नासिक में गोदावरी तट पर पंचवटी में सीता गुफा के बगल में स्थित है कालाराम का प्रसिद्ध मंदिर। मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी का ये मंदिर कालाराम मंदिर इसलिए कहलता है क्योंकि पूरा मंदिर काले रंग के पत्थरों से बना है। सन 1790 में बने इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। कालाराम मंदिर का शिल्प काफी हद तक त्रयंबकेश्वर मंदिर से मिलता जुलता है।
रामजी का हाथ सीने पर है - आमतौर पर राम
मंदिरों में राम जी की मूर्ति तीर धनुष लिए होती है। लेकिन इस मंदिर में ऐसा नहीं
है। यहां राम जी का एक हाथ उनके सीने पर है। मंदिर में राम की मूर्ति भी काले
पत्थरों से बनी है। कहा जाता है राम जी का हाथ सीने पर इसलिए है क्योंकि वे अपने
शरणागत का दुख हरते हैं। लंबे समय से कालाराम मंदिर की महाराष्ट्र में दूर-दूर तक
प्रसिद्धि है। मंदिर का प्रबंधन कालाराम संस्थान देखता है।
गोराराम मंदिर - वैसे कालाराम मंदिर के बगल में एक गोरा राम मंदिर भी है। इस मंदिर का निर्माण 1782 में देवराव हिंगने ने करवाया था। मतलब यह कालाराम मंदिर से थोड़ा पुराना है। नासिक में और भी कई राम मंदिर हैं। नासिक के इन राम मंदिरों में रामनवमी दशहरा और गुडी पड़वा के त्योहार विशेष तौर पर मनाए जाते हैं।
डाक्टर अंबेडकर की अगुवाई में हुई रक्तविहीन क्रांति -- किसी जमाने में कालाराम मंदिर में शूद्र वर्ण के लोगों के प्रवेश की मनाही थी। डाक्टर अंबेडकर की अगुवाई में कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए 1930 में ऐतिहासिक आंदोलन किया गया। पांच साल तक चले आंदोलन के बाद मंदिर में सबके लिए प्रवेश संभव हो पाया। दो मार्च 1930 को डाक्टर अंबेडकर की अगुवाई में दलित समाज के लोगों ने कालाराम मंदिर में प्रवेश की कोशिश की थी। तब मंदिर के पुजारियों ने ये कहकर दलितों का प्रवेश रोकने की कोशिश की थी कि ये मंदिर सार्वजनिक नहीं है।
डॉक्टर अंबेडकर के इस रक्तिविहीन क्रांतिकारी आंदोलन की कथा अब इतिहास के पन्नो में दर्ज है। हिंदू धर्म में छूआछूत दूर करने को लेकर किए गए आंदोलन में कालाराम मंदिर का आंदोलन प्रमुख था। साल 2008 में कालाराम मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार पर इस ऐतिहासिक घटना का शीलापट्ट लगाकर वर्णन किया गया है।
- ----विद्युत प्रकाश मौर्य
- Dr. Ambedkar writes ……
I started temple entry Satyagraha only because I felt that was the best
way of energizing th Depressed Classes and making them conscious of their
position. As I believe I have achieved that purpose I have no more use for
temple entry. I want the Depressed Classes to concentrate their energy and
resource on politics and education and I hope that they will realise the
importance of both. ( Volume-XVII. Dr. Babasaheb Ambedkar Writing and
Speeches )
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