दार्जिलिंग के चौरस्ता पर
नेपाली भाषा के महान साहित्यकार की सुनहले रंग
की आदमकद प्रतिमा लगी है। माथे पर पगड़ी और हाथों में पुस्तक है। नेपाली
जातीय पर्वत रामायण के रचयिता भानुभक्त आचार्य। नेपाली साहित्य के बीच उनका ऊंचा
सम्मानित नाम है। नेपाली साहित्य सम्मेलन दार्जिलिंग की प्रयासों से इस प्रतिमा को
निर्मित कर स्थापित कराया गया है। चौरस्ता पर आते जाते लोग कौतूहल से इस प्रतिमा
को देखते हैं।
भानुभक्त आचार्य का जन्म 13
जुलाई 1814 में हुआ था। उनका जन्म पश्चिमी नेपाल के चुंदी व्यासी क्षेत्र के रम्घा
गांव में हुआ था। उनके गांव में भी उनकी विशाल प्रतिमा लगाई गई है। उनका निधन 23
अप्रैल 1868 में हुआ। उन्हें खस भाषा का आदि कवि माना जाता है। उन्होंने नेपाली
में पर्वतीय रामायण की रचना की। उनकी लोकप्रियता का आलम ये है कि नेपाल के हर गांव
में उनके द्वारा रचित रामायण की प्रति जरूर पहुंच चुकी है। उनकी रामायण कथा आधात्म
रामायण पर आधारित है। उसमें भी तुलसीकृत राम चरित मानस की तरह सात कांड हैं।
हमारे नेपाली टैक्सी ड्राईवर भाई के साथ अनादि। |
नेपाली भाषा जितनी नेपाल की है उतनी
भारतीय भी। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में नेपाली भाषा को शामिल किया गया
है। भारत का सिक्किम राज्य नेपाली बहुल है तो दार्जिलिंग क्षेत्र में भी नेपाली
लोगों की आबादी सबसे ज्यादा है।
दार्जिलिंग के नेपाली लोग तो
लंबे समय से गोरखालैंड राज्य की मांग कर रहे हैं। सुभाष घिंसिंग के समय गोरखालैंड
आंदोलन चरम पर पहुंच गया था। पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से समझौते के
बाद यह आंदोलन धीमा पड़ गया। पर अभी भी बार बार गोरखालैंड राज्य का की मांग का
आंदोलन जोर पकड़ लेता है। हमारे दार्जिलिंग प्रवास के दौरान भी पांच जुलाई को
गोरखा लोगों ने संपूर्ण बंद का आह्वान किया था। तो उस दिन हमने पैदल पैदल
दार्जिलिंग शहर की सैर की। हम करीब 25 किलोमीटर पैदल घूमे उस दिन। इसी दौरान
संगामारी क्षेत्र में हमें एक दीवार पर प्रस्तावित गोरखालैंड राज्य का साइन बोर्ड
नजर आया।
पर अलग गोरखालैंड राज्य कब
हकीकत बनेगा पता नहीं। बंगाल दार्जिलिंग को खुद से अलग नहीं होने देना चाहता। साल 2009 में भाजपा नेता जसवंत
सिंह दार्जिंलिग लोकसभा से सांसद बने। पर छोटे राज्यों की समर्थक भाजपा ने भी गोरखालैंड
राज्य बनाने पर कोई पहल नहीं की। इसके बाद 2014 में भाजपा के ही एसएस अहलूवालिया दार्जिलिंग
से सांसद बने। संयोग से ये दोनों नेता बाहरी थे पर दार्जिलिंग के लोगों ने उनपर
भरोसा किया। साल 2019 में यहांं से राजू बिस्ट सांसद बने हैं। गोरखा परिवार से आने वाले राजू बड़े कारोबारी हैं। वे सूर्या रोशनी लिमिटेड के प्रमुख हैं।
दार्जिलिंग
का एतिहासिक सेंट एंड्रयूज चर्च – दार्जिलिंग
में चौरस्ता पर चलते हुए हमें एक पुराना चर्च दिखाई देता है। इसका नाम है सेंट एंड्रयूज चर्च। इस चर्च के बाहर लगे बोर्ड पर
लिखा है कि यह 1843 का बना हुआ है। इसके निर्माण में एक साल लगे थे। पर भूकंप में तबा होने के बाद इसे दुबारा
1873 में निर्मित किया गया। यह गोथिक शैली के वास्तु में बना हुआ है। चर्च
की पीले रंग की इमारत अब हमारे महान विरासत का हिस्सा बन चुकी है। मॉल पर बने इस
चर्च में हर रविवार को सुबह नौ बजे अंग्रेजी में सर्विस (प्रार्थना) होती है। समान्य दिनों में यहां कोई नहीं आता।
चर्च परिसर में घंटा घर भी है।
इसका निर्माण 1883 में हुआ था।
यह एक एंग्लिकन चर्च है। इसके हॉल में 200 लोगों
के एक साथ प्रार्थना करने की जगह है। ईसाई समुदाय में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट की
तुलना में एंग्लिकन लोगों की संख्या कम है। दार्जिलिंग क्षेत्र में रहने वाले
स्कॉटिस सिपाही और चाय की खेती से जुड़े एंग्लिकन समुदाय के लोग यहां प्रार्थना
करने आते हैं।
हिंदू और बौद्ध आस्था का केंद्र महाकाल मंदिर - दार्जिलिंग चौरस्ता के पास ही महाकाल मंदिर स्थित है। यह दार्जिलिंग का लोकप्रिय हिंदू मंदिर है। मंदिर का परिसर काफी सुंदर है। प्रवेश द्वार पर दो शेरों की प्रतिमा लगी है। शिव का वाहन नंदी बैल भी बाहर विराज रहे हैं।
हिंदू और बौद्ध आस्था का केंद्र महाकाल मंदिर - दार्जिलिंग चौरस्ता के पास ही महाकाल मंदिर स्थित है। यह दार्जिलिंग का लोकप्रिय हिंदू मंदिर है। मंदिर का परिसर काफी सुंदर है। प्रवेश द्वार पर दो शेरों की प्रतिमा लगी है। शिव का वाहन नंदी बैल भी बाहर विराज रहे हैं।
महाकाल मंदिर का निर्माण 1782
में
लामा दोरजे रिनजिंग द्वारा किया गया था। यह दार्जिलिंग में वेधशाला हिल के ऊपर
स्थित है। यह एक अनूठा मंदिर है। यह हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों का एक पवित्र
पूजा स्थल है। मंदिर परिसर में शिव पार्वती, मां काली की प्रतिमाएं हैं। वास्तव में यह एक मंदिर समूह है। मंदिर के परिसर में आपको बौद्ध धर्म की पताकाएं लहराती दिखाई देंगी। मंदिर के बाहर बौद्ध मंदिरों की तरह धर्म चक्र लगे हुए हैं। दार्जिलिंग में रहने वाली नेपाली समाज की इस मंदिर में काफी आस्था है। अब मंदिर परिसर में साईं बाबा की प्रतिमा भी स्थापित कर दी गई है।
( NEPALI, RAMAYAN, BHANU BHAKT ACHARYA STATUE, GORKHALAND DEMAND, ST ANDREWS CHURCH )
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