साल 2013 का मई का महीना। गर्मी
अच्छी खासी पड़ रही है। पर हमलोग इस गरमी में गुजरात में घूम रहे हैं। हमने द्वारका से
रात की ट्रेन ली है सोमनाथ के लिए। इसका फायदा यह हुआ कि रात भर ट्रेन के
वातानुकूलित डिब्बे में सोते हुए हमलोग सुबह सुबह सोमनाथ पहुंच गए हैं। ट्रेन जब
सोमनाथ स्टेशन पर पहुंची तो ठीक से उजाला नहीं हुआ था। तो हमलोग कुछ देर स्टेशन पर ही रहे। पर रेलवे स्टेशन के टायलेट्स
गंदे थे। पर समय था जरूरत थी, सो नित्य क्रिया से निवृत होकर हमलोग रेलवे स्टेशन से बाहर आए। सोमनाथ रेलवे स्टेशन वेरावल से छह किलोमीटर आगे है। पहले रेल वेरावल तक ही आती थी। सोमनाथ नया रेलवे स्टेशन बना है।
सोमनाथ रेलवे
स्टेशन से सोमनाथ मंदिर कोई 6 किलोमीटर दूर है। बाहर शेयरिंग आटो रिक्शा मिलने लगे
थे। इससे हमलोग सोमनाथ मंदिर के पास पहुंच गए। हमने होटल अवध ऑनलाइन बुक किया था।
यह सोमनाथ मंदिर के बगल वाली गली में स्थित है। हालांकि सोमनाथ ट्रस्ट की ओर से भी आवास
बनाए गए हैं। पर उन्हें ऑनलाइन बुक करने में पेचीदगियां थीं। होटल अवध मंदिर के
ठीक बगल में है। पर राष्ट्रीय महत्व के इस मंदिर के बगल की गलियां निहायत गंदी
हैं। खुली नालियां बदबू कर रही हैं और आसपास सूअर घूम रहे हैं।
सोमनाथ का मंदिर भव्य है पर इसके आसपास स्वच्छता नहीं है। बड़ा दुख हुआ। खैर स्नान से निवृत होकर हमलोग मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। सोमवार की सुबह बाबा सोमनाथ के आसानी से दर्शन हुए। मंदिर में प्रवेश को लेकर सुरक्षा कड़ी है। कैमरे मोबाइल आदि लेकर अंदर नहीं जा सकते। मंदिर परिसर में एक पुराना सोमनाथ मंदिर भी है जिसे इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने बनवाया था। दर्शन के बाद मंदिर परिसर में बैठकर हमलोग सागर की लहरों को देखने लगे। बड़ा आनंद आ रहा था।
सोमनाथ का मंदिर भव्य है पर इसके आसपास स्वच्छता नहीं है। बड़ा दुख हुआ। खैर स्नान से निवृत होकर हमलोग मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। सोमवार की सुबह बाबा सोमनाथ के आसानी से दर्शन हुए। मंदिर में प्रवेश को लेकर सुरक्षा कड़ी है। कैमरे मोबाइल आदि लेकर अंदर नहीं जा सकते। मंदिर परिसर में एक पुराना सोमनाथ मंदिर भी है जिसे इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने बनवाया था। दर्शन के बाद मंदिर परिसर में बैठकर हमलोग सागर की लहरों को देखने लगे। बड़ा आनंद आ रहा था।
दर्शन के बाद भूख लगी थी। हमलोग
भोजन के लिए पहुंचे लीलावती भोजनालय। मंदिर परिसर में एक गुजराती परिवार ने बताया था
कि यहां खाने के लिए सबसे अच्छी जगह लीलावती भोजनालय है। पहुंचने पर पता चला अभी
भोजन का समय शुरू नहीं हआ है। थोड़े इंतजार के बाद भोजन शुरू हुआ। थाली 55 रुपये
की। खाना सुस्वादु था। आनंद आया। लीलावती ट्रस्ट के निर्माण और प्रबंधन में गुजरात
के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की बड़ी भूमिका है। खाने के बाद बाहर निकलने पर
तेज धूप हो गई थी। सोमनाथ के बाकी मंदिर भी घूमने थे, सो तय किया शाम को घूमेंगे। एक
आटोवाले लतीफ भाई से बात हुई। उनसे तय हो गया वे 4 बजे होटल के नीचे आ जाएंगे।
लतीफ भाई ठीक 4 बजे पहुंच गए। अगले तीन घंटे उनका साथ रहा। रास्ते में हमें एक जगह
लकड़ी की बड़ी बड़ी नावें बनती हुई दिखाई दीं। सोमनाथ में ऐसी नावें बड़े पैमाने
पर बनती हैं।
रात्रि विश्राम होटल अवध में ही
हुआ। इस होटल के मालिक की शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के साथ तस्वीर
लगी है होटल के रिसेप्सन पर। पता चला कि इलाहाबाद के रहने वाले होटल के प्रोपराइटर
महोदय स्वरूपानंद जी के बड़े शिष्य हैं। उनका कारोबार गुजरात में फलफूल रहा है।
शाम का भोजन फिर लीलावती भोजनालय में ही रहा। यहां हमें एक श्रद्धालु परिवार फिर
मिल गया जो द्वारका में भी हमारे साथ था।
- विद्युत
प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com
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