छह साल बाद बनारस
जाना हुआ। वही बनारस जहां मैंने छह साल पढ़ाई की। जिंदगी का अब तक का सबसे लंबा
वक्त गुजारा है। वैसे तो बनारस वह शहर है जिस पर 300 से ज्यादा किताबें लिखी गई हैं। लेकिन बनारस की
फिंजा में कुछ ऐसी मस्ती घुली है कि वहां बार बार जाने का जी करता है। बार बार में
सोचता हूं कि जिंदगी आखिरी वक्त मैं वहीं गुजारूंगा। उन्ही बनारस की गलियों में।
शादी के बाद से पत्नी को बार बार कहता था कि कभी हम बनारस चलेंगे लेकिन पूरा देश
घूमते घूमते कभी बनारस जाने का सुयोग ही नहीं बन रहा था। सो इस बार तय किया कि बार
बार सीधे पटना चले जाते हैं। इस बार तो बनारस रूकने के बाद ही आगे की यात्रा होगी।
दिल्ली से
वाराणसी का हमारा सफर शुरू ही नई ट्रेन दिल्ली वाराणसी गरीब रथ के साथ। वाराणसी
गरीब रथ दूसरी गरीब रथ से भी एडवांस है। इसके हर कोच में इलेक्ट्रानिक डिस्पले लगा
है जो रेलगाडी की स्पीड आने वाले स्टेशन का नाम, स्टेशन की कितनी दूरी रह गई है। सब कुछ बताता है। यानी यात्रियों की सारी
जिज्ञासा शांत करता है। आपको बार बार खिड़की से बाहर देखने की जरूरत नहीं कि कौन
सा स्टेशन आ गया या आने वाला है। यह एक नई व्वस्था है जो बड़ी अच्छी में।
खैर आनंद विहार वाराणसी गरीब रथ ( 22408 ) वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन पर सुबह नौ बजे पहुंच जाती है। मैं पहली बार वाराणसी में एक सैलानी के रूप में हूं। वैसे टूरिस्ट के रूप में जो छह साल वहां गुजार चुका है। फर्क इतना है कि वाराणसी जो भी पहली बार जाए उसके ठगे जाने की प्रबल संभावना रहती है। लेकिन अब मुझे वाराणसी के भूगोल का खूब पता है। इसलिए सावधान हूं।
विश्वनाथ
मंदिर के ठीक बगल में मां अन्नपूर्णा का मंदिर है। कहा जाता है कि काशी में मां
अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से कोई भी भूखा नहीं सोता है। मां अन्नपूर्णा के मंदिर में
दक्षिण भारत के लोग अन्न क्षेत्र भी चलाते हैं। यहां आप लंगर जीम सकते हैं।
दश्वाश्वमेध घाट के पास रहने का एक खास कारण था। बनारस की सुबह को निहारने की
इच्छा। अगले दिन सुबह सुबह सुबह हमलोग दशाश्मेध घाट पर गए।

काशी में गंगाजी उत्तरायण बहती हैं। सो सूरज की पहली किरण आकर घाट पर पड़ती है। स्नान करने वालों की भीड़। मुंडन कराने वाले श्रद्धालु। छतरियां लगाए पंडा। दशाश्वमेध घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, प्रह्ललाद घाट, मीर घाट ये सब मिल कर बनारस की सुबह की एक अनुपम छटा बनाते हैं।

काशी में गंगाजी उत्तरायण बहती हैं। सो सूरज की पहली किरण आकर घाट पर पड़ती है। स्नान करने वालों की भीड़। मुंडन कराने वाले श्रद्धालु। छतरियां लगाए पंडा। दशाश्वमेध घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, प्रह्ललाद घाट, मीर घाट ये सब मिल कर बनारस की सुबह की एक अनुपम छटा बनाते हैं।
वही बनारस
की सुबह जिस पर कवियों साहित्यकारों ने काफी कुछ लिखा है। लेकिन मुझे तो दशाश्वमेध
घाट की शाम भी खूब भाती है। जब मैं अनिर्णय की स्थिति में होता हूं तो इन्हीं घाटों
पर बैठकर घंटो सोचता हूं। उसके बाद जो अंदर आवाज आती है वही फैसला ले लेता हूं।
फैसला हमेशा सही होता है। मई मे गर्मी बुहत थी। सो दशाश्वमेध घाट पर देर रात तक
बैठने का भी अपना अलग आनंद है। छिटकती चांदनी आकर इन घाटों पर पड़ती है। नाव वाले
आकर नौका विहार करने के लिए मनुहार करते हैं।
बनारस में गंगा नदी में बैठकर नाव से शहर को निहारने का अपना अलग आनंद है। लेकिन हमारे चार साल वंश वर्धन ने नाव पर जाने से साफ इनकार कर दिया। सो हमें भी नौका विहार का इरादा त्यागना पड़ा। पुराने विश्वनाथ मंदिर के आसपास दक्षिण भारतीय खाना खूब मिलता है। वही दक्षिण की तरह ही सस्ता । यानी की पांच रुपये मे दो इडली। पंद्रह रूपये में मसाला डोसा। कदाचित यह दक्षिण भारतीय सैलानियों क ज्यादा आगमन के कारण हो।
बनारस में गंगा नदी में बैठकर नाव से शहर को निहारने का अपना अलग आनंद है। लेकिन हमारे चार साल वंश वर्धन ने नाव पर जाने से साफ इनकार कर दिया। सो हमें भी नौका विहार का इरादा त्यागना पड़ा। पुराने विश्वनाथ मंदिर के आसपास दक्षिण भारतीय खाना खूब मिलता है। वही दक्षिण की तरह ही सस्ता । यानी की पांच रुपये मे दो इडली। पंद्रह रूपये में मसाला डोसा। कदाचित यह दक्षिण भारतीय सैलानियों क ज्यादा आगमन के कारण हो।
-विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com ( मई 2009 में वाराणसी में)
( UTTAR PRADESH, BHU, VISHWANTH TEMPLE, MADHUBAN, SOCIAL SCIENCE, COLORS OF BANARAS )
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