
जय सिंह भाई साहब के बड़े से घर के विशाल
आंगन में शाम ढलते हमलोग खाने को बैठे। आसमान में पूनम का चांद अपनी पूरी रवानी पर
था। घर की भाभियों का हमसे कोई परदा नहीं। मानो उनके भाई या देवर घर आ गए हों। जय
सिंह जी के बड़े भाई राजेंद्र भाई हमारे साथ तुरंत दोस्ताना हो गए। उनका एक छोटा
भाई जग्गू अभी स्कूल जाता है।
यशोमती मैया से बोले नंद लाला.
यशोमती मैया से बोले नंद लाला.
गुड़िया सी लगने
वाली सातवीं कक्षा की छात्रा आशा। वैसे तो जयपुर में रहती है लेकिन छुट्टियों में
घर आई हुई है। जग्गू ने बताया कि आशा बड़े अच्छे गीत गाती है। हमने आशा को गीत
सुनाने के लिए थोड़ी मान मनौव्वल की। थोड़ा शरमाने सकुचाने के बाद आशा ने गाना
शुरू किया – यशोमती मैया से बोले नंद लाला..राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला...आशा
के गीत पर राजन भाई ने मटका बजाकर ताल दी।
...और महफिल सज गई तो आशा ने कई और गीत सुनाए।
तब टीवी पर इंडियन आइडोल का दौर नहीं था...वरना आशा वहां भी डंका बजाकर आती। हमारे
साथ दिग्विजय नाथ सिंह भी अच्छे गायक थे। उन्होंने भी कई गीत सुनाए। चांदनी रात
में सजी इस महफिल में घड़ी ने रात के कितने बजा दिए ये किसी को पता नहीं चला।
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बगदिया की एक तस्वीर, गर्मी से बचने के लिए जामुन का छांव। ( चित्र - कैलाश पराशर) |
जय सिंह
जादोन के घर हमारा प्रवास सिर्फ एक दिन का था। लेकिन उनका आतिथ्य और आत्मीयता
युगों युगों तक याद रहने वाली थी। कुछ सालों बाद जय सिंह भाई साहब की शादी का
कार्ड मिला। बहुत इच्छा थी एक बार फिर गांव बगदिया जाने की और पुरानी यादें ताजा
करने की लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पर गांव की वो तमाम बातें हमेशा जेहन में रहती हैं।
- ---- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( BAGADIA, SHEOPUR, CHAMBAL, MP)
- चंबल संस्मरण को शुरुआत से पढ़ने के लिए यहां पहुंचे।
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