असली चोटीवाला ऋषिकेश में - ऋषिकेश से आगे बढ़ने पर मुनि की रेती में रामझूला या शिवानंद झूला को
पार करके जैसे ही आप स्वर्गाश्रम की ओर बढ़ते हैं तो वहां चोटीवाला का शानदार
रेस्टोरेंट दिखाई देता है। किसी जमाने में ढाबेनुमा रेस्टोरेंट अब हाई फाई
रेस्टोरेंट की शक्ल ले चुका है। इसकी अपनी वेबसाइट भी है। पर यहां पर भी बिल्कुल अगल बगल में दो चोटीवाला रेस्टोरेंट खुल चुके हैं। दोनों असली होने का दावा करते हैं। चोटीवाला रेस्टोरेंट की खास बात है
रेस्टोरेंट के बाहर एक लंबी चोटीवाला आदमी ग्राहकों का मुस्कुराकर स्वागत करता
रहता है। चेहरे पर खास किस्म का पेंट लगाकर यह आदमी दिन भर बैठा रहता है।
रेस्टोरेंट के साइनबोर्ड पोस्टर बैनर पर भी चोटीवाले को खास जगह दी गई है। हरिद्वार
ऋषिकेश आने वाले लोग चोटीवाला जाकर जरूर जीमना चाहते हैं। पर मुश्किल है कि अब
स्वर्गाश्रम में ही दो चोटीवाला हो गए हैं। बिल्कुल अगल बगल में। दोनों असली होने
के दावा करते हैं।
कई दशक ये रेस्टोरेंट देश भर में जाना जाता है अपने नाम से। नाम ही कुछ ऐसा है जो नहीं भूलता है। खाने की बात करें तो इसकी अलग पहचान है। जब बंगाल का कोई आदमी पहली बार हरिद्वार तीर्थ के लिए चलता है तो पिता पुत्र को कहता है कि चोटीवाला में जरूर खाकर आना। समय के अनुसार चोटीवाला ने अपना रंग ढंग भी बदला है। चोटीवाला के मेनू कार्ड में अब उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय, बंगाली, गुजराती और चायनीज डिश भी हैं। इसके अलावा चोटीवाला का अपना स्पेशल मेनू भी है।
कई दशक ये रेस्टोरेंट देश भर में जाना जाता है अपने नाम से। नाम ही कुछ ऐसा है जो नहीं भूलता है। खाने की बात करें तो इसकी अलग पहचान है। जब बंगाल का कोई आदमी पहली बार हरिद्वार तीर्थ के लिए चलता है तो पिता पुत्र को कहता है कि चोटीवाला में जरूर खाकर आना। समय के अनुसार चोटीवाला ने अपना रंग ढंग भी बदला है। चोटीवाला के मेनू कार्ड में अब उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय, बंगाली, गुजराती और चायनीज डिश भी हैं। इसके अलावा चोटीवाला का अपना स्पेशल मेनू भी है।
मैं पहली बार 1991 में ऋषिकेश गया था तब चोटीवाला में और अब डेकोर में काफी बदलाव आ चुका है। कहते हैं कि चोटीवाला की अगली पीढी़ आ गई है इसलिए यहां एक साथ दो चोटीवाला हो गए हैं। मजे की बात दोनों के आगे एक चोटीवाला आदमी ग्राहकों का स्वागत मुस्कान के साथ करता है। लोग उसके साथ फोटो खिंचवाते नजर आते हैं।
स्वर्गाश्रम के चोटीवाला के आगे लिखा है कि हमारी हरिद्वार में कोई ब्रांच नहीं है। इस रेस्टोरेंट की स्थापना 1958 में हुई थी। इसके संस्थापक हर स्वरूप अग्रवाल जी थी। अब उनकी अगली पीढ़ी ने दो रेस्टोरेंट बना लिए हैं। सर्दियों में यहां मक्की की रोटी और सरसों का साग भी मिलता है। अब चोटीवाला का नाम बिकने लगा है। यहां खाना पीना थोड़ा महंगा हो गया है...इसलिए रौनक कुछ कम हो गई है।
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हर की पौड़ी के पास चोटीवाला |
खैर जब आप हरिद्वार हर की पौड़ी में जाएंगे तो वहां भी दो चोटीवाला
के रेस्टोरेंट मिलते हैं। एक गंगा जी के घाट की तरफ है तो दूसरा बड़ा बाजार की गली
में। दोनों ही असली चोटीवाला होने का दावा करते हैं। हालांकि इनके यहां कोई आदमी
लंबी चुटिया लगाकर नहीं बैठा होता है लेकिन खाने पीने वालों की खूब भीड़ रहती है।
यहां का मसाला डोसा या फिर पंजाबी खाना मस्त है। हरिद्वार मे रेलवे रोड पर एक और
चोटीवाला नाम का रेस्टोरेंट है। हालांकि अगर आप चोटीवाला से अलग हटकर कुछ खाना
चाहते हैं तो अपर रोड पर होशियारपुरी होटल में भी खाने जा सकते हैं।
असली चोटीवाला की वेबसाइट-
http://www.chotiwalarestaurant.com( HARIDWAR, RISHIKESH, CHOTIWALA)
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