फोर्ट कोच्चि में अरब सागर का अथाह विस्तार के बीच यहां समंदर में मछली मारने के
लिए बड़े बड़े जाल लगे हुए हैं। इन्हें चाइनीज फिशिंग नेट कहते हैं। कई सौ सालों
से ये विशाल नेट कोच्चि शहर की पहचान बन गए हैं। अपने फोटोजनिक पहचान के कारण यह
चित्रकारों और फोटोग्राफरों को लुभाते हैं। खासतौर पर फोर्ट कोच्चि में
वास्कोडिगामा स्क्वाएर से चाइनीज फिशिंग नेट का अदभुत नजारा दिखाई देता है। सुबह
के उगते हुए सूर्य के साथ या फिर शाम को डूबते हुए सूरज के साथ इनका नजारा अदभुत
होता है।
इन जाल को कुबलई
खान के आदेश पर 13वीं सदी में लगवाया गया था।
कुबलई खां के दरबारी झेंग हे के आदेश पर यहां मछलियां पकड़ने के वास्ते ये नेट 1350 से 1450 के बीच लगाए गए। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि पुर्तगाली व्यापारी मकाउ ने ये नेट यहां लगवाए। बहरहाल चायनीज फिशिंग नेट अब कोचीन शहर का लैंडमार्क बन चुके हैं। यहां फुटपाथ पर समंदर से पकड़ी गई मछलियों का बाजार भी है। सुबह पहुंचे तो मछुआरों को जाल फेंकते हुए भी देख सकते हैं। वैसे से शाम गुजारने के लिए भी अच्छी जगह है।
कुबलई खां के दरबारी झेंग हे के आदेश पर यहां मछलियां पकड़ने के वास्ते ये नेट 1350 से 1450 के बीच लगाए गए। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि पुर्तगाली व्यापारी मकाउ ने ये नेट यहां लगवाए। बहरहाल चायनीज फिशिंग नेट अब कोचीन शहर का लैंडमार्क बन चुके हैं। यहां फुटपाथ पर समंदर से पकड़ी गई मछलियों का बाजार भी है। सुबह पहुंचे तो मछुआरों को जाल फेंकते हुए भी देख सकते हैं। वैसे से शाम गुजारने के लिए भी अच्छी जगह है।
चाइनीज फिशिंग नेट को मलयालम
में चीनावाला कहते हैं। आकार प्रकार की बात करें तो एक नेट की लंबाई 20 मीटर होती है।
जबकि ऊंचाई 10 मीटर की होती है। यह कैंटलीवर के तकनीक सा प्रतीत होता है। निर्माण
में सागवान की लकड़ी और बांस के लंबे पोल का इस्तेमाल होता है। इस नेट से मछली
मारने में कम से कम छह मछुआरों की जरूरत होती है।
इस तरह के नेट का सबसे पहले
इस्तेमाल मलेशिया और चीन में हुआ। भारत में यह सबसे पहले कोचीन में आया, बाद में
इस तरह के फिशिंग नेट का इस्तेमाल त्रिवेंद्रम के पास कोवलम में भी होने लगा। धीरे धीरे ये फिशिंग नेट कोचीन शहर की पहचान बन गया। कई मशहूर चित्रकारों ने तो इसकी सुंदर पेंटिंग भी बनाई। देश और विदेश से कोचीन आने वाले सैलानी खास तौर पर इन महाजाल को देखने के लिए पहुंचते हैं।
किसी समय में कोचीन में कुल 20
चाइनीज फिशिंग नेट हुआ करते थे। पर अब इनकी संख्या घटकर 11 रह गई है। पूरे केरल में
ऐसे 30 नेट हुआ करते थे पर अब 20 ही रह गए हैं। एक चाइनीज फिशिंग नेट के निर्माण
में 5 लाख रुपये से ज्यादा खर्च आता है। अब अगर खर्च से तुलना करें तो कमाई कम रह
गई है। लिहाजा मछुआरे अब ऐसी नेट को लेकर उदासीन हो रहे हैं। इसलिए अब नई नेट नहीं
बन रही है। एक दिन ऐसा आ सकता है जब ये नेट इतिहास के पन्नों में समा जाएं। मछुआरे
बैंक और बीमा कंपनियों के उदासीनता के भी शिकार हैं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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