के किनारे भूलाभाई देसाई
मार्ग पर स्थित यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। महालक्ष्मी
मंदिर महालक्ष्मी समुद्र के बिल्कुल करीब स्थित है।
महालक्ष्मी
मंदिर में तीन बहुत ही सुंदर मूर्तियां है। मंदिर के
गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों
देवियों की प्रतिमाएं एक साथ विद्यमान हैं। महालक्ष्मी की प्रतिमा बीच में है।
बायीं तरफ काली और दायीं तरफ सरस्वती हैं। इन तीनों ही प्रतिमाओं को सोने एवं
मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है। तीनों
प्रतिमाओं को सोने के नथ, सोने की चूड़ियां एवं मोतियों के
हार से बड़ी ही सुंदरता से सजाया गया है। वहीं महालक्ष्मी
मंदिर के मुख्य द्वार पर भी सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में विभिन्न
देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
रोचक है निर्माण की कहानी -
मंदिर के निर्माण की कथा बहुत ही रोचक है। अंग्रेजों ने जब महालक्ष्मी क्षेत्र को
वर्ली क्षेत्र से जोड़ने के लिए ब्रीच कैंडी मार्ग को बनाने की योजना बनाई तब
समुद्र की तूफानी लहरों के कारण उनकी पूरी योजना खटाई में पड़ती जा रही थी। सैकड़ों मजदूर इस दीवार के निर्माण कार्य में लगे हुए थे, मगर हर दिन कोई न कोई बाधा आ रही थी। उस समय देवी लक्ष्मी एक
ठेकेदार रामजी शिवाजी के सपने में प्रकट हुईं। देवी ने कहा कि वर्ली में समुद्र के
किनारे मेरी एक मूर्ति है। उस मूर्ति को वहां से निकालकर समुद्र के किनारे
ही मेरी स्थापना करो। ऐसा करने से हर बाधा दूर हो जाएगी और वर्ली-मालाबार
हिल के बीच की दीवार आसानी से खड़ी हो जाएगी। रामजी ने
ऐसा ही किया और इसके बाद ब्रीच कैंडी मार्ग का निर्माण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। तब
यहां महालक्ष्मी का छोटा सा मंदिर बनवा दिया गया। बाद में साल 1831 में धाकजी दादाजी नाम के एक व्यवसायी ने छोटे से मंदिर को बड़ा स्वरूप दिया और परिसर का जीर्णोद्धार कराया गया।
पर दिन भर मंदिर आने वाले दर्शनार्थी
महालक्ष्मी की वास्तविक प्रतिमा नहीं देख पाते हैं, क्योंकि वास्तविक प्रतिमा को आवरण से ढंक दिया गया है। बताया जाता
है कि असली प्रतिमा को देखने के लिए रात को यहां आना पड़ता है। रात के लगभग 9.30
बजे वास्तविक प्रतिमा से आवरण थोड़ी देर के लिए ही हटाया जाता
है। इसलिए यहां देर रात भी श्रद्धालु अच्छी संख्या में पहुंचते हैं।
मनोकामना के सिक्के
- मंदिर में एक दीवार है, जहां भक्तगण
अपनी मनोकामनाओं के साथ सिक्के चिपकाते हैं। आश्चर्य की बात है कि यहां दीवार पर
सिक्के आसानी से चिपक भी जाते हैं।
कैसे पहुंचे -
आपको अगर महालक्ष्मी मंदिर पहुंचना है तो मुंबई लोकल के महालक्ष्मी नामक रेलवे
स्टेशन पर उतरें। यहां से मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है। नवरात्र के समय मंदिर
में अच्छी खासी भीड़ उमड़ती है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य ( MAHALAXMI TEMPLE, MUMBAI )
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