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क्या करें मजबूरी है..जाना जरूरी है... |
पटरियों के बीच चौड़ाई 61 सेंटीमीटर (610 एमएम) यानी कालका शिमला से भी छोटे हैं इसके डिब्बे। ट्रेन ग्वालियर
से चलती है लेकिन हमने इसमें सफर शुरू किया जौरा अलापुर रेलवे स्टेशन से। ग्वालियर से
श्योपुर कलां तक का रेल मार्ग 198 किलोमीटर लंबा है। अपने स्पेशल गेज में ये
दुनिया की सबसे लंबी और सबसे पुरानी रेल सेवा है जो चालू है।
ग्वालियर श्योपुर मार्ग पर जौरा रेलवे स्टेशन। |
ग्वालियर के
महाराजा माधव राव सिंधिया ने इस रेल परियोजना पर काम 1879 में शुरू कराया था। 1904
में इस रेल सेवा को ग्वालियर लाइट रेलवे के नाम से शुरू कराया था। ग्वालियर से
जौरा तक का मार्ग 1904 में चालू हो गया था। इसका श्योपुर कलां तक पूरा मार्ग 1909
में आरंभ हो सका।
यानी सौ साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी है ये रेल। ग्वालियर से चल कर 28
स्टेशनों से होकर गुजरने वाली ये ट्रेन इलाके 250 से ज्यादा गांवों के लिए
लाइफलाइन है। यानी चंबल घाटी के लोगों के लिए ये ट्रेन कोई टॉय ट्रेन नहीं है। जंगल
और गांव से होकर इस ट्रेन से सफर करना लोगों की मजबूरी भी है। कई इस ट्रेन के छत
पर भी लोग सफर करते दिख जाते हैं।
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कभी भाप इंजन चलता था। |
ग्वालियर से
सुबह छह बजे खुलने वाली पहली ट्रेन शाम चार बजे श्योपुर पहुंचाती है। अब ट्रेन में
डीजल इंजन लग गया है। अधिकतम स्पीड 50 किलोमीटर घंटा है। इंजन
डिब्बे सब कुछ अलग हैं। कई बार बिगड़ जाए या पटरी से उतर जाए तो रेल मार्ग बंद भी
जाता है।
भले ही इसके मार्ग में 28 स्टेशन हैं लेकिन कई बार
गांव के लोगों के आग्रह पर जरूरत पड़ने पर इस ट्रेन को ग्रामीण कहीं भी रोकवा लेते
हैं। कई दशकों से इस लाइट रेलवे को बड़ी लाइन में बदलवाने की मांग चल रही है। सुबह-सुबह जौरा रेलवे स्टेशन पर हम टिकट लेकर श्योपुर कलां जाने वाली ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। पर ट्रेन आई तो पहले से ही खचाखच भरी हुई थी।
vidyutp@gmail.com
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