अगले दिन सुबह हमलोग शेयरिंग आटो रिक्शा से ऋषिकेश के लिए चल पड़े। उत्तराखंड का ऋषिकेश शहर।
हरिद्वार से जब आप ऋषिकेश पहुंचते हैं तो काफी बदलाव महसूस करते हैं। थोड़ा उंचाई
पर होने के कारण हिल स्टेशन जैसा एहसास होता है साथ ही मठ, आश्रम और मंदिरों के
कारण आस्था का वातावरण बन जाता है। ऋषिकेश की सबसे खास बनाता है यहां का लक्ष्मण
झूला।
बचपन से तस्वीरों से इस लक्ष्मण झूला को देखता आया था। पर 1991 में पहली बार
इस पर चढने का मौका मिला। इसके बाद कई बार ऋषिकेश जाने के मौका मिला। हर बार ऋषिकेश
कुछ नया सा लगता है। बात लक्ष्मण झूला की करें तो यह गंगा नदी पर बना हुआ एक झूला
पुल है। मतलब इसमें कोई पीलर नदी के बीच में नहीं है। इस झूला पुल से पैदल चलने
वाले और साइकिल से चलने वाले पार कर जाते हैं।
पुरातन कथा के अनुसार भगवान
श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे पुल बनाकर गंगा
नदी को पार किया था। उसी की याद में बने इस पुल का नाम लक्ष्मण झूला रखा गया है।
वर्तमान पुल 1929 का बना हुआ है। तकनीकी रूप से यह पुल मुनि की रेती, टेहरी गढ़वाल
जिले में पड़ता है। पर इस पुल को पार कर उस पार आप पौड़ी गढ़वाल जिले में पहुंच
जाते हैं। यह एक सस्पेंसन ब्रिज है। इस पुल की लंबाई 450 फीट है। हालांकि इस पुल
से जीप जैसी गाड़ियां भी पार हो सकती हैं, पर इन दिनों चार पहिया वाहनों के संचालन
पर रोक है।
लक्ष्मण झूला पुल का निर्माण
उत्तर प्रदेश ( तब यूनाइटेड प्रोविंस) पीडब्लूडी विभाग ने कराया था। यह पुल 1927
से 1929 के बीच बना। इसे 11 अप्रैल 1930
को आम जनता के लिए खोला गया। हालांकि इससे पहले भी यहां एक पुराना पुल हुआ करता था
जो इससे थोड़ा नीचे था। वह पुल 1924 में गंगा में आए बाढ़ में तबाह हो गया। पुराना
पुल 284 फीट लंबा था।
यूपी का पहला सस्पेंसन ब्रिज था जो जीप चलाने योग्य बनाया गया था। पर बाद में इस पर चार पहिया वाहनों का परिचालन रोक दिया गया। जब आप लक्ष्मण झूला पुल को पार
करते हैं तो यह झूलता हुआ प्रतीत होता है। पुल से ऋषिकेश शहर, मंदिर और आश्रमों का
सुंदर नजारा दिखाई देता है। वहीं पुल से नीचे देखें तो गंगा का नीले रंग का निर्मल
पानी नजर आता है। पानी में तैरती हुई मछलियां बिल्कुल साफ नजर आती हैं। काफी लोग
पुल पर खड़े होकर मछलियों को दाना फेंकते हैं। इसे कार्य को शुभ और फलदायी माना
जाता है।
लक्ष्मण झूला के उस पार दो
विशाल मंदिर हैं। एक मंदिर 11 मंजिला है तो दूसरा 13 मंजिला। इन मंदिरों के सभी तल
पर देवी देवता स्थापित हैं। दोनों मंदिरों के सबसे ऊपर वाली मंजिल तक चढ़ाई करना
और दर्शन कर लेना बहुत बड़ा शारीरिक श्रम है। कई लोग बीच से ही लौट आते हैं। पर
मैं 1991 में आखिरी मंजिल तक गया था। साल 2009 में एक बार फिर अपने चार साल से
नन्हे बेटे के साथ आखिरी मंजिल तक चढ़ाई की। नन्हें अनादि बिल्कुल नहीं थके।
अब लक्ष्मण झूला से दो किलोमीटर
पहले एक और सस्पेंस ब्रिज गंगा में बनाया गया है, इसे रामझूला कहा जाता है। यह
शिवानंद आश्रम के पास है इसलिए इसे शिवानंद झूला भी कहते हैं। शिवानंद झूला को
पैदल पार कर आप स्वर्गाश्रम में पहुंच जाते हैं।
लक्ष्मण झूला पुल
450 फीट है पुल की कुल लंबाई,यह बिना किसी सस्पेंसन तकनीक ब्रिज है जिसमें कोई पाया नहीं है।
06 फीट है पुल की चौड़ाई। यूपी का पहला जीप चलाने योग्य सस्पेंसन ब्रिज था।
1930 में 11 अप्रैल को आम जनता के लिए खोला गया था।
1927 से 1929 के बीच लक्ष्मण झूला पुल का निर्माण उत्तर प्रदेश ( तब यूनाइटेड प्रोविंस) पीडब्लूडी विभाग ने कराया था।
1924 में पुराना लक्ष्मण झूला पुल बाढ़ में तबाह हो गया था। पुराना पुल 284 फीट लंबा था, जो वर्तमान पुल से थोड़ा नीचे था।
2019 में 12 जुलाई को इस ऐतिहासिक पुल को कमजोर हो जाने के कारण बंद करने का आदेश दिया गया. इस तरह 89 साल का पुल इतिहास का हिस्सा बन गया.
लक्ष्मण झूला पुल
450 फीट है पुल की कुल लंबाई,यह बिना किसी सस्पेंसन तकनीक ब्रिज है जिसमें कोई पाया नहीं है।
06 फीट है पुल की चौड़ाई। यूपी का पहला जीप चलाने योग्य सस्पेंसन ब्रिज था।
1930 में 11 अप्रैल को आम जनता के लिए खोला गया था।
1927 से 1929 के बीच लक्ष्मण झूला पुल का निर्माण उत्तर प्रदेश ( तब यूनाइटेड प्रोविंस) पीडब्लूडी विभाग ने कराया था।
1924 में पुराना लक्ष्मण झूला पुल बाढ़ में तबाह हो गया था। पुराना पुल 284 फीट लंबा था, जो वर्तमान पुल से थोड़ा नीचे था।
2019 में 12 जुलाई को इस ऐतिहासिक पुल को कमजोर हो जाने के कारण बंद करने का आदेश दिया गया. इस तरह 89 साल का पुल इतिहास का हिस्सा बन गया.
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