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सुलतानगंज में गंगा नदी का विस्तार |
आस्था की इस अनूठी यात्रा का सहभागी बनने का मौका मिला था मुझे साल 1990 में। इंटर पास करने के बाद बीएचयू में एडमिशन लेने की प्रक्रिया में था।
इसी दौरान पिता जी के बैंक के कुछ पारिवारिक मित्रों की मंडली बनी और हम निकल
पड़े। पिताजी पहले भी बोलबम जा चुके थे मेरे लिए यह पहला मौका था। बोलबम के परिधान के लिए केसरिया निक्कर बनियान सब हाजीपुर से ही ले लिया था। हमलोग पटना से ट्रेन से सुल्तानगंज पहुंचे।सुल्तानगंज में गंगा उत्तरायण बहती है वाराणसी की तरह। यहां पर भी एक शिव का मंदिर है जिसे अजगैबीनाथ के नाम से जानते हैं।
पहला दिन - सुबह सुबह सुलतानगंज के बाजार से सबके लिए कांवर खरीदा गया। भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से शुक्रवार की सुबह हम सबने एक साथ जल उठाया। जल उठाने से पहले गंगा में स्नान और कांवर की पूजा की। इसके बाद के लंबे पैदल सफर की शुरुआत। नंगे पांव।सारा रास्ता संगीतमय होता है। हर साल बाबा की महिमा गान करने वाले सैकड़ो कैसेट निकलते हैं। रास्ते में गई गायक भी मंडली में गाते मिल जाएंगे। हाथी ना घोड़ा ना कौनो सवारी...पैदल ही पैदल अइनी हम भोला तोहरे दुआरी... 118 किलोमीटर के सफर में पहले सड़क भी कच्ची रास्ता, फिर नदी, पहाड़, जंगल सब कुछ आता है।
सुलतानगंज से तारापुर तक का रास्ता पक्की सड़क के साथ-साथ चलता है। इस दौरान कांवरिया लोगों की सलाह दी जाती है कि पक्की सड़क पर नंगे पांव चलने के बजाय फुटपाथ पर ही चलें। इससे पांव में छाले नहीं पड़ेंगे। तारापुर के बाद हमलोग बायीं तरफ नहर पकड़ कर कच्ची सड़क पर कुछ किलोमीटर का रास्ता तय करने लगे। रामपुर के बाद एक छोटी सी नदी आई। शाम होने पर पहुंच चुके हैं 36 किलोमीटर चलकर कुमरसार धर्मशाला में। यहां हमारा पहला पडाव था। दिन की यात्रा में हमारी पूरी मंडली साथ रही। रात को हमलोग एक साथ ही रूके। पहला दिन अच्छा रहा। पिताजी के दोस्त आईडीएन सिंह और राम बरन राय के बेटे साथ थे। वे मेरी उम्र के थे। उनके साथ हंसी-खुशी में सफर कट गया।
बोल कांवरिया बोल बम - दूसरा दिन - अगले दिन से कमरसार से हमलोग सुबह-सुबह चल पड़े। पापा के मित्र आरबी राय के बोलबम कहने और उत्साह बढ़ाने का अंदाज निराला था। पर कुछ घंटे चलने के बाद सबकी गति अलग अलग हो गई। कोई तेज चल रहा था तो कोई धीरे-धीरे। यानी सब आगे पीछे चलने लगे। थोड़ी देर बाद मैं और पिता जी ही साथ चल रहे थे। बाकी सब लोग अलग हो चुके थे।
और जब मैं पड़ गया अकेला - विश्वकर्मा टोला, महादेव नगर, चंदननगर पार करने के बाद इस दौरान एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं अपनी मंडली से अकेला पड़ गया। कई किलोमीटर तो मैं पिता जी से भी बिछुड़ गया। मेरे जेब में ज्यादा रुपये भी नहीं थे। अगर देवघर पहुंच भी जाउं तो पिता जी और उनकी बाकी मंडली से आस्था के महाकुंभ में मुलाकात कहां-कैसे होगी, यह सोच कर मैं चिंता में पड़ गया। मेरी पहली यात्रा थी। कहां रुकना है ये भी मालूम नहीं था। मैं अपना कांवर एक जगह स्टैंड पर रखकर एक यात्रा द्वार के पास बैठ गया। कुछ घंटे बाद पीछे से आ रहे पिता जी ने अचानक मुझे देख लिया। इस तरह हमारी मुलाकात हो गई। हमने तय किया कि आगे एक दूसरे का ध्यान रखेंगे।
सूइया पहाड़ को किया पार - हमलोग जिलेबिया मोड, सूईया पहाड़, अबरखिया पहाड़ आदि को पार कर चुके हैं। सूईया पहाड़ की खासियत है कि यहां पांव में सूई के मानिंद पत्थर चुभते हैं। थोड़ा दर्द होता है पर वह एक्यूप्रेशर का काम करता है पांव के तलवों के लिए। पर बाबा के मतवाले भक्त इसे हंसते खेलते पार कर जाते हैं। कहते हैं इस पहाड़ से गुजरना कुछ कुछ एक्यूप्रेशर चिकित्सा की तरह है।
बोलबम के सारे रास्ते में मेले सा माहौल रहता है। लेकिन रात्रि विश्राम के लिए जहां रुकते हैं वहां जगह को लेकर मारा मारी रहती है। दूसरे दिन दोपहर के बाद मैं पिता जी के साथ काफी उत्साह से चलता रहा। रात को तय हुआ था कि हमलोग कटोरिया में धर्मशाला में रुकेंगे। कटोरिया बांका जिले में आता है। यह बोलबम यात्रा मार्ग में 78वें किलोमीटर पर है। कई ठहरने के लिए कई पक्के धर्मशाला बने हुए हैं।
