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बेंगलुरू का श्री राधाकृष्ण मंदिर । |
तो इस भ्रमण में हम पटना और वाराणसी के कुछ साथ मिलकर चल पड़े। बड़े भाई सुनील सेवक की अगुवाई में। सबसे पहले हमलोग पहुंचे मैजेस्टिक। यह बस स्टैंड के पास का बाजार है। बेंगलुरु शहर का दिल धड़कता है मैजेस्टिक में। सिटी रेलवे स्टेशन के पास मैजेस्टिक वहां का चाकचिक्य वाला बाजार है। हम यहां घूमते रहे पर कोई शॉपिंग नहीं की। थोड़ी देर बाजार में घूमने के बाद तय किया गया कि ह्वाईट फील्ड साईं बाबा के आश्रम चलते हैं।


बाबा के दर्शन का इंतजार करने वालों में एक मुजफ्फरपुर के व्यापारी भी थे। कहने लगे उनके दर्शन मात्र से कई बिगड़े काम बन जाते हैं। तो हम भी बैठकर इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर में साईं बाबा एक बड़ी सी मोटरकार में आए और संयोग से हमें भी उनके दर्शन हुए। वहां देश भर के कई राज्यों के श्रद्धालु उनके दर्शन के इंतजार कर रहे थे। उनके दो आश्रम है एक सत साईं निलयम पुट्टवर्ती में और दूसरा ह्वाईट फील्ड बेंगलुरू में। जब बाबा आए उनके गाड़ी में बैठे हुए श्रद्धालुओं को दर्शन हुए। लोग अपने निहाल समझने लगे। हम भी उस भीड़ में शामिल थे।
( 24 अप्रैल 2011 को सत साईं बाबा का निधन हो गया, उन्होंने दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक सामाजिक कार्य किए थे।)
अब बेंगलुरु से घर वापसी - साईं बाबा के आश्रम के बाद वापसी में जब हम रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो वहां हमारे हाजीपुर के साथी मिल गए। वे थोड़े परेशान थे। क्योंकि उन्हें वापसी का आरक्षण नहीं मिल पा रहा था। शिविर के दौरान ही रेलवे का विशेष काउंटर कैंप साइट में ही लगा था, जहां हमने आरक्षण करा लिया था जो रेल मंत्री की अनुकंपा से कन्फर्म भी हो गया था। साथ ही हमसे कोई रिजर्वेशन चार्ज में रास्ते में नहीं लिया गया। पर पंकज भाई और उनके साथियों ने इस सुविधा का लाभ नहीं उठाया था।
रात होने पर भूख लगी तो रेलवे स्टेशन के पास खाने के लिए होटल ढूंढने निकले। ज्यादातर होटल हमें हमारी जेब की तुलना में मंहगे प्रतीत हुए। अभी तक हमलोग कैंप में खाना खा रहे थे जहां कोई शुल्क नहीं लग रहा था। अंत में एक बेसमेंट में स्थित रेस्टोरेंट में सांबर चावल खाकर भूख मिटाई। यह सात रुपये की एक प्लेट थी। रात की ट्रेन से हमलोग वाराणसी और पटना के साथियों के संग चेन्नई के लिए रवाना हो गए।
- विद्युत प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com
थोड़ी देर में साईं बाबा एक बड़ी सी मोटरकार में आए और संयोग से हमें भी उनके दर्शन हुए। वहां देश भर के कई राज्यों के श्रद्धालु उनके दर्शन के इंतजार कर रहे थे। उनके दो आश्रम है एक सत साईं निलयम पुट्टवर्ती में और दूसरा ह्वाईट फील्ड बेंगलुरू में। जब बाबा आए उनके गाड़ी में बैठे हुए श्रद्धालुओं को दर्शन हुए। लोग अपने निहाल समझने लगे। हम भी उस भीड़ में शामिल थे।
( 24 अप्रैल 2011 को सत साईं बाबा का निधन हो गया, उन्होंने दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक सामाजिक कार्य किए थे।)
अब बेंगलुरु से घर वापसी - साईं बाबा के आश्रम के बाद वापसी में जब हम रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो वहां हमारे हाजीपुर के साथी मिल गए। वे थोड़े परेशान थे। क्योंकि उन्हें वापसी का आरक्षण नहीं मिल पा रहा था। शिविर के दौरान ही रेलवे का विशेष काउंटर कैंप साइट में ही लगा था, जहां हमने आरक्षण करा लिया था जो रेल मंत्री की अनुकंपा से कन्फर्म भी हो गया था। साथ ही हमसे कोई रिजर्वेशन चार्ज में रास्ते में नहीं लिया गया। पर पंकज भाई और उनके साथियों ने इस सुविधा का लाभ नहीं उठाया था।
रात होने पर भूख लगी तो रेलवे स्टेशन के पास खाने के लिए होटल ढूंढने निकले। ज्यादातर होटल हमें हमारी जेब की तुलना में मंहगे प्रतीत हुए। अभी तक हमलोग कैंप में खाना खा रहे थे जहां कोई शुल्क नहीं लग रहा था। अंत में एक बेसमेंट में स्थित रेस्टोरेंट में सांबर चावल खाकर भूख मिटाई। यह सात रुपये की एक प्लेट थी। रात की ट्रेन से हमलोग वाराणसी और पटना के साथियों के संग चेन्नई के लिए रवाना हो गए।
- विद्युत प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com
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