जैसे शिमला का मॉल वैसे
दार्जिलिंग का चौरस्ता। सुबह से लेकर शाम गुजारने के लिए सबसे अच्छी जगह। चौरस्ता
के एक तरफ घंटा घर है तो दूसरी तरफ जाता है राजभवन के लिए रास्ता। कुछ और रास्ते
निकलते हैं एक मंदिर की ओर तो एक बाजार की ओर। हमने दार्जिलिंग में कुछ दिन गुजारे
तो हमारा पड़ाव बना होटल ब्राडवे। दार्जिलिंग
का एक प्यारा होटल। इस होटल की मु्ख्य शाखा घंटाघर के पास है तो ब्राडवे एनेक्सी
है जाकिर हुसैन रोड पर। एनेक्सी के सुंदर कमरे से पूरे दार्जिलिंग का खूबसूरत
नजारा दिखाई देता है। होटल का अपना रेस्टोरेंट भी है जिसका खाना काफी अच्छा और
वाजिब कीमत पर उपलब्ध है। होटल के मालिक अमित खत्री खुद सारी व्यवस्था देखते हैं।
वे अपने होटल में रहने वाले लोगों के साथ मित्रवत हैं और उनकी सुविधाओं का खासा
ख्याल रखते हैं।
तो फिर वापस चलते हैं चौरस्ते
पर। चौरस्ता पर आप गरमा गरम चाय की चुस्की ले सकते हैं। घुड़सवारी का आनंद ले सकते हैं। और
भूख लगे तो चना जोर गरम समेत कई तरह के स्ट्रीट फूड का भी मजा ले सकते हैं। शाम
होने पर चौरस्ता पर रौनक बढ़ जाती है। सैलानियों
से पट जाता है चौरस्ता। बिल्कुल शिमला के माल की तरह। सैलानियों को लुभाने वाले कई
तरह के आईटम। बच्चों की किलकारियां। हनीमून पर आए युगल की मस्तियां। कुछ शर्मीली
तो कुछ बांकी अदाएं। हुश्न का मेला। भले चेहरे रोज बदल जाते हैं, लेकिन चौरस्ता
सालों भर गुलजार रहता है।
अनादि का जन्मदिन-
यह
संयोग था कि हम 5 जुलाई
को दार्जिलिंग में थे। उस दिन दार्जिलिंग बंद का आह्वान कर रखा था गोरखालैंड की
मांग करने वाले संगठनों ने। तो अनादि ने अपना पांचवां जन्मदिन मनाया इसी चौरस्ते
पर। पूरा दार्जिलिंग बंद था। घूमने के विकल्प सीमित थे। करते भी क्या। लेकिन
चौरस्ते पर मिल गया एक बड़ा गुब्बारा। केक का इंतजाम नहीं हो सका। पर गुब्बारे संग
खेलकूद कर ही खुश हो गए अनादि। इस तरह उनका जन्मदिन यादगार बन गया।
यहां पर हमारी एक सिलिगुड़ी की
संभ्रात परिवार की महिला से मुलाकात हुई। वे बताती हैं जब जब सिलिगुड़ी की गर्मी
सताती है ड्राईवर को बोलती हूं और गाड़ी लेकर पहुंच जाती हूं दार्जिलिंग चौरस्ता
पर। वे कहती हैं कि यहां दिन भर हंसते खेलते सैलानी चेहरों को देखकर मन खुश हो
जाता है। भाई वाह, क्या
जिंदादिली है। जीएं तो ऐसे.. दार्जिलिंग के चौरस्ते पर सुबह से लेकर शाम तक कई रंग
बदल जाते हैं। यहां पर दार्जिलिंग की प्रसिद्ध चाय की दुकानों के शोरुम हैं। नाथमल
और गुडरिक चाय तो कई और ब्रांड। एक तरफ दार्जिलिंग के आइकोनिक बेल व्यू होटल की
इमारत है तो आसपास में कई ब्रिटिशकालीन भवन हैं।
दार्जिलिंग में आज हमारा आखिरी दिन है। अब वापसी की तैयारी है। आखिरी दिन हमें घंटाघर से नीचे उतर रही सड़क पर पूरी सब्जी, जलेबी वाली दो दुकानें दिखाई दे गईं। जहां 12 रुपये में नास्ता किया जा सकता है। इससे पहले कई दिनों तक हमें सुबह के नास्ते के लिए अच्छी दुकान नहीं मिल पा रही थी।
हमें सिलिगुडी की टैक्सी के लिए ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा। इस बार टैक्सी नए रास्ते से कर्सियांग पहुंची। पर जैसे जैसे टैक्सी नीचे उतरती गई सुहाना मौसम पीछे छूटता गया। सिलिगुड़ी पहुंचने पर गर्मी से हाल बेहाल था। तो फिर आएंगे दार्जिलिंग... टैक्सी ने हमें सिलिगुड़ी शहर के बाहरी इलाके में ही उतार दिया। हमारी ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन से रात को 10.45 बजे है। हमलोग शाम की सिलिगुड़ी पहुंच गए हैं।
अभी रेलगाड़ी के आने में काफी समय है तो हमने एक साइकिल रिक्शा वाले बात की। हमें एनजेपी स्टेशन जाना है। वह तैयार हो गया। उसने 40 रुपये मांगे हमने कहा, ठीक है दे दूंगा। रिक्शा धीरे-धीरे सिलिगुड़ी के व्यस्त बाजार से होकर एनजेपी की राह पर चला। बीच में महानंदा नदी पर पुल आया। हमलोग रात आठ बजे से पहले एनजेपी स्टेशन पहुंच गए। अब ब्रह्मपुत्र मेल का इंतजार करना है। इस बीच स्टेशन के बाहर एक रेस्टोरेंट से रात का खाना पैक करा लिया है। ट्रेन आने से पहले मूसलाधार बारिश आई। इतनी तेज बारिश की प्लेटफार्म से ट्रेन के कोच में प्रवेश करने में हमलोग बुरी तरह भींग गए। ब्रह्मपुत्र मेल किशनगंज बारसोई के बाद नए रास्ते जाती है। इसके मार्ग में मालदा टाउन, न्यू फरक्का, बरहरबा, साहेबगंज, कहलगांव, भागलपुर, सुल्तानगंज,
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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