पर मेरे अंदर चलने का उत्साह कायम था। हम कटोरिया में नहीं रुके। हम सफर तेजी से तय करते रहे। पर जब चलते चलते अंधेरा बढ़ने लगा और रात को भूख लगी तो आसपास तलाशने पर कोई भोजनालय नहीं मिल रहा था। हम कुछ किलोमीटर और चले। तब जाकर एक छोटी सी चाय की दुकान में खाना नसीब हुआ। लेकिन क्या मिला उस छोटी सी दुकान में सिर्फ भात दाल और चोखा। खैर भूख लगी थी तो उसमें भी बहुत स्वाद लगा। दूसरी रात सोने की उपयुक्त जगह भी नहीं मिली। दुकान की बेंच पर ही सोना पड़ा। बारिश भी हो रही थी। भींगते हुए किसी तरह नींद ली और सुबह का इंतजार किया।

करीब 94 किलोमीटर की पदयात्रा करके हम इनरावरण पहुंच चुके हैं। यहां से बाबा मंदिर 24 किलोमीटर रह गया है। ऐसा लग रहा था मानो को चुंबकीय शक्ति हमें खींच रही थी अब। इनरावरण के बाद भुल भुलैया, गोरियारी, पटनिया, कलकतिया में छोटी-छोटी नदियां आती हैं, इन्हें नंगे पांव पार करने में आनंद आता है। गोरियारी नदी में तो मैं कांवर रखकर देर तक नहा कर थकान मिटाता रहा। कई बार तेज बारिश होने पर इन नदियों में पानी बढ़ जाता है।
बाबाधाम नजदीक आने पर कई राहत और सेवा शिविर भी रास्ते में आते हैं। यहां थके पांव में बाम और आयोडेक्स लगाने का इंतजाम रहता है। एक जगह हमने भी गर्म पानी में पांव डाल कर राहत महसूस करने की कोशिश की।
बिहार और झारखंड दो राज्यों के पांच जिलों में यात्रा - बाबा धाम की यात्रा मार्ग का 100 किलोमीटर से ज्यादा हिस्सा बिहार राज्य की सीमा में है। गोरियारी के बाद पदयात्रा का मार्ग झारखंड राज्य में प्रवेश करता है। दुम्मा बिहार झारखंड की सीमा है। हालांकि जिस साल मैंने यात्रा की थी तब झारखंड राज्य का गठन नहीं हुआ था। तब देवघर भी बिहार में ही आता था। दर्शनिया वह जगह है जहां से बाबा मंदिर के दर्शन हो जाते हैं। भूत बंगला के आसपास जंगल जैसा क्षेत्र भी आता है। शाम होने से पहले हमलोग देवघर शहर के करीब पहुंच चुके हैं।
रविवार शाम को किया जलाभिषेक - वह रविवार की शाम थी। हमने सोमवार का इंतजार नहीं किया श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए हमने रविवार की शाम को ही जलाभिषेक करने का फैसला किया। कहते हैं आप बाबाधाम तभी पहुंचते हैं जब आपको बाबा बुलाते हैं। तभी तो भक्त कहते हैं.. चलो बुलावा आया है... बाबा ने बुलाया है। तो ...चल रे कांवरिया शिव के नगरिया...
ऐसा है बोलबम का यात्रा मार्ग
बाबा अजगैबी नाथ मंदिर (सुल्तानगंज, जिला भागलपुर, बिहार) से कामराय 6
किमी
कामराय से मासूमगंज 2 किमी - 08
मासूमगंज से असरगंज 5 किमी - 13
असरगंज से रणगांव 5 किमी 18
रणगांव से तारापुर ( जिला - मुंगेर, बिहार ) 3 किमी 21
तारापुर से माधोडीह 2 किमी 23
माधोडीह से रामपुर 5 किमी 28
रामपुर से कुमरसार (मुंगेर ) 8 किमी 36 ( पहला रात्रि विश्राम )
विश्वकर्मा टोला से महादेव नगर
3 किमी - 43
महादेव नगर से चंदन नगर 3 किमी - 46
चंदननगर से जिलेबिया मोड 8 किमी - 54
जिलेबिया मोड से तागेश्वरनाथ 5
किमी - 59
तागेश्वरनात से सूईया पहाड़ 3
किमी- 62
सुईया से शिवलोक 2 किमी - 64
शिवलोक से अबरखिया 6 किमी- 70
अबरखिया से कटोरिया (जिला - बांका, बिहार) 8 किमी - 78
( दूसरा रात्रि विश्राम )
( दूसरा रात्रि विश्राम )
कटोरिया से लक्ष्मण झूला - 8 किमी - 86
लक्ष्मण झूला से इनरावरण (बांका) 8 किमी - 94
इनरावरण से भूलभुलैया नदी -3
किमी - 97
भूलभुलैया नदी से गोरियारी (बांका) - 5
किमी - 102 किमी
गोरियारी से पटनिया - 5 किमी - 107
पटनिया से कलकतिया नवाडीह (झारखंड) - 3 किमी - 110
कलकतिया से भूत बंगला -5 किमी - 115
भूत बंगला से दर्शनिया - 1 किमी - 116
- दर्शनिया से बाबा वैद्यनाथ
मंदिर 1 किमी - 117 किलोमीटर।
( आगे पढ़िए - देवघर शहर और बासुकीनाथ के दर्शन )
( आगे पढ़िए - देवघर शहर और बासुकीनाथ के दर्शन )
- विद्युत प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com
( DEVGHAR, DEOGHAR, SULTANGANJ, BABADHAM, BOLBAM, SAWAN, SHIVA)
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