
जैसे गंगा
में सोंस ( डॉल्फिन ) पाली गई है उसी तरह चंबल में घड़ियाल। बुंदेलखंड इलाके की
धड़कन है चंबल नदी। जो महत्व यूपी बिहार में गंगा का है वही यहां चंबल का। कई
इलाके चंबल के इस पार हैं या फिर उस पार। कई जगह चंबल मध्य प्रदेश और राजस्थान की
सीमा रेखा की तरह। लेकिन चंबल के इस पार और उस पार वालों की बोली और रहन सहन एक
जैसा है। इसी चंबल के दोनों तरफ बीहड़ हैं। नदी के दोनों तरफ रहने वाले हजारों
गांव के लोगों की जीवन रेखा है चंबल। इसी पानी से नहाना, खाना और पीना।
बारिश के दिनों में चंबल अपना रौद्र रुप दिखाती है बाकि साल भर लोगों का पालन पोषण करती है। ठीक उसी तरह जैसे मां अपने बेटे को पालती है। जैसे गंगा मैया, नर्मदा मैया वैसे ही चंबल भी मैया।
पूरा बीहड़ चंबल के नाम पर ही जाना जाता है। कभी इन्ही बीहड़ों में
डाकू रहते थे। चंबल के डाकू समस्या पर कई फिल्में बनी हैं। चंबल की कसम। चंबल के
डाकू आदि। चंबल के डाकू में तो खुद सरेंडर करने वाले डकैत माधो और मोहर सिंह दिखाई
दिए थे। 1992 में माधो सिंह इस दुनिया से कूच कर चुके थे पर
मोहर सिंह जीवित थे। जौरा आश्रम में मैंने मोहर सिंह को देखा था। बात चंबल नदी की
कर रहा था।
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जुलाई अगस्त महीने में चंबल नदी का विस्तार। फोटो - विद्युत प्रकाश |
तो सरकार ने
आजकल चंबल नदी में घड़ियाल पालने का प्रोजेक्ट शुरू कर रखा है। नदी के पानी में
घड़ियाल बढ़ गए हैं। सरकारी आदेश है घड़ियालों के शिकार पर पूरी तरह रोक है। चंबल
नदी के साफ पानी में कलरव करते हुए घड़ियाल बहुत प्यारे लगते हैं। चंबल नदी के
गांव के आसपास के लोग भी इसको लेकर काफी अनुशासित हैं। वे घड़ियाल का शिकार नहीं
करते। साथ ही दूसरे लोगों को भी ऐसा करने से रोकते हैं।
चंबल नदी के 435 किलोमीटर के क्षेत्र में घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और दुलर्भ प्रजाति के
कछुए हैं। भिंड जिले में सेंक्चुरी का कुल एरिया करीब 100 किलोमीटर और मुरैना जिले में 200 किलोमीटर का एरिया है, जहां घड़ियाल संरक्षित किए गए हैं।
-- विद्युत प्रकाश मौर्य
((CROCODILE, CHAMBAL RIVER, MADHYA PRADESH )
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