दुनिया
के प्राचीन धर्मों में से एक यहूदी धर्म का आगमन भारत में काफी पहले हो गया था। आज
यहूदी धर्म इजरायल का राजधर्म है। यह इस्लाम और ईसाई से भी ज्यादा पुराना धर्म है।
माना जाता है कि इन दोनों धर्मों की उत्पत्ति यहूदी (जेविस) धर्म से हुई। यहूदी
धर्म के पैगंबर हजरत मूसा थे जो ईसा मसीह से भी 2000 साल पहले हुए थे। केरल के फोर्ट कोच्चि
इलाके में स्थित सायनागॉग देश का सबसे पुराना यहूदी आराधनालय माना जाता है। यह
सायनागॉग अपनी अनूठी विरासत के लिए जाना जाता है। इसके निर्माण में चाइनीज टाइल्स
का प्रयोग हुआ है। निर्माण में प्रयुक्त हर टाइल की अपनी अलग खासियत है। यहूदी (जेविश) वह धर्म है जो भारत की धरती पर आने वाले सबसे पुराने
धर्मों में से एक है।
केरल में बताया जाता है कि जेविश लोग ढाई हजार साल पहले इजरायल से आए थे। है। चार हजार साल पुराना यहूदी धर्म इजरायल का राज्य धर्म है।सन 1524 से पहले केरल के मालबार इलाके में बड़ी संख्या में यहूदी धर्म को मानने वाले लोग शांतिपूर्वक व्यापार किया करते थे। लेकिन बाद में उन्हें पुर्तगालियों से संघर्ष करना पड़ा। यहूदी लोग महाराष्ट्र और गोवा में भी 2100 साल पहले ही आ गए थे।
केरल में बताया जाता है कि जेविश लोग ढाई हजार साल पहले इजरायल से आए थे। है। चार हजार साल पुराना यहूदी धर्म इजरायल का राज्य धर्म है।सन 1524 से पहले केरल के मालबार इलाके में बड़ी संख्या में यहूदी धर्म को मानने वाले लोग शांतिपूर्वक व्यापार किया करते थे। लेकिन बाद में उन्हें पुर्तगालियों से संघर्ष करना पड़ा। यहूदी लोग महाराष्ट्र और गोवा में भी 2100 साल पहले ही आ गए थे।
केरल के शहर कोचीन में जेविश (यहूदी) लोग 562 ई. पू. में आए। कोचीन के जेविश लोग अपने को जेरुसलम के किंग सालमान का वंशज मानते हैं। वे लोग इजरायल से भगाए जाने के बाद केरल पहुंचे। यहां
राजा ने शरण दी और तिजारत शुरू किया। कोचीन के फोर्ट
कोच्चि इलाके में मेटनचेरी में जेविश धर्म का पुराना साइनागॉग ( पूजा स्थल) आज भी मौजूद है।
परदेशी साइनागॉग पूरे राष्ट्रमंडल देशों में सबसे प्राचीन पूजा स्थलों में से एक है। इसे 1568 में कोचीन के जेविश कम्यूनिटी ने बनवाया था। कोचीन का ये इलाका कभी जेविश टाउन के नाम से ही जाना जाता था। लेकिन कोचीन शहर में जेविश लोग अब ऊंगलियों पर गिनने के बराबर ही बचे हैं।
परदेशी साइनागॉग पूरे राष्ट्रमंडल देशों में सबसे प्राचीन पूजा स्थलों में से एक है। इसे 1568 में कोचीन के जेविश कम्यूनिटी ने बनवाया था। कोचीन का ये इलाका कभी जेविश टाउन के नाम से ही जाना जाता था। लेकिन कोचीन शहर में जेविश लोग अब ऊंगलियों पर गिनने के बराबर ही बचे हैं।
कोचीन
के राजा के शरण में व्यापार
करने वाले जेविश मूल के लोगों को यहां आराम से व्यापार करने की छूट थी। कोचीन के यहूदी लोगों को मालबारी यहूदी कम्यूनिटी के नाम से जाना जाता है।
सोलहवीं सदी तक केरल से पूरी दुनिया में होने वाले
मसालों के व्यापार पर यहूदी लोगों का वर्चस्व कायम था। 1968 में मेटनचेरी के साइनागॉग ने अपना 400 साला उत्सव मनाया। इस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी
कार्यक्रम में शामिल हुई थीं।
केरल के गोरे और काले यहूदी -
केरल में काले जेविश और गोरे जेविश दोनों तरह के लोग पाए जाते हैं। लेकिन अब गोरे रंग वाले जेविश मूल के लोगों की संख्या कोचीन शहर में महज 16 रह गई है। ( यह साल 2006 का आंकड़ा है ) बड़ी
संख्या में केरल के गोरे यहूदी अपने मूल वतन इजरायल वापस
जा चुके हैं।
हो सकता है यहां एक दिन एक भी गोरा यहूदी न दिखाई दे। पर मेटनचेरी का यह ऐतिहासिक सायनागॉग फोर्ट कोच्चि आने वाले सैलानियों के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक बना रहेगा। यह हमारे देश की बहुलतावादी संस्कृति की अनमोल विरासत है।
हो सकता है यहां एक दिन एक भी गोरा यहूदी न दिखाई दे। पर मेटनचेरी का यह ऐतिहासिक सायनागॉग फोर्ट कोच्चि आने वाले सैलानियों के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक बना रहेगा। यह हमारे देश की बहुलतावादी संस्कृति की अनमोल विरासत है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य ( vidyutp@gmail.com )
( COCHIN, SYNAGOGUE, KERALA, FORT COCHI, JEWIS, METANCHERRY, SOUTH INDIA IN SEVENTEEN DAYS)
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