
मांगीलाल
चायना के पिता हैं वे गांव के एकमात्र साक्षर हैं। इतने साक्षर की उनके सामने
हमारी पढ़ाई जीरो। मांगीलाल ने मुंह से आवाज निकाली कुछ इस तरह ट्टटटटट...इसको
लिखकर दिखाओ। ठीक ठीक इसे शब्दों में लिखना मुश्किल था। मैंने कहा हां ये लिखना तो
मुश्किल ही है।
मांगीलाल ने
पहले दिन हमें बाटी और दाल बनाकर खिलाई। खाना बनाने में उसकी दस साल की बेटी चायना
मदद करती है। चायना रोज जंगल जाती है लाकड़ी ( लकड़ी) काट कर लाने के लिए। इसी
लकड़ी से जलता है घर का चूल्हा। नहाने जाती है तब खड़ेदे में कुशल तैराक की तरह
तैरती है। उसका बड़ा भाई उसे बिना बात के पिटता है। तब हम बड़े भाई को पकड़कर पानी
में डुबोने की कोशिश करते हैं। चायना भाई के लिए भाव विह्वल होकर कहती है...छोड़
दो..मर जाएगा।

एक दिन बड़ी प्रसन्नता से चायना हमें बक्सा खोलकर गोट पट्टा लगी हुई चुनरी दिखाती है। इस चुनरी को वह खास मौकों पर डालती है। क्या पता चायना ऐसी ही चुनरी में कुछ महीनों बाद दुल्हन बन जाएगी। हमारे गांव जाने के दिन चायना हमारे सामने नहीं आई। उसे डर था कि कहीं फिर हम उसे शहर ले जाने की बात न कर दें। या फिर उसे हमारे गांव छोड़ने का दुख था...
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------विद्युत प्रकाश मौर्य
((KIR KA JHOPDA, BAGADIA, CHAMBAL, MP )
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