कोल्ड
ड्रिंक की बोतलों में पेस्टिसाइड्स (जहरीला तत्व) होने के खुलासे के बाद अब इस बात
पर गहन चर्चा होने लगी है कि यह जहर कहां कहां तक फैला हुआ है। हमारे रोज के पीने
वाले पानी, आटे में, दाल में यहां तक की
मां के दूध में और गाय भैंस के दूध में ही जहर होने की बात सामने आने लगी है। अगर
कोई इस तरह के जहर से बचना भी चाहे तो उसके लिए मुश्किल ही है। यहां तक की मां के
दूघ में भी पेस्टिसाइड्स होने की बात सामने आ रही है।
तो अब सवाल उठता है कि आदमी क्या खाए और क्या पीए। अब शीतल पेय
कंपनियों ने टीवी पर अपने विज्ञापन का तरीका बदल दिया है। वे वैज्ञानिकों के हवाले
से यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि आपकी द्वारा पी जाने वाली कोल्ड ड्रिंक बिल्कुल
सुरक्षित है। अब भला आम आदमी कौन से लैब की रिपोर्ट को सही माने। पर इन सब के बीच
एक अच्छी बहस की शुरूआत जरूर हो गई है कि जहर हमारे शरीर में कहां कहां से प्रवेश
कर रहा है। इसमें सच्चाई है कि हम जितना अधिक रासायनिक खादों का इस्तेमाल कर रहे
हैं उसका असर खाद्य पदार्थों व पेय पदार्थों पर पड़ रहा है। जैसे लगातार साल दर
साल कीटनाशक दवाओं के प्रयोग के कारण पंजाब के खेतों से निकलने वाला गेहूं अब उतना
पौष्टिक नहीं रहा। वहीं इस गेहूं में कीटनाशक दवाओं के अंश मौजूद रहते हैं। जब हम
उन्हे खाते हैं तो ये हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं।
ठीक इसी तरह हम जब हैंड पंप या कुएं का पानी पीते हैं तो वह भी उतना सुरक्षित नहीं होता। शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों की वकालत करने वालों का तर्क है कि देश में करोड़ों लोग जो कुएं अथवा हैंडपंप का पानी पी रहे हैं वे कोल्ड ड्रिंक की तुलना में ज्यादा जहरीला पेय अपने अंदर समा रहे हैं जब उसका बुरा असर नहीं है तो सिर्फ शीतल पेय का ही क्यों हो। ठीक इसी तरह वही पानी गाय और भैंसे भी पीती हैं। भैंसे व गाय तो नदी नाले व गंदे स्थानों का जल भी पी लेती हैं तो इसका असर उनके दूध पर भी पड़ता है। हम कहां तक सुरक्षा बरत सकते हैं यह हमारे उपर ही निर्भर करता है। पहले कोशिश इस बात की हो कि सबको मिले सुरक्षित पीने का पानी। महानगरों में जो पीने का पानी सप्लाई किया जाता है वह भी पूरी तरह सुरक्षित नही होता। कई बार में उसमें गंदा पानी मिल जाता है तो कई बार उसका सही तरीके से क्लोरीनीकरण नहीं होता। पानी शुद्ध करने के बाद अगर हम अनाज भी शुद्ध पर जहर विहीन होने की बात करें तो हमें आरगेनिक फार्मिंग की ओर मुड़ना पड़ेगा।
ठीक इसी तरह हम जब हैंड पंप या कुएं का पानी पीते हैं तो वह भी उतना सुरक्षित नहीं होता। शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों की वकालत करने वालों का तर्क है कि देश में करोड़ों लोग जो कुएं अथवा हैंडपंप का पानी पी रहे हैं वे कोल्ड ड्रिंक की तुलना में ज्यादा जहरीला पेय अपने अंदर समा रहे हैं जब उसका बुरा असर नहीं है तो सिर्फ शीतल पेय का ही क्यों हो। ठीक इसी तरह वही पानी गाय और भैंसे भी पीती हैं। भैंसे व गाय तो नदी नाले व गंदे स्थानों का जल भी पी लेती हैं तो इसका असर उनके दूध पर भी पड़ता है। हम कहां तक सुरक्षा बरत सकते हैं यह हमारे उपर ही निर्भर करता है। पहले कोशिश इस बात की हो कि सबको मिले सुरक्षित पीने का पानी। महानगरों में जो पीने का पानी सप्लाई किया जाता है वह भी पूरी तरह सुरक्षित नही होता। कई बार में उसमें गंदा पानी मिल जाता है तो कई बार उसका सही तरीके से क्लोरीनीकरण नहीं होता। पानी शुद्ध करने के बाद अगर हम अनाज भी शुद्ध पर जहर विहीन होने की बात करें तो हमें आरगेनिक फार्मिंग की ओर मुड़ना पड़ेगा।
आरगेनिक
फार्मिग को लेकर अमेरिका से लेकर भारत जैसे देशों तक कुछ फीसदी लोगों में जागरुकता
बढ़ी है। आने वाले समय में ऐसे फार्म हाउसों की संख्या बढ़ेगी जो अनाज व सब्जियां
आपको बिना खाद बीज के प्रयोग के उपजाए हुए बेचते नजर आएंगे। इस दिशा में जालंधर व
जयुपर में कुछ प्रयास हो भी रहे हैं। वहां ऐसे उत्पादों के स्टोर खुल चुके हैं।
अमेरिका के उद्योगपति श्रीकुमार पोद्दार इस मामले में अलख
जगाने का अभियान चला रहे हैं तो वंदना शिवा जैसे कई लोग इस क्षेत्र में भी जुटे
हुए हैं। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हमारे जिस्म में कम से कम मात्रा में जहर
प्रवेश करे। बिल्कुल न करे ऐसी आदर्श स्थिति की परिकल्पना शायद संभव न हो।
-माधवी रंजना
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