सासाराम शहर अपने शेरशाह के मकबरे के लिए जाना जाता है जो बिहार का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। शहर के लोग मकबरे को रौजा भी कहते हैं। यह रौजा भारतीय पुरात्तव विभाग के संरक्षण में है। प्रवेश का टिकट 15 रुपये का है। ये सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है।
शेरशाह का मकबरा एक विशाल सरोवर के बीचोंबीच बनाया गया है। मकबरे का निर्माण 16 अगस्त 1545 को पूरा हुआ।
अष्टकोणीय बनावट - बीच सरोवर में बने मकबरे में जाने का रास्ता बिल्कुल सामने से है जहां से इसका सौंदर्य निहारते हुए अप्रतिम आनंद आता है। शेरशाह के मकबरे की सबसे बड़ी विशेषता इसकी वास्तु कला है। ये अष्टकोणीय बनावट का है। आमतौर पर मकानों में चार दीवारें होती हैं लेकिन इसमें आठ दीवारे हैं। इसका डिजाइन अलाइवाल खान ने तैयार किया था। मकबरा इंडो इस्लामिक वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। मकबरे का मुख्य गुंबद 122 फीट ऊंचा है। हर रोज देशी विदेशी सैलानी इस मकबरे को देखने के लिए आते हैं। मुख्य भवन के अंदर शेरशाह और उसके परिवार के सदस्यों के मकबरे हैं।
शेरशाह के पिता का नाम हसन शाह था। वैसे तो उसके बचपन का नाम फऱीद था। उसका जन्म हरियाणा के नारनौल शहर में हुआ था। फरीद बाल्यकाल से ही अत्यंत बहादुर था। कहते हैं बचपन में ही उसने बहादुरी दिखाते हुए एक शेर के तलवार से दो टुकड़े कर डाले। तब से उसका नाम शेरशाह पड़ गया। उसकी किशोरावस्था का समय उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर में भी गुजरा।
डाक व्यवस्था - शेरशाह का नाम
देश में पहली बार डाक व्यवस्था शुरु करने के लिए भी जाना जाता है। शेरशाह के जमाने
के डाक पोस्ट का आज भी कई जगह अस्तित्व दिखाई देता है। आप सडक के किनारे शेरशाह के जमाने के पोस्ट देख सकते हैं।
मुद्रा व्यवस्था - उसने मुद्रा व्यवस्था भी शुरू की। आज हम जिस रुपया शब्द का इस्तेमाल बार बार करते हैं यह शेरशाह के समय की देन है। उसके तमाम कार्यों से लगता है कि वह महान दूरदर्शी शासक था। उसने अपने छोटे से शासन काल में कई किले फतह किए।
सख्त कानून व्यवस्था - शेरशाह के राज में कानून इतना सख्त था कि चोर चोरी करने से कांपते थे। चोरी पर हाथ काटने की सजा होती थी। जिस गांव में चोरी हो वहां के लोगों पर किया जाता था सामूहिक जुर्माना।
और क्या देखें - शेरशाह के मकबरा के अलावा, गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल, ताराचंडी देवी का मंदिर, रोहतासगढ़ का किला, चेनारी के पास शेरगढ का किला, भबुआ के पास मुंडेश्वरी देवी का मंदिर सासाराम में रहकर देखा जा सकता है।
मुद्रा व्यवस्था - उसने मुद्रा व्यवस्था भी शुरू की। आज हम जिस रुपया शब्द का इस्तेमाल बार बार करते हैं यह शेरशाह के समय की देन है। उसके तमाम कार्यों से लगता है कि वह महान दूरदर्शी शासक था। उसने अपने छोटे से शासन काल में कई किले फतह किए।
सख्त कानून व्यवस्था - शेरशाह के राज में कानून इतना सख्त था कि चोर चोरी करने से कांपते थे। चोरी पर हाथ काटने की सजा होती थी। जिस गांव में चोरी हो वहां के लोगों पर किया जाता था सामूहिक जुर्माना।
मौत से पहले बनवाया अपना मकबरा - कालांजर के किले में 13 मई 1545 को अपनी मौत से पहले शेरशाह ने अपने लिए मकबरे का इंतजाम कर लिया था जो सासाराम का बड़ा दर्शनीय स्थल बन गया। मकबरा उसके जीवन काल में बनना आरंभ हो गया था जो उसके मृत्यु के तीन महीने बाद पूरा हो गया। शेरशाह के मकबरे के सामने शेरगंज मुहल्ले में उसके पिता हसन शाह सूरी का भी मकबरा है। स्थानीय लोग इसे सूखा हुआ रौजा भी कहते हैं।
शेरगंज स्थित हसनशाह सूरी का मकबरा। |
कहा जाता है कि
दिल्ली का पुराना किला शेरशाह का बनवाया हुआ है। मध्य प्रदेश में एक जिला है
श्योपुर। इस श्योपुर का किला भी शेरशाह का बनवाया हुआ है। हालांकि इस किले पर
कब्जा करके लोगों ने अब आवासीय बनवा दिया है।
कैसे पहुंचे - शेरशाह मकबरा सासाराम रेलवे स्टेशन से महज दो किलोमीटर दूर है। अब तो शहर के बीचोंबीच ही आ चुका है। जी टी रोड पर मकबरा जाने के लिए प्रवेश द्वार भी बना है। इस द्वार से मकबरे की दूरी आधा किलोमीटर है।
कहां ठहरें - सासाराम में ठहरने के लिए बिहार पर्यटन ने होटल शेरशाह विहार बनवाया है जो फजलगंज में जीटी रोड पर ही स्थित है। आप जीटी रोड पर रोहित इंटरनेशनल समेत कई और होटलों में ठहर कर सासाराम और आसपास घूम सकते हैं। कैसे पहुंचे - शेरशाह मकबरा सासाराम रेलवे स्टेशन से महज दो किलोमीटर दूर है। अब तो शहर के बीचोंबीच ही आ चुका है। जी टी रोड पर मकबरा जाने के लिए प्रवेश द्वार भी बना है। इस द्वार से मकबरे की दूरी आधा किलोमीटर है।
और क्या देखें - शेरशाह के मकबरा के अलावा, गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल, ताराचंडी देवी का मंदिर, रोहतासगढ़ का किला, चेनारी के पास शेरगढ का किला, भबुआ के पास मुंडेश्वरी देवी का मंदिर सासाराम में रहकर देखा जा सकता है।
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