हमारे एक
पत्रकार साथी ने पूछा है कि आखिर सोमनाथ का मंदिर बार बार क्यों लूटा। धार्मिक
उपन्यासों के महान लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने एक उपन्यास लिखा है – सोमनाथ। उन्होंने बड़े लालित्यपूर्ण शैली में सोमनाथ मंदिर के इतिहास और ऐश्वर्य का वर्णन किया है। इसमें सोमनाथ के लूटने की भी कहानी है।
उनका संकेत है। हिंदू समाज की अपनी ही कमजोरियां
रहीं। हम अपनी विरासत को संभाल कर रख पाने में कामयाब नहीं रहे।
हम समग्र हिंदू समाज की बात करते हैं। पर इसमें दलित पिछड़ों के लिए छूआछूत का भाव होता है। मध्यकालीन समाज में यह जबरदस्त था। जब 90 फीसदी हिंदू आबादी को देश के बड़े मंदिरों में प्रवेश की इजाजत भी नहीं हो तो भला मंदिरों की रक्षा के लिए कौन आगे आएगा।
दूसरा बड़ा कारण सोमनाथ समेत देश के कई मंदिर धन का बड़ा केंद्र हुआ करते थे। लिहाजा लूटेरों की नजर उस धन पर रहती थी। देश के ज्यादातर हिंदू मंदिर पर आक्रमण के पीछे मंदिर का विशाल खजाना बड़ा केंद्र विंदु रहा है। पहली बार सोमनाथ मंदिर के निर्माण का ऐतिहासिक साक्ष्य सातवीं सदी का मिलता है। तब वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने समुद्र तट पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था।

हम समग्र हिंदू समाज की बात करते हैं। पर इसमें दलित पिछड़ों के लिए छूआछूत का भाव होता है। मध्यकालीन समाज में यह जबरदस्त था। जब 90 फीसदी हिंदू आबादी को देश के बड़े मंदिरों में प्रवेश की इजाजत भी नहीं हो तो भला मंदिरों की रक्षा के लिए कौन आगे आएगा।
दूसरा बड़ा कारण सोमनाथ समेत देश के कई मंदिर धन का बड़ा केंद्र हुआ करते थे। लिहाजा लूटेरों की नजर उस धन पर रहती थी। देश के ज्यादातर हिंदू मंदिर पर आक्रमण के पीछे मंदिर का विशाल खजाना बड़ा केंद्र विंदु रहा है। पहली बार सोमनाथ मंदिर के निर्माण का ऐतिहासिक साक्ष्य सातवीं सदी का मिलता है। तब वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने समुद्र तट पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था।
पर आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी
गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट कर दिया। फिर प्रतीहार राजा नागभट्ट ने 815 ई में इसका
निर्माण कराया। साल
1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था। अरब यात्री अल-बरुनी के
यात्रा वृतान्त में मंदिर का उल्लेख देख गजनवी ने करीब पांच हजार की सेना के साथ मंदिर
पर हमला किया था।
इसके बाद राजा भीमदेव ने मंदिर को एक बार फिर बनवाया। सौराष्ट्र के तमाम राजाओं ने मंदिर की श्रीवृद्धि में योगदान किया। इसके बाद 1297 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने, 1395 में मुजफ्फरशाह ने 1413 में अहमदशाह ने सोमनाथ मंदिर को लूटा। पर हर विध्वंस के बाद मंदिर का निर्माण कराया गया।
इसके बाद राजा भीमदेव ने मंदिर को एक बार फिर बनवाया। सौराष्ट्र के तमाम राजाओं ने मंदिर की श्रीवृद्धि में योगदान किया। इसके बाद 1297 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने, 1395 में मुजफ्फरशाह ने 1413 में अहमदशाह ने सोमनाथ मंदिर को लूटा। पर हर विध्वंस के बाद मंदिर का निर्माण कराया गया।
सोमनाथ
में लगी उनकी प्रतिमा के साथ सोमनाथ क्षेत्र के विकास में उनके योगदान को याद किया
गया है। वे 1967 से 1995 तक सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे।
नाव निर्माण का बड़ा केंद्र - आप अक्सर समंदर में छोटी और बड़ी नाव चलते देखते हैं। इनमें
लकड़ी की बनी हुई कुछ नाव विशाल आकार की भी होती है। तो सोमनाथ नाव निर्माण का भी बड़ा
केंद्र हैं। यहां पर लकड़ी की विशालकाय नावें बनाई जाती हैं। वेरावल में कई रिवर
बोट के निर्माता हैं। ये नाव 20 लाख से 35 लाख के रेंज में हो सकती हैं। डीजल इंजन
से चलने वाली विशालकाय नाव के साथ ही यात्री ढोने वाली नाव जिसे आप छोटा पानी का
जहाज भी कह सकते हैं, ये सब कुछ वेरावल में बनता है।
वेरावल में कई तरह की फिशिंग
बोट ( मछली पकड़ने वाली नाव) का भी निर्माण किया जाता है। वैसे वेरावल समंदर से
मछलियां पकड़ने का भी बड़ा केंद्र है। यहां पर विशाल फिशिंग हार्बर भी है। यहां से
समंदर की मछलियां दूर तक सप्लाई होती हैं। गुजरात की कुल 1600 किलोमीटर सीमा समुद्र
तटीय है। इसमें गिर सोमनाथ जिले का मुख्यालय बड़ा फिशिंग हब ( मछली उत्पादन केंद्र)
है। वेरावल कभी जूनागढ़ के नवाब का बंदरगाह हुआ करता था। आज यहां करीब 80 फिश
फैक्टरियां हैं जो मछलियों को यूरोप के बाजारों में एक्सपोर्ट भी करती हैं। यहां
खास तौर पर कोली बिरादरी के लोग मछलियां पकड़ने के कारोबार में लगे हैं।
-विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( SOMNATH TEMPLE, MORARJI DESAI, VERAVAL FISHING HUB, BOAT MAKING )
No comments:
Post a Comment