(चंबल
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चंबल
नदी के आसपास रहने वालों के लिए पानी का बहुत बड़ा संकट है। खासकर फरवरी मार्च
अप्रैल मई और जून के महीने मुश्किल भरे होते हैं। मानसून की बारिश के बाद कुएं
तालाब भर जाते हैं। खंडेदे (नदी से अलग होकर बना तालाब) में पानी आ जाता है। लेकिन
हेमंत ऋतु के खत्म होते और ग्रीष्म ऋतु के आने के साथ ही पानी धीरे धीरे खत्म होने
लगता है। कुएं और तालाब सूखने लगते हैं। जो गांव चंबल नदी के किनारे हैं वहां के
लोगों का काम चंबल मैया से चल जाता है। लेकिन दूर गां के लोगों की परेशानी बढ़
जाती है।
एक एक कर कुएं सूख जाते हैं। पानी के सारे स्रोत खत्म होने के बाद
गांव के लोगों के सामने विकल्प होता है दूर गांव से पानी लाने का। कई गांव के लोग
आठ किलोमीटर दूर से पानी लेकर आते हैं। जब गांव के आसपास के भी पानी के स्रोत खत्म
होने लगते हैं तब गांव के लोगों के सामने एक ही रास्ता बचता है पलायन का।

प्यास से तड़प कर मौत - जल संकट पर
चर्चा करते हुए महात्मा गांधी सेवा आश्रम के सचिव रण सिंह परमार भाई बताते हैं कि
चंबल के कई गांवों पिछले दिनों 40 से ज्यादा बच्चे प्यास से तड़प कर अपनी जान गंवा
चुके हैं। सरकार की ओर से हैंडपंप लगवाने और बावड़ियों को दुबारा से जीवित करने की
कोशिश की जा रही है। लेकिन चंबल के आंचल में रहने वाले लोगों का जल संकट से जूझना
हर साल की नीयती बन चुकी है। लोग आसमानकी ओर देखते हैं कि जल्दी से मानसून आए और
धरती की प्यास बुझाए।
- vidyutp@gmail.com ( WATER CRISIS , CHAMBAL RIVER )
चंबल का सफरनामा शुरुआत से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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