कन्याकुमार सागर तट पर आम - कच्चे आम का स्वाद |
पके आम तो सब खाते
हैं लेकिन कच्चे आम खाने का मजा ही कुछ और है। उत्तर भारत में अक्टूबर महीने में
भले ही आम नहीं मिलता हो लेकिन कन्याकुमारी में जब कच्चा आम बिकते हुए देखा तो
बड़ा अचरज हुआ।
कच्चे आम को बड़े ही डिजाइनर अंदाज में काटकर फुटपाथ पर सजे दुकानों में बेचा जाता है। ये आम स्वाद में हल्के से खट्टे होते हैं। लेकिन आम के साथ नमक और लाल मिर्च का मसाला लगाकर पेश किया जाता है। दस रुपये में एक आम। मैंने खरीदा और खाना शुरू किया तो बेटे अनादि का भी मन मचलने लगा। तब हमने स्वाद साझा किया।
थोड़ा आगे बढ़ने पर मुझे आम का पेड़ भी दिखाई दे गया जहां कच्चे आम लटक रहे थे। कच्चे आम मदुराई और रामेश्वरम की सड़कों पर भी बिकते हुए दिखाई दिए। जब तिरुपति से बाला जी के दर्शन के लिए तिरुमला हिल्स पहुंचे तो वहां एक बार फिर आम बिकते देखा। कुछ इसी तरह डिजाइनर अंदाज में। एक बार फिर आम खाने की इच्छा हुई। हमने अनादि से पूछा कुछ खट्टा हो जाए...तो ये है हर मौसम आम का मौसम। जब जी करे तब खाओ।
दक्षिण भारत में सर्दी हो या फिर गर्मी आम का मौसम कभी नहीं जाता।
कच्चे आम को बड़े ही डिजाइनर अंदाज में काटकर फुटपाथ पर सजे दुकानों में बेचा जाता है। ये आम स्वाद में हल्के से खट्टे होते हैं। लेकिन आम के साथ नमक और लाल मिर्च का मसाला लगाकर पेश किया जाता है। दस रुपये में एक आम। मैंने खरीदा और खाना शुरू किया तो बेटे अनादि का भी मन मचलने लगा। तब हमने स्वाद साझा किया।
तिरुपति बालाजी के दरबार में भी कच्चे आम का स्वाद |
थोड़ा आगे बढ़ने पर मुझे आम का पेड़ भी दिखाई दे गया जहां कच्चे आम लटक रहे थे। कच्चे आम मदुराई और रामेश्वरम की सड़कों पर भी बिकते हुए दिखाई दिए। जब तिरुपति से बाला जी के दर्शन के लिए तिरुमला हिल्स पहुंचे तो वहां एक बार फिर आम बिकते देखा। कुछ इसी तरह डिजाइनर अंदाज में। एक बार फिर आम खाने की इच्छा हुई। हमने अनादि से पूछा कुछ खट्टा हो जाए...तो ये है हर मौसम आम का मौसम। जब जी करे तब खाओ।
कन्याकुमारी में अक्तूबर महीने के आखिरी में पेड़ पर आम। |
तभी तो
हमारे उत्तर भारत में भी सबसे पहले पके हुए आम दक्षिण भारत से ही आते हैं। लेकिन
डिजाइनर अंदाज में काट कर कच्चे आमों को खाने का रिवाज यहीं दिखा। कभी बचपन में हम
आम के बगीचे में घुमौवा बनाकर खाते थे। कच्ची अमिया की। कसम से उसकी याद आ गई एक
बार फिर। तो हो जाए एक बार फिर कच्चा आम।
कन्याकुमारी की सड़कों पर आपको समंदर से निकाले हुए शंख बिकते हुए खूब मिल जाएंगे। हालांकि आप शंख किसी दुकान से खरीदें और रसीद के के साथ तो अच्छा रहेगा। यहां पर हमें लोग घूम घूम कर मोती बेचते हुए भी दिखाई देिए। वे 20 रुपये में सच्चा मोती देने की बात कर रहे थे। पर ये कितना सच्चा था हम कह नहीं सकते।
सुनामी का दर्द और मछुआरे - कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल के पास मछुआरे दिखाई दिए जो अपनी जाल के मरम्मत में व्यस्त थे। समुंदर से मछलियां पकड़ना यहां मुख्य व्यवसाय है। पर सुनामी के दौरान इन मछुआरों के विनाशकारी आपदा का सामना करना पड़ा था। कन्याकुमारी में हमें फिश आक्शन सेंटर का भवन दिखाई देता है। हाल में बना यह भवन सीआईआई और हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के सौजन्य से बनाया गया है। इसके उदघाटन शिलापट्ट पर 15 मार्च 2009 की तारीख अंकित है। शिलापट्ट पर हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की संपादकीय निदेशक शोभना भरतीया का नाम लिखा गया है। सुदूर दक्षिण में अपने समाचार पत्र द्वारा करवाए गए इस पुनीत कार्य को देखकर खुशी होती है।
कन्याकुमारी की सड़कों पर आपको समंदर से निकाले हुए शंख बिकते हुए खूब मिल जाएंगे। हालांकि आप शंख किसी दुकान से खरीदें और रसीद के के साथ तो अच्छा रहेगा। यहां पर हमें लोग घूम घूम कर मोती बेचते हुए भी दिखाई देिए। वे 20 रुपये में सच्चा मोती देने की बात कर रहे थे। पर ये कितना सच्चा था हम कह नहीं सकते।
सुनामी का दर्द और मछुआरे - कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल के पास मछुआरे दिखाई दिए जो अपनी जाल के मरम्मत में व्यस्त थे। समुंदर से मछलियां पकड़ना यहां मुख्य व्यवसाय है। पर सुनामी के दौरान इन मछुआरों के विनाशकारी आपदा का सामना करना पड़ा था। कन्याकुमारी में हमें फिश आक्शन सेंटर का भवन दिखाई देता है। हाल में बना यह भवन सीआईआई और हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के सौजन्य से बनाया गया है। इसके उदघाटन शिलापट्ट पर 15 मार्च 2009 की तारीख अंकित है। शिलापट्ट पर हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की संपादकीय निदेशक शोभना भरतीया का नाम लिखा गया है। सुदूर दक्षिण में अपने समाचार पत्र द्वारा करवाए गए इस पुनीत कार्य को देखकर खुशी होती है।
- ------विद्युत प्रकाश
( ( MANGO, TAMILNADU, TSUNAMI, HT MEDIA, SOUTH INDIA IN SEVENTEEN DAYS 28)
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