वैसे
तो श्रीरंगपट्टनम को टीपू सुल्तान के शहर के तौर पर जाना जाता है। लेकिन टीपू
सुल्तान के महल के अवशेषों के बीच स्थित रंगनाथ स्वामी मंदिर का इतिहास और भी
पुराना है। इस शहर का नाम ही रंगनाथ स्वामी के नाम पर पड़ा है।
श्रीरंगपट्टनम
मैसूर शहर से महज 19
किलोमीटर आगे बेंगलुरु के रास्ते पर है। ऐतिहासिकता की दृष्टि से
श्रीरंग पट्टनम दक्षिण भारत का महत्वपूर्ण स्थल है जो मध्य तमिल सभ्यताओं के
केन्द्र बिन्दु के रुप में स्थापित था। कावेरी नदी के तट पर स्थित यह शहर इतिहास
के कई कालखंड में काफी उन्नत शहर था।
रंगनाथस्वामी यानी भगवान विष्णु के मंदिर को गंग वंश के राजाओं ने 894 ई. में बनवाया था। यहां भी पद्मनाभ स्वामी की तरह विष्णु की शेषनाग पर लेटी हुई प्रतिमा है। रंगनाथ स्वामी का मंदिर दक्षिण भारत के वैष्णव संप्रदाय के लोगों में काफी महत्व रखता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां आदि रंगम के रुप में हैं। रंगनाथ स्वामी के आंतरिक मुख्य भाग का निर्माण होयसल राजाओं ने कराया था। इसमें ग्रेनाइट के कई बड़े स्तंभ देखे जा सकते हैं। जबकि मंदिर का मुख्य द्वार यानी गोपुरम विजय नगर स्टाइल में है। मंदिर के दो स्तंभों पर विष्णु के 24 भाव भंगिमाओं में मूर्तियां हैं।
दक्षिण भारत में पंच रंगम - दक्षिण के वैष्णवों में पंच रंगनाथ स्वामी की भी मान्यता है जिन्हें पंच रंगक्षेत्रम के नाम से जाना जाता है। पांचों रंगनाथ स्वामी के मंदिर अलग-अलग शहरों में कावेरी नदी के ही तट पर स्थित हैं। जिनमें श्रीरंगपट्टनम के रंगनाथ स्वामी आदि रंगम हैं। अगले चार रुपों के मंदिर श्रीरंगम, कुंभकोणम, त्रिची और मायलादुताराई में हैं।
टीपू सुल्तान का योगदान - श्री
रंगनाथस्वामी के मंदिर का विस्तार और विकास होयसल, विजयनगर, मैसूर के वाडियार और हैदर अली द्वारा भी
कराया गया। मुस्लिम शासक होते हुए भी हैदर अली और टीपू
सुल्तान की रंगनाथ स्वामी में आस्था थी। हैदरअली ने मंदिर का पाताल मंडप बनवाया
था। टीपू सुल्तान ने भी मंदिर के विस्तार में योगदान किया।
टीपू की श्री
रंगनाथ स्वामी मंदिर के पुजारियों का सम्मान करता था। एक बार पुजारियों द्वारा
टीपू सुल्तान के लिए एक भविष्यवाणी की गई थी जिसके अनुसार अगर टीपू
सुल्तान मंदिर में एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान करवाता था जिससे वह दक्षिण भारत
का सुलतान बन सके। अंग्रेजों
से एक बार युद्ध में विजय प्राप्त होने का श्रेय टीपू ने ज्योतिषों की उस सलाह को
दिया था। इसके बाद टीपू ने उन ज्योतिषियों को और मंदिर को आर्थिक सहयोग देकर
सम्मानित किया था।
मंदिर में दर्शन - मंदिर सुबह आठ
बजे से एक बजे तक और शाम को चार बजे से आठ बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।
मंदिर में दर्शन के लिए लंबी भीड़ नहीं होती। दक्षिण के तमाम मंदिरों की तरह यहां
भी मंदिर का अपना प्रसाद काउंटर है।
कैसे पहुंचे - श्री रंगपट्टनम
कर्नाटक के मंड्या जिले में आता है। बेंगलुरू से श्री रंगपट्टनम 125 किलोमीटर है।
सड़क मार्ग से ढाई घंटे का रास्ता है। वहीं मांड्या से इसकी दूरी 26 किलोमीटर है।
मैसूर से भी यहां पहुंचना सुगम है। मैसूर से दूरी महज 22 किलोमीटर है।
- - विद्युत प्रकाश मौर्य
( RANGNATH SWAMI TEMPLE, SRIRANGPATTANAM, TIPU SULTAN, HAIDAR ALI, KARNATKA, MANDYA, SOUTH INDIA IN SEVENTEEN DAYS 59 )
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