भगवान कृष्ण अपने
यादव परिवार के साथ मथुरा छोड़कर सौराष्ट्र आ जाते हैं। वे अपने बसेरे के इंतजाम
के लिए समुद्र के किनारे घूम रहे थे। तभी उन्हें यहां की भूमि से लगाव हो जाता है।
फौरन विश्वकर्मा जी को बुलाया गया और अपनी राजधानी यहीं बनाने का इरादा जताया।
विश्वकर्मा जी ने समुद्र पर दृष्टि डाल कर कहा कि राजधानी के लिए और भूमि विस्तार
करना होगा। तब आग्रह करने पर समुद्र ने अपनी सीमा थोड़ी अंदर की और विश्वकर्मा ने
कल्पना से भी सुंदर द्वारका नगरी का निर्माण किया। इसे तब द्वारवती या कुशस्थली के नामस जाना
जाता था।
मोक्ष नगरी भी है द्वारका -
कान्हा की नगरी द्वारका अद्भुत है। अरब सागर के तट पर बसी द्वारका को मोक्ष नगरी भी कहा जाता है। यहां हिंदू तीर्थयात्री सालों भर आते हैं। गोमती नदी और सिंधू सागर के तट बसी द्वारका नगरी को करीब 2500 साल पुराना माना गया है।
द्वारका में स्थित
द्वारकाधीश के बारे में कहा जाता है कि विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण महज 24
घंटे में ही कर दिया था। यह भव्य मंदिर पांच मंजिला है।
मंदिर का गुंबद आठ खंबों पर टिका हुआ है। मंदिर की बाहरी दीवारें पत्थर की हैं। सिंहासन पर प्रभु श्रीकृष्ण की मूर्ति मुख्य गर्भ गृह में विराजमान है। मंदिर का सौंदर्य देखते ही बनता है। यहां सालों भर हर प्रांत से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
मंदिर का गुंबद आठ खंबों पर टिका हुआ है। मंदिर की बाहरी दीवारें पत्थर की हैं। सिंहासन पर प्रभु श्रीकृष्ण की मूर्ति मुख्य गर्भ गृह में विराजमान है। मंदिर का सौंदर्य देखते ही बनता है। यहां सालों भर हर प्रांत से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
हर रोज पांच बार बदलता है मंदिर का ध्वज
द्वारकाधीश मंदिर का गुंबद 160 फीट ऊंचा है। रोचक बात है कि इस मंदिर के गुंबद पर लगा झंडा 24 घंटे में पांच बदला जाता है। ये झंडा अलग अलग रंग और डिजाइन में होता है।
श्रद्धालु गोमती तट पर स्नान करने के बाद मंदिर में दर्शन करने आते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के अलावा एक द्वार समुद्र तट की ओर से भी है। आप ऊपर की तस्वीर में मंदिर के गुंबद पर पीला ध्वज देख सकते हैं जबकि नीचे की तस्वीर में सफेद ध्वज लगा है। ध्वज बदलने वाले मंदिर के कार्यकर्ता बड़ी कुशलता से और तेजी से मंदिर के गुंबद तक पहुंच जाते हैं। और हर पांच घंटे बाद अपने कार्य को बखूबी अंजाम देते रहते हैं। आप मंदिर में यात्रा के दौरान ये नजारा देख सकते हैं।
द्वारकाधीश मंदिर का गुंबद 160 फीट ऊंचा है। रोचक बात है कि इस मंदिर के गुंबद पर लगा झंडा 24 घंटे में पांच बदला जाता है। ये झंडा अलग अलग रंग और डिजाइन में होता है।
श्रद्धालु गोमती तट पर स्नान करने के बाद मंदिर में दर्शन करने आते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के अलावा एक द्वार समुद्र तट की ओर से भी है। आप ऊपर की तस्वीर में मंदिर के गुंबद पर पीला ध्वज देख सकते हैं जबकि नीचे की तस्वीर में सफेद ध्वज लगा है। ध्वज बदलने वाले मंदिर के कार्यकर्ता बड़ी कुशलता से और तेजी से मंदिर के गुंबद तक पहुंच जाते हैं। और हर पांच घंटे बाद अपने कार्य को बखूबी अंजाम देते रहते हैं। आप मंदिर में यात्रा के दौरान ये नजारा देख सकते हैं।
मंदिर खुलने का समय - द्वारकाधीश के मंदिर में सुबह 6
बजे प्रातःकालीन आरती होती है तो रात को साढ़े नौ बजे शयन आरती होती है। इस दौरान दिन भर आप मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। द्वारकाधीश
का मंदिर के आसपास का वातावारण सालों भर कान्हा की भक्ति में रंगा हुआ नजर आता है।
माखन नहीं खाया तो फिर क्या खाया - मंदिर के आसपास गांव से आए गुजराती कान्हा को प्रिय माखन दही बेचते नजर आते हैं। मंदिर परिसर में शारदापीठ के शंकराचार्य की गद्दी भी है। सावन के महीने में और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के समय मंदिर में खास भीड़ होती है।
गुगली ब्राह्मणों का नियंत्रण - द्वारकाधीश के मंदिर की पूरी व्यवस्था द्वारका के स्थानीय निवासी गुगली ब्राह्मणों के नियंत्रण में हैं। वे ही इस मंदिर के पंडे और पुजारी हैं।
द्वारकाधीश जाने वाले श्रद्धालुओं से वे पुजारी कई तरह के दान और पूजन की बात करते हैं। आप उनसे थोड़ा सावधान रहें और चतुराई से व्यवहार करें तो ठीक रहेगा। आम तौर पर श्रद्धालु द्वारकाधीश के मंदिर में कई घंटे गुजारना पसंद करते हैं। कई लोग तो द्वारका प्रवास के दौरान एक से अधिक बार मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। कई क्षेत्र के श्रद्धालु मंदिर में समूह में नृत्य करते भी आते हैं।
माखन नहीं खाया तो फिर क्या खाया - मंदिर के आसपास गांव से आए गुजराती कान्हा को प्रिय माखन दही बेचते नजर आते हैं। मंदिर परिसर में शारदापीठ के शंकराचार्य की गद्दी भी है। सावन के महीने में और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के समय मंदिर में खास भीड़ होती है।
गुगली ब्राह्मणों का नियंत्रण - द्वारकाधीश के मंदिर की पूरी व्यवस्था द्वारका के स्थानीय निवासी गुगली ब्राह्मणों के नियंत्रण में हैं। वे ही इस मंदिर के पंडे और पुजारी हैं।
द्वारकाधीश जाने वाले श्रद्धालुओं से वे पुजारी कई तरह के दान और पूजन की बात करते हैं। आप उनसे थोड़ा सावधान रहें और चतुराई से व्यवहार करें तो ठीक रहेगा। आम तौर पर श्रद्धालु द्वारकाधीश के मंदिर में कई घंटे गुजारना पसंद करते हैं। कई लोग तो द्वारका प्रवास के दौरान एक से अधिक बार मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। कई क्षेत्र के श्रद्धालु मंदिर में समूह में नृत्य करते भी आते हैं।
- - ---माधवी रंजना
( ( DWARKA, KRISHNA TEMPLE, GUGLI BRAHMAN )
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