पंजाब में जालंधर से
40 किलोमीटर आगे है नूरमहल नामक कस्बा। यह जालंधर जिले की एक तहसील है।नूरमहल जाने के लिए आजकल जालंधर कैंट से पंजाब की हॉकी
नर्सरी कहे जाने वाले गांव संसारपुर, जांडियाला मंजकी होकर रास्ता जाता है। लेकिन
कभी लाहौर से दिल्ली जाने का मुख्य मार्ग नूरमहल होकर ही गुजरता था।
अब किले पर कब्जा है- आज किले के हिस्से
में स्कूल और पुलिस थाने चल रहे हैं। देखभाल के अभाव में किले के कुछ हिस्से खंडहर
में तब्दील हो रहे हैं। किले आसपास शेरशाह के बनवाए बुर्ज भी देखे जा सकते हैं जो
डाक व्यवस्था के लिए बनवाए गए थे।
लोकगीतों में नूरमहल - पंजाबी लोकगीतों में भी नूरमहल कस्बे को याद किया जाता है..क्या आपने ये गीत सुना है...दो तारा वजदा वे रांझणा नूरमहल दे मोरी...बताते हैं किसी जमाने में यहां प्रसिद्ध मेला लगता था जिस पर ये गीत बना है।
कैसे पहुंचे - जालंधर से बस से वाया नकोदर नूरमहल पहुंचा जा सकता है। नकोदर से नूरमहल की दूरी 13 किलोमीटर है। वैसे जालंधर-नकोदर होकर रेलवे लाइन से भी नूरमहल पहुंचा जा सकता है। पर इस रेल लाइन पर रेल सेवा कम है। जालंधर-नकोदर-बिलगा-फिल्लौर- लुधियाना मार्ग पर रोज एक डीएमयू ट्रेन चलती है।
( सामग्री संकलन सहयोग - प्रवीण कुमार, नूरमहल )
बताया जाता है कि मल्लिका
नूरजहां का यहां जन्म तब हुआ जब उनके पिता मिर्जा ग्यारा मुहम्मद बेग ईरान से
दिल्ली जा रहे थे। जब बेग का काफिला यहां आराम फरमा रहा था तभी उनकी बेगम को प्रसव
पीडा हुई और नूरजहां का जन्म हुआ। इतिहास की तमाम पुस्तकें बताती हैं कि नूरजहां
का जन्म दिल्ली से कंधार के रास्ते में हुआ था।
जहांगीर ने दिया नूरमहल नाम - बादशाह जहांगीर से विवाह के बाद नूरजहां की याद में जहांगीर ने पहले जो जगह कोट कोहलूर के नाम से जानी जाती थी उसका नाम नूरमहल दिया। बादशाह ने नूरजहां की फरमाइस पर सन 1613 में विशाल महल तैयार करवाया। इस महल को आज नूरमहल की सराय के नाम से जाना जाता है। कभी सराय के अंदर के मस्जिद, रंगमहल, डाक बंग्ला आदि हुआ करते थे।
इस सराय में 48 कोष्ठ और दो बुर्ज हैं। बताते हैं कि नूरजहां पक्षियों को बहुत प्यार करती थीं। इसलिए किले में पक्षियों के लिए कोष्ठ बनवाए गए हैं। वहीं किले के मुख्य द्वार पर पालकी बनी है जिस पर दो हाथी सूड़ उठाए स्वागत मुद्रा में बने हैं।
जहांगीर ने दिया नूरमहल नाम - बादशाह जहांगीर से विवाह के बाद नूरजहां की याद में जहांगीर ने पहले जो जगह कोट कोहलूर के नाम से जानी जाती थी उसका नाम नूरमहल दिया। बादशाह ने नूरजहां की फरमाइस पर सन 1613 में विशाल महल तैयार करवाया। इस महल को आज नूरमहल की सराय के नाम से जाना जाता है। कभी सराय के अंदर के मस्जिद, रंगमहल, डाक बंग्ला आदि हुआ करते थे।
इस सराय में 48 कोष्ठ और दो बुर्ज हैं। बताते हैं कि नूरजहां पक्षियों को बहुत प्यार करती थीं। इसलिए किले में पक्षियों के लिए कोष्ठ बनवाए गए हैं। वहीं किले के मुख्य द्वार पर पालकी बनी है जिस पर दो हाथी सूड़ उठाए स्वागत मुद्रा में बने हैं।
किले के द्वार पर हाथी ः फोटो - निरदोल कंदोला |
लोकगीतों में नूरमहल - पंजाबी लोकगीतों में भी नूरमहल कस्बे को याद किया जाता है..क्या आपने ये गीत सुना है...दो तारा वजदा वे रांझणा नूरमहल दे मोरी...बताते हैं किसी जमाने में यहां प्रसिद्ध मेला लगता था जिस पर ये गीत बना है।
कैसे पहुंचे - जालंधर से बस से वाया नकोदर नूरमहल पहुंचा जा सकता है। नकोदर से नूरमहल की दूरी 13 किलोमीटर है। वैसे जालंधर-नकोदर होकर रेलवे लाइन से भी नूरमहल पहुंचा जा सकता है। पर इस रेल लाइन पर रेल सेवा कम है। जालंधर-नकोदर-बिलगा-फिल्लौर- लुधियाना मार्ग पर रोज एक डीएमयू ट्रेन चलती है।
( सामग्री संकलन सहयोग - प्रवीण कुमार, नूरमहल )
- - विद्युत प्रकाश मौर्य - Email - vidyutp@gmail.com
(( NOORMAHAL, PUNJAB, SANSARPUR, JANDIYALA MANJKI)
(( NOORMAHAL, PUNJAB, SANSARPUR, JANDIYALA MANJKI)
No comments:
Post a Comment