तिरुपति से 17
किलोमीटर दूर तिरुमाला पहाड़ी पर विराजते हैं भगवान वेंकटेश्वर।
तिरुपति से तिरुमाला जाने के लिए रेलवे स्टेशन के सामने विष्णु निवासम से आंध्र
प्रदेश रोडवेज की बसें जाती हैं। जाने का किराया 40 रुपये
बच्चों के लिए 20 रुपये है। आप जीप से भी जा सकते हैं जहां
किराया 50 रुपये हो जाता है। अपने लिए मोलभाव करके टैक्सी
आरक्षित भी कर सकते हैं।
तिरुमाला की ओर जैसे ही आपकी
गाड़ी चढ़ने लगती है वातावरण मनोरम होने लगता है। पहाड़ी पर चढने से पहले चेकपोस्ट
आता है जहां आपके सामानों की पहली चेकिंग होती है। तिरुमाला पहाड़ी पर पूरी तरह
बालाजी का सम्राज्य है। यहां का अपना अनुशासन है जिसका पालन श्रद्धालुओं को करना
पड़ता है। बालाजी के दर्शन करने वालों को चाहिए कि वे तिरुपति में ठहरें और
तिरुमाला तैयार होकर दर्शन करने पहुंचे। वैसे तिरुमाला में भी आवासीय सुविधा है
लेकिन वहां कई बार कमरे खाली नहीं मिलते। मंदिर में दर्शन की प्रक्रिया सुबह से
देर रात तक चलती रहती है।
तीन तरह के दर्शन - बाला जी के
मुख्य रुप से दो तरह के दर्शन हैं। सर्व दर्शन सबके लिए निःशुल्क है। समान्य दिनों
में इसमें चार से छह घंटे, भीड़ होने से 20
से 40 घंटे भी लग सकते हैं। इसमें लाइन में
लगे लोगों को बड़े बड़े हॉल में एक हॉल से दूसरे हॉल में शिफ्ट किया जाता है। इस
दौरान खाने पीने, शौचालय आदि के इंतजाम रहते हैं। जल्दी
दर्शन करना चाहते हैं तो 300 रुपये का शीघ्र दर्शन वाली लाइन
में लग सकते हैं। तिरुमला प्रेस क्लब से शुरु होने वाले लाइन तकरीबन एक किलोमीटर
घुमाते हुए आपको बालाजी के मुख्य मंदिर तक पहुंचाती है। दर्शन की लाइन में जाने से
पहले बैग, मोबाइल फोन, कैमरा जैसी
चीजें लॉकर में जमा कर देनी पड़ती हैं। शीघ्र दर्शन के लाइन में भी दूध और काफी
मिलती रहती है। रास्ते में टायलेट्स भी बने हैं। लाइन में आगे बैठने के लिए हॉल
बनाए गए हैं। बालाजी के मुख्य मंदिर के द्वार पर पहुंचने के बाद सर्व दर्शन और
शीघ्र दर्शन की लाइन एक ही हो जाती है।
बाला जी का एक 50 रुपये
का टोकन दर्शन भी है तो आपके लाइन में लगने की अवधि को कम कर देता है। इसमें आपको
लाइन में लगने तय समय दिया जाता है। मंदिर दर्शन के वक्त भक्तों को भगवान के पास
ज्यादा देर रुकने नहीं दिया जाता। आपके पीछे भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन
के इंतजार में होते हैं।

माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास नौवीं शताब्दी से प्रारंभ होता
है, जब कांचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना
आधिपत्य स्थापित किया था। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर
की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933
तक ब्रिटिश राज में इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने
संभाला।
सन 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। तब एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्र प्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया।
सन 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। तब एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्र प्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया।
यहां विष्णु ने किया था निवास -
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता
है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास
किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला के चारों ओर स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरी कहलाती
हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्रि नाम से जाना जाता है। यह भी कहा
जाता है कि 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस
सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके
समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद
प्राने के बाद वे 120 साल तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर भगवान
वेंकटेश्वर की ख्याति फैलाई।
-- vidyutp@gmail.com
(TIRUPATI,
TIRUMALA, BALAJEE, ANDHRA PRADESH, TEMPLE, SOUTH INDIA IN SEVENTEEN DAYS 67 )
श्री वेंकटेश्वर मंदिर ने भारतीय धार्मिक विद्या में अद्वितीय पवित्रता प्राप्त कर ली है। शास्त्रों, पुराणों और कई अन्य शास्त्रों में घोषणा की गई है कि केवल वेंकटेश्वर की पूजा करने से ही आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
ReplyDeleteहां जी, धन्यवाद
